बसंत भी क्या खूब मौसम है। मनुष्य की सबसे प्रिय बसंत ऋतु के आते ही प्रकृति अपने रूप सौदर्य को संवारने लगती है। खेतों में सरसों के पीले और अलसी के नीले फूल साथ में गेहूँ की सुनहली बालियाँ उदास मन को भी खिला देती हैं। धरती के आंगन में रंग बिरंगे महकते फूल बहार ला देते हैं। चंपा, चमेली, सूरजमुखी, गेंदे के साथ साथ केतकी, गुलाब और जूही के फूल। अपने अपने रंग और सुगंध से वातावरण को सराबोर कर देते हैं और मन उमंग से भर जाता है इस रुत के आने से..........
बसंत आया
पलाश के बूढ़े वृक्षों पर भी
विकराल वनखंडी
लाजवंती दुलहिन बन गई
एक नटखट बालक है.....एक सौंदर्य चेताक्षण है और एक संदर्भ है......
प्रकृति प्रफुल्ल वुंत दोल लोल लहरों के
डोल डोल सागर में आज लहराती है
भाव उकसाती नये भाव पर लाती गाती
जीवन प्रभाती में बसंत ऋतु लो आती है
लेकिन....बसंत के आगमन की सूचना तो वास्तव में मदमस्त दीवानी पवन के मद मंद झोंके ही देने लगते हैं.....
पूरे बारह महीने ऋतुएँ भारत देश की धरती का श्रृंगार करती रहती है। यह हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण अवदान ही है कि हमारी हर ऋतु के साथ आध्यात्मवाद, सभ्यता, लोकसंस्कार और पर्व उत्सव जुड़े हुए हैं। ऋतुराज बसंत के आगमन पर बसंतोत्सव सबसे प्रतीक्षित ऋतु उत्सव है।
कूलन में, केलिन में,कछारन में, कुंजन में,
क्यारिन में, कलिन कलिन किलकंत है।
बीथिन में, ब्रज में, नेबोलिन में बोलिन में
बनन में, बागन में बगरो बसंत हे।
चारों तरफ छाई रंग बिरंगी फूलों की चादर, हर तरफ हरियाली, कोयल की कूक, भंवरों का फूलों पर गुंजन और रंग बिरंगी तितलियों की फूलों पर भागमभाग, आम के बौर, सरसों और अलसी की बहार, मौसम और मिजाज़ में तारतम्य एकरूपता, सौदर्य के धरातल पर इस रसमय परिवेश का सृजन करती है इस ऋतुराज वसंत के रूप में........
विभिन्न कवियों और गीतकारों ने बसंत ऋतु का ऐसा सजीव वर्णन अपने काव्यमय संसार में किया है कि प्रतीत होता है कि इनकी रचना के वक्त बसंत ऋतु स्वयं ही इनके पास आकर बैठ गई होगी। लौकिक संस्कृति और आधुनिक हिन्दी के अंतराल में बसंत का महत्व किसी प्रकार कम नहीं हुआ है।
पॉडकास्ट में शामिल गीत
रुत आ गई रे - 1947 द अर्थ
ऋतु बसंत आई - झनक झनक पायल बाजे
पुरवा सुहानी आई रे - पूरब और पश्चिम
रंग बसंती - राजा और रंक
मेरे मन बाजा मृदंग मंजीरा - उत्सव
आई झूम के बसंत - उपकार
आज गावत मन में - बैजू बावरा
आइये बहार को हम- तकदीर
आइये बहार को हम- तकदीर
मधुर संचयन.
ReplyDeleteBASANTA RUTU KA MAZA HI KUCHHA AUR HOTA HAI...THODI THANDA MATAWALI HAWA AUR MAN MOHAK SANDHYA...GAANE BHI BAHUT ACHHE ...OLD BUT GOLD SO FAR MUSIC IS CONCERNED...THNX..Sangya ji..
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