वृद्धाश्रम के 50 बुजुर्गो के साथ हमने बिताये चंद लम्हे.....
1 फरवरी 2015
1 फरवरी 2015
बिलासपुर में मसानगंज क्षेत्र में एक वृद्धाश्रम है जहाँ तकरीबन 35 पुरुष और 15 वृद्ध महिलाएँ अपना सुखमय जीवन व्यतीत कर रहे है। जिंदगी से संतुष्ट, ना कोई इच्छा, न कोई आकांक्षा कुछ भी ख्वाइश व्यक्त करने में असमर्थ। नगर के ढेरों लोग इस आश्रम में पैसों और खाने-पीने का सामान उपलब्ध करवाने में कोई कटौती नहीं करते। हर वृद्ध खुश है, अपनी दिनचर्या में व्यस्त है। उनमें से कई तो अपना घर-परिवार होने के बावजूद यहाँ रहना ज्यादा पसंद करते है।
डाॅ.योगेन्द्र परिहार एसईसीएल से रिटायर्ड डाॅक्टर हैं, जो इन दिनों गनियारी के जन स्वास्थ्य केन्द्र में अपनी सेवायें दे रहे हैं, उनके मार्गदर्शन में हमने कुछ लोगों से बातचीत की और हर महीने के पहले रविवार को इन बुजुर्गो के साथ कुछ समय बिताने का निर्णय लिया। हम 22 लोगों में 14 साल की मीश से लेकर युवा, प्रौढ़ और बुजुर्ग सब शामिल थे। हर सदस्य कलाकार था, कोई रंगकर्मी तो कोई आकाशवाणी से जुड़ा हुआ, कोई गायक और कोई लेखक, इसलिये संवेदना हर मन में थी।
1 फरवरी 2015 को पहला रविवार था। जब हम लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के बैनर से वहाँ एकत्र हुए शाम 4 बजे। उत्साह, एक चाहत, एक रोमांच सब था हम सबके मन में और यकीन मानिये जब 6 बजे हम वहाँ से निकले तो उन बुजुर्गो की आॅंखें नम थीं और हमारे मन एक ऐसी अनुभुति से लबालब, जिसकी व्याख्या शब्दों में तो बिल्कुल संभव नहीं है।
साकेत शुक्ला अपने कराओके के टैक्स लेकर आया था। रचिता ने माइक व म्यूजिक सिस्टम का इंतजाम कर लिया था। नाश्ते का भी इंतजाम कर दिया गया था। जब हमने वहां अपना-अपना परिचय दिया तो उनके चेहरे भाव विहीन थे। चेहरों को पढ़ने पर लगा जैसे वे सोच रहे हों लोग यूँ ही आते रहते हैं, भजन आदि गाकर चले जाते है, ऐसा ही ये एक और गु्रप आ गया। साकेत ने उनके जमाने का एक गीत गाया, चेहरों पर रौनक बढ़ी। चंपा भट्टाचार्य, प्राप्ति राय चैधरी, अंतरा चक्रवर्ती सबने सुर मिलाने षुरू किये। अनीष श्रीवास, अविनाष आहूजा, अरूण भांगे, अनुज श्रीवास्तव, मनीष सोनी, तृप्ति राॅय चैधरी, मंजुला जैन, कोहिनूर जेसवानी, नीरज ठाकुर, आभा शुक्ला अंशुल गुलकरी, मयूरी, शीतल सबने बुगुर्गो के बीच बीच में अपनी जगह बनाई और उनसे व्यक्तिगत रूप से जुड़ने की कोशिश शुरू कर दी। कुछ संगीतमय प्रस्तुतियों के बाद उन बुजुर्गो में से 4 लोगों ने खुद अपने ज़माने के गीत गाए। आवाज और गायिकी में दम अभी भी था, ये हमने महसूस किया।
वहाँ के निरीक्षक शर्मा जी
ने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है जब उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया।
अभिलाष का उस दिन जन्मदिन था। सारे बुजुर्गो ने हैप्पी बर्थ डे गीत हमारे
साथ गाया और अभिलाष को उन 50 बुजुर्गो से जो आशीर्वाद मिला, उसका तो पूरे
साल भर का खजाना भर गया। अभीभूत वे सब भी थे और हम सब भी। विदाई के वक्त
सबको लगा पूरा महीना इंतजार करना बहुत भारी पड़ेगा। लेकिन बाकी 29 दिन हम
सब 1 फरवरी की यादों मे गुजारेंगे और 1 मार्च के कार्यक्रम की रूपरेखा
तैयार करने में लगे रहेंगे।
1 फरवरी 2015 को पहला रविवार था। जब हम लिब्रा वेलफेयर सोसायटी के बैनर से वहाँ एकत्र हुए शाम 4 बजे। उत्साह, एक चाहत, एक रोमांच सब था हम सबके मन में और यकीन मानिये जब 6 बजे हम वहाँ से निकले तो उन बुजुर्गो की आॅंखें नम थीं और हमारे मन एक ऐसी अनुभुति से लबालब, जिसकी व्याख्या शब्दों में तो बिल्कुल संभव नहीं है।
साकेत शुक्ला अपने कराओके के टैक्स लेकर आया था। रचिता ने माइक व म्यूजिक सिस्टम का इंतजाम कर लिया था। नाश्ते का भी इंतजाम कर दिया गया था। जब हमने वहां अपना-अपना परिचय दिया तो उनके चेहरे भाव विहीन थे। चेहरों को पढ़ने पर लगा जैसे वे सोच रहे हों लोग यूँ ही आते रहते हैं, भजन आदि गाकर चले जाते है, ऐसा ही ये एक और गु्रप आ गया। साकेत ने उनके जमाने का एक गीत गाया, चेहरों पर रौनक बढ़ी। चंपा भट्टाचार्य, प्राप्ति राय चैधरी, अंतरा चक्रवर्ती सबने सुर मिलाने षुरू किये। अनीष श्रीवास, अविनाष आहूजा, अरूण भांगे, अनुज श्रीवास्तव, मनीष सोनी, तृप्ति राॅय चैधरी, मंजुला जैन, कोहिनूर जेसवानी, नीरज ठाकुर, आभा शुक्ला अंशुल गुलकरी, मयूरी, शीतल सबने बुगुर्गो के बीच बीच में अपनी जगह बनाई और उनसे व्यक्तिगत रूप से जुड़ने की कोशिश शुरू कर दी। कुछ संगीतमय प्रस्तुतियों के बाद उन बुजुर्गो में से 4 लोगों ने खुद अपने ज़माने के गीत गाए। आवाज और गायिकी में दम अभी भी था, ये हमने महसूस किया।
सुन्दर सराहनीय प्रयास यदि सभी लोग इतने संवेदन शील हो जाएँ तो शायद समाज में इस प्रकार के आश्रमों की जरुरत ही न रहे ,
ReplyDelete