Monday, February 14, 2011

बसंत ऋतु





बसंत भी क्या खूब मौसम है। मनुष्य की सबसे प्रिय बसंत ऋतु के आते ही प्रकृति अपने रूप सौदर्य को संवारने लगती है। खेतों में सरसों के पीले और अलसी के नीले फूल साथ में गेहूँ की सुनहली बालियाँ उदास मन को भी खिला देती हैं। धरती के आंगन में रंग बिरंगे महकते फूल बहार ला देते हैं। चंपा, चमेली, सूरजमुखी, गेंदे के साथ साथ केतकी, गुलाब और जूही के फूल। अपने अपने रंग और सुगंध से वातावरण को सराबोर कर देते हैं और मन उमंग से भर जाता है इस रुत के आने से..........

बसंत ऋतु को मधु ऋतु की संज्ञा दी गई है। जिस समय अपने समस्त सौदर्य श्री से संपन्न बसंत का आगमन होता है तब समस्त धरा का कण कण नवचेतना और मदिर गत्यात्मकता के साथ झूम उठता है। फागुनी आकाश और बसंत की पीताम्बरा धरती सौदर्य को नई परिभाषा सी देने लगते हैं।
बसंत आया
पलाश के बूढ़े वृक्षों पर भी
विकराल वनखंडी
लाजवंती दुलहिन बन गई
फूलों के आभूषण पहन आकर्षक बन गई

बसंत क्या है.....बसंत एक गीत है......एक स्वच्छंद प्रवाह है........
एक नटखट बालक है.....एक सौंदर्य चेताक्षण है और एक संदर्भ है......
प्रकृति प्रफुल्ल वुंत दोल लोल लहरों के
डोल डोल सागर में आज लहराती है
भाव उकसाती नये भाव पर लाती गाती
जीवन प्रभाती में बसंत ऋतु लो आती है
लेकिन....बसंत के आगमन की सूचना तो वास्तव में मदमस्त दीवानी पवन के मद मंद झोंके ही देने लगते हैं.....
पूरे बारह महीने ऋतुएँ भारत देश की धरती का श्रृंगार  करती रहती है। यह हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण अवदान ही है कि हमारी हर ऋतु के साथ आध्यात्मवाद, सभ्यता, लोकसंस्कार और पर्व उत्सव जुड़े हुए हैं। ऋतुराज बसंत के आगमन पर बसंतोत्सव सबसे प्रतीक्षित ऋतु उत्सव है।

सूर्य की चाल से पृथ्वी पर 6 ऋतुएँ होती हैं। सूर्य के उत्तरायन होने पर बसंत, ग्रीष्म तथा वर्षा, तथा दक्षिणायन होने पर शरद, हेमंत तथा शिशिर। मुख्य ऋतुएँ तीन ही होती हैं...ग्रीष्म, वर्षा और शिशिर और शेष तीन ऋतुएँ इन्हें सहने की शक्ति प्रदान करती हैं। लेकिन इन छहों ऋतुओं में बसंत सबसे सुहावनी होती है, जिसमें मौसम की समरसता बनी रहती है। इसलिये इसे ऋतुराज भी कहा गया है।
कूलन में, केलिन में,कछारन में, कुंजन में,
क्यारिन में, कलिन कलिन किलकंत है।
बीथिन में, ब्रज में, नेबोलिन में बोलिन में
बनन में, बागन में बगरो बसंत हे।

हमारे प्राचीन और अर्वाचीन कवियों जैसे पद्माकर, महाकवि देव, महाकवि ठाकुर, सेनापति, भूषण, बिहारी व भरतेन्दु जी ने बसंत को ऋतुत्सव, दुलेबसंतिया, मदनमहोत्सव, मधु ऋतु, ऋतुराज, ऋतुनाम, कुसुमाकर और बसंतोत्सव आदि नाम दे इसकी महत्ता को गौरवान्वित किया, साथ ही नाना प्रकार के छंद विधान में काव्य रचना कर बसंत का अभिनंदन किया है।
चारों तरफ छाई रंग बिरंगी फूलों की चादर, हर तरफ हरियाली, कोयल की कूक, भंवरों का फूलों पर गुंजन और रंग बिरंगी तितलियों की फूलों पर भागमभाग, आम के बौर, सरसों और अलसी की बहार, मौसम और मिजाज़ में तारतम्य एकरूपता, सौदर्य के धरातल पर इस रसमय परिवेश का सृजन करती है इस ऋतुराज वसंत के रूप में........

विभिन्न कवियों और गीतकारों ने बसंत ऋतु का ऐसा सजीव वर्णन अपने काव्यमय संसार में किया है कि प्रतीत होता है कि इनकी रचना के वक्त बसंत ऋतु स्वयं ही इनके पास आकर बैठ गई होगी। लौकिक संस्कृति और आधुनिक हिन्दी के अंतराल में बसंत का महत्व किसी प्रकार कम नहीं हुआ है।

बसंत असर है, जीवन में उल्लास, उमंग और रस को सम्मिलित करने का। अपने भीतर से नीरवता, कलुषता, और रसहीनता को बहिष्कृत कर प्रकृति के अनुपम उत्सव को सत्विकता के संग मनाने का। पुराण, इतिहास और भारतीय संस्कृति में भी इस पर्व को मनाने की समृद्ध परंपरा रही है। हालांकि बढ़ते पश्चिमी प्रभाव और आधुनिक जीवन शैली के अंधानुकरण ने इसके स्वरूप को बदला है लेकिन धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से बसंत का महत्व वर्तमान संदर्भों में और बढ़ गया है.....ऐसा तो आप भी मानते हैं ना.......

पॉडकास्ट में शामिल गीत
रुत आ गई रे - 1947 द अर्थ
ऋतु बसंत आई - झनक झनक पायल बाजे
पुरवा सुहानी आई रे - पूरब और पश्चिम
रंग बसंती - राजा और रंक
मेरे मन बाजा मृदंग मंजीरा - उत्सव
आई झूम के बसंत - उपकार
आज गावत मन में - बैजू बावरा
आइये बहार को हम- तकदीर

2 comments:

  1. BASANTA RUTU KA MAZA HI KUCHHA AUR HOTA HAI...THODI THANDA MATAWALI HAWA AUR MAN MOHAK SANDHYA...GAANE BHI BAHUT ACHHE ...OLD BUT GOLD SO FAR MUSIC IS CONCERNED...THNX..Sangya ji..

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