काव्यभारती एक कला संस्थान जहां से सीखे बच्चे अपने आप में एक संस्थान बन कर पूरी तरह परिपक्व होकर निकले हैं। आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि .......
1983 में निराला, मुकुटधर पांडेय आदि कवियों की रचनाओं पर सुपर 8 मिमी चलचित्र का निर्माण काव्य भारती ने किया।
1987 1987 में काव्य भारती का ‘अमर बेला‘ ग्रामोफोन रिकार्ड तैयार हुआ। यह रिकार्ड आज भी आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से प्रसारित किया जाता है।
अब तक लगभग हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के 2000 गीत स्वरबद्ध किये हैं।
1960 में नाट्य भारती नाम से इस संस्था की स्थापना हुई थी जिसमें नाटक के साथ साहित्यिक गीतों के कार्यक्रम शुरू किये गए, धीरे-धीरे देखने, सुनने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। इस बीच उन्होंने महाप्राण निराला के अपरा, नये पत्ते, अणिमा, बेला आदि पर नृत्य संगीत रूपक प्रस्तुत किये गए, निरंतर हिन्दी के साहित्यिक गीतों को स्वरबद्ध और नृत्यबद्ध कर प्रस्तुत किये गए। यहां के कलाकारों ने प्रसाद, पंत, जायसी, महादेवी, निराला, नीरज, बच्चन आदि की अनेक रचनाओं को प्रस्तुत किया। गायन, नृत्य, नृत्य नाट्य, काव्य पाठ तथा काव्य चित्रण आदि अलग-अलग विधाओं पर अखिल भारतीय स्तर की प्रतियोगिताएं काव्य भारती द्वारा प्रतिवर्ष की जाने लगी और इनमें लगभग 1500 प्रतियोगी विभिन्न स्थानों से आकर भाग लेने लगे। महादेवी वर्माजी के निर्देश और इच्छानुसार 3 जनवरी 1978 को ‘काव्य भारती कला संगीत मंडल‘ की विधिवत स्थापना की। काव्य भारती संस्थागत रूप में आगे बढ़ती रही तथा 1979 में खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से संबद्ध होकर शास्त्रीय संगीत नृत्य का विद्यालय- कला संगीत वीथिका की स्थापना की और छात्र-छात्राओं को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देकर गायन-वादन और नृत्य की परीक्षा में उन्हें सम्मिलित कराने लगे। इससे एक फायदा काव्य भारती को हुआ, शास्त्रीय संगीत की परीक्षा में भाग लेने वाले इन्हीं छात्रों के सहयोग से काव्य भारती निरंतर कवियों की रचनाओं पर नये-नये कार्यक्रम देने लगी, इसमें कालीदास से लेकर वर्तमान तक के कवियों का कालजयी काव्य शामिल था।
काव्यभारती संस्था के संस्थापक मनीष दत्त, जिन्होंने सैकडों बच्चों को कलाकार बनाया, हजारों कलाप्रेमियों को राह दिखाई, पूरा जीवन कला को सर्मिपत करने वाले गुरू मनीष दत्त जी आज 70 वर्ष के होकर भी सक्रियता के साथ कलासाधना में जुटे हैं, अनके बारे में एक जानकारी.....
एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में 10 मई 1940 को मनीष दत्त का जन्म छत्तीसगढ़ (भारत) के बिलासपुर जैसे छोटे से शहर में हुआ। पिता स्व. सलिल कुमार दत्त लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर थे। वे भी पिता की तरह इंजीनियर बनना चाहते थे।किन्तु 12 वर्ष की उम्र में जयदेव नाटक में मंचावतरण के बाद उनकी रूचियां बदल गई और वे नाटकों के दीवाने हो गये। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण पढ़ाई में तो कोई व्यवधान नहीं पड़ा किन्तु उन्होंने कला और नाटकों के दीवानगी में अपने भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं सोचा। यहां तक कि अपने परिवारिक दायित्वों से विमुख ही रहे। कला संगीत और नाटकों में रूचि लेने वाले बालक मनीष दत्त जिनका वास्तविक नाम सुनील दत्त है, ने 16 वर्ष की अल्पायु में संकल्प लिया कि वे हिन्दी साहित्यिक गीतों को सरल और गेय बनाकर हिन्दी समाज में प्रचारित करेंगे। बंगाली परिवार में जन्म लेने के कारण उनके सामने गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का उदाहरण था। बांग्ला भाषी लोग रवीन्द्रनाथ, काजी नजरूल इस्लाम, डी.एल. राय आदि कवियों की रचनाओं को बड़े गर्व के साथ गाते थे जबकि हिन्दी कवियों की रचनाएं पोथियों और कक्षा की चारदीवारी तक ही सीमित थी। यह विरोधाभास बालक मनीष को सालता था इसीलिये उन्होंने संकल्पित होकर अपनी कल्पना को मूर्त रूप देना शुरू किया।
हिन्दी भाषी समाज के लिये काव्य भारती और मनीष दत्त द्वारा किया गया यह कार्य मौलिक तथा मूल्यवान है। लेकिन विगत 56 वर्षों में मनीष दत्त द्वारा किये गये कार्य आज देख-भाल के अभाव में नष्ट होने के कगार पर है। इनके गीतों, नृत्यों नाटकों तथा नृत्य नाटिकाओं में हमारे देश की उच्चतम और भव्य संस्कृति का निरूपण है। अतएव यह आवश्यक है कि हम अपनी आज की इस उपलब्धि को कल की पीढ़ी के लिए सहेज कर और संरक्षित करके रखे ताकि समय आने वाली भावी पीढ़ी तथा दूर-दूर में फैले हुए रूचि सम्पन्न लोग इसका उपयोग कर सकें।
तात्कालिक आवश्यकता
1983 में निराला, मुकुटधर पांडेय आदि कवियों की रचनाओं पर सुपर 8 मिमी चलचित्र का निर्माण काव्य भारती ने किया।
1987 1987 में काव्य भारती का ‘अमर बेला‘ ग्रामोफोन रिकार्ड तैयार हुआ। यह रिकार्ड आज भी आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से प्रसारित किया जाता है।
अब तक लगभग हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के 2000 गीत स्वरबद्ध किये हैं।
1960 में नाट्य भारती नाम से इस संस्था की स्थापना हुई थी जिसमें नाटक के साथ साहित्यिक गीतों के कार्यक्रम शुरू किये गए, धीरे-धीरे देखने, सुनने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। इस बीच उन्होंने महाप्राण निराला के अपरा, नये पत्ते, अणिमा, बेला आदि पर नृत्य संगीत रूपक प्रस्तुत किये गए, निरंतर हिन्दी के साहित्यिक गीतों को स्वरबद्ध और नृत्यबद्ध कर प्रस्तुत किये गए। यहां के कलाकारों ने प्रसाद, पंत, जायसी, महादेवी, निराला, नीरज, बच्चन आदि की अनेक रचनाओं को प्रस्तुत किया। गायन, नृत्य, नृत्य नाट्य, काव्य पाठ तथा काव्य चित्रण आदि अलग-अलग विधाओं पर अखिल भारतीय स्तर की प्रतियोगिताएं काव्य भारती द्वारा प्रतिवर्ष की जाने लगी और इनमें लगभग 1500 प्रतियोगी विभिन्न स्थानों से आकर भाग लेने लगे। महादेवी वर्माजी के निर्देश और इच्छानुसार 3 जनवरी 1978 को ‘काव्य भारती कला संगीत मंडल‘ की विधिवत स्थापना की। काव्य भारती संस्थागत रूप में आगे बढ़ती रही तथा 1979 में खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से संबद्ध होकर शास्त्रीय संगीत नृत्य का विद्यालय- कला संगीत वीथिका की स्थापना की और छात्र-छात्राओं को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देकर गायन-वादन और नृत्य की परीक्षा में उन्हें सम्मिलित कराने लगे। इससे एक फायदा काव्य भारती को हुआ, शास्त्रीय संगीत की परीक्षा में भाग लेने वाले इन्हीं छात्रों के सहयोग से काव्य भारती निरंतर कवियों की रचनाओं पर नये-नये कार्यक्रम देने लगी, इसमें कालीदास से लेकर वर्तमान तक के कवियों का कालजयी काव्य शामिल था।
काव्यभारती संस्था के संस्थापक मनीष दत्त, जिन्होंने सैकडों बच्चों को कलाकार बनाया, हजारों कलाप्रेमियों को राह दिखाई, पूरा जीवन कला को सर्मिपत करने वाले गुरू मनीष दत्त जी आज 70 वर्ष के होकर भी सक्रियता के साथ कलासाधना में जुटे हैं, अनके बारे में एक जानकारी.....
एक मध्यमवर्गीय बंगाली परिवार में 10 मई 1940 को मनीष दत्त का जन्म छत्तीसगढ़ (भारत) के बिलासपुर जैसे छोटे से शहर में हुआ। पिता स्व. सलिल कुमार दत्त लोक निर्माण विभाग में इंजीनियर थे। वे भी पिता की तरह इंजीनियर बनना चाहते थे।किन्तु 12 वर्ष की उम्र में जयदेव नाटक में मंचावतरण के बाद उनकी रूचियां बदल गई और वे नाटकों के दीवाने हो गये। कुशाग्र बुद्धि होने के कारण पढ़ाई में तो कोई व्यवधान नहीं पड़ा किन्तु उन्होंने कला और नाटकों के दीवानगी में अपने भविष्य के बारे में कुछ भी नहीं सोचा। यहां तक कि अपने परिवारिक दायित्वों से विमुख ही रहे। कला संगीत और नाटकों में रूचि लेने वाले बालक मनीष दत्त जिनका वास्तविक नाम सुनील दत्त है, ने 16 वर्ष की अल्पायु में संकल्प लिया कि वे हिन्दी साहित्यिक गीतों को सरल और गेय बनाकर हिन्दी समाज में प्रचारित करेंगे। बंगाली परिवार में जन्म लेने के कारण उनके सामने गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का उदाहरण था। बांग्ला भाषी लोग रवीन्द्रनाथ, काजी नजरूल इस्लाम, डी.एल. राय आदि कवियों की रचनाओं को बड़े गर्व के साथ गाते थे जबकि हिन्दी कवियों की रचनाएं पोथियों और कक्षा की चारदीवारी तक ही सीमित थी। यह विरोधाभास बालक मनीष को सालता था इसीलिये उन्होंने संकल्पित होकर अपनी कल्पना को मूर्त रूप देना शुरू किया।
हिन्दी भाषी समाज के लिये काव्य भारती और मनीष दत्त द्वारा किया गया यह कार्य मौलिक तथा मूल्यवान है। लेकिन विगत 56 वर्षों में मनीष दत्त द्वारा किये गये कार्य आज देख-भाल के अभाव में नष्ट होने के कगार पर है। इनके गीतों, नृत्यों नाटकों तथा नृत्य नाटिकाओं में हमारे देश की उच्चतम और भव्य संस्कृति का निरूपण है। अतएव यह आवश्यक है कि हम अपनी आज की इस उपलब्धि को कल की पीढ़ी के लिए सहेज कर और संरक्षित करके रखे ताकि समय आने वाली भावी पीढ़ी तथा दूर-दूर में फैले हुए रूचि सम्पन्न लोग इसका उपयोग कर सकें।
तात्कालिक आवश्यकता
1. 2000 गीतों को पुनः गीत और नृत्य के रूप में व्यवस्थित और स्तरीय रिकार्डिंग करना। ताकि ऐसे लोगों तक, जिन्हें इसकी आवश्यकता है, इसे पहुंचाया जा सके तथा इनका संग्रह भी तैयार हो सके।
2. मनीष दत्त की उम्र हो चुकी है और वे ही अकेले व्यक्ति है जिनका यह संपूर्ण सृजन है, अतएव यह आवश्यक है कि उनके जीवन काल में ही उन्हीं के निर्देशन में सारे गीतों, नृत्यों और नाटिकाओं की पुनः प्रस्तुति की जाए, ताकि इसके स्वरूप और मंतव्य में किसी प्रकार का कमी न हो या विकृति न हो।
इसीलिए हम-आप तक पहुंचे है कि आप स्वविवेक से अपना यथासाध्य सहयोग इस पुनीत कार्य में स्वयं हाथ बंटाने तथा लोगों को प्रेरित करने आगे आवें। यह हिन्द और हिन्दी के लिए अत्यंत आवश्यक है। बूंद-बूंद से सागर भरता है। आपका छोटा आर्थिक अनुदान या सहयोग चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो संस्कृति का महासागर बनकर लहरायेगा इसे आप सच माने।
2. मनीष दत्त की उम्र हो चुकी है और वे ही अकेले व्यक्ति है जिनका यह संपूर्ण सृजन है, अतएव यह आवश्यक है कि उनके जीवन काल में ही उन्हीं के निर्देशन में सारे गीतों, नृत्यों और नाटिकाओं की पुनः प्रस्तुति की जाए, ताकि इसके स्वरूप और मंतव्य में किसी प्रकार का कमी न हो या विकृति न हो।
इसीलिए हम-आप तक पहुंचे है कि आप स्वविवेक से अपना यथासाध्य सहयोग इस पुनीत कार्य में स्वयं हाथ बंटाने तथा लोगों को प्रेरित करने आगे आवें। यह हिन्द और हिन्दी के लिए अत्यंत आवश्यक है। बूंद-बूंद से सागर भरता है। आपका छोटा आर्थिक अनुदान या सहयोग चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो संस्कृति का महासागर बनकर लहरायेगा इसे आप सच माने।
और अब काव्यभारती पर आधारित आकाशवाणी बिलासपुर में निर्मित व म;प्र; व छ;ग; के सभी केन्द्रों से प्रसारित समिन्वत रूवक 'भारत में है विश्वास' की ऑफलाइन रिकार्डिग का पॉडकास्ट आपके लिये.....प्रस्तुति, आलेख व वाचक स्वर सुप्रिया भारतीयन का है
काव्य भारती द्वारा किया गया कार्य अद्भुत,पुनीत ,मूल्यवान है।
ReplyDeleteमनीष दत्त की उम्र हो चुकी है और वे ही अकेले व्यक्ति है जिनका यह संपूर्ण सृजन है, अतएव यह आवश्यक है कि उनके जीवन काल में ही उन्हीं के निर्देशन में सारे गीतों, नृत्यों और नाटिकाओं की पुनः प्रस्तुति की जाए, ताकि इसके स्वरूप और मंतव्य में किसी प्रकार का कमी न हो या विकृति न हो।
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