Monday, March 21, 2011

बांस गीत संरक्षण व बीबीसी हि‍न्‍दी पर रि‍पोर्ट

           छत्‍तीसगढ में लोकगीतों और गाथाओं का समृद्ध इति‍हास रहा है। ले‍कन अब अनेक लोक कलाएं लुप्‍त होने की कगार पर हैं। इनके संरक्षण के प्रयास भी हो रहे हैं, परन्‍तु इतने प्रयास शायद नाकाफी हैं, गम्‍मत को जीवि‍त करने के लि‍ये संस्‍कृति‍ वि‍भाग द्वारा आयोजि‍त कार्यशाला व लगातार प्रदर्शन इस कला में कुछ जान फूंकने में मददगार साबि‍त हुए हैं। भरथरी लोककला के सीमि‍त कलाकार अपने प्रदर्शनों से वाहवाही लूटने में समर्थ हैं परन्‍तु इसके संरक्षण के लि‍ये अपने को अक्षम पाते हैं कमोबेश यही स्‍ि‍थति‍ बांसगीत की है। यदुवंशि‍यों में प्रचलित बांस लोकवाद्य को फूंककर विशेष ध्वनि के साथ गीत एवं गाथा की प्रस्तुति बांस गीत की अद्भुत कला विलुप्तता के कगार पर पहुंच चुकी है । बावजूद इसके कहीं-कहीं अब भी इस कला की अभिव्यक्ति करते लोग नजर भी आ जाते हैं । वहीं कुछ कला मर्म ऐसी विधाओं को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं ।
            बांसगीत के बारे में कहा जाता है कि यह बांसुरी का ही एक रूप है । कभी वनों में पोले बांस से हवा गुजरने से उत्पन्न प्राकृतिक ध्वनि ही बंशी अथवा बांसुरी की प्रेरक बनी। तृण जाति की प्रसिद्ध वनस्पति विशेष बांस की ढाई से तीन हाथों तक लंबी इस बांस की पोली नली में बांसुरी की भांति छिद्र बना लेते हैं । चार की संख्या वाले छिद्रों में से एक आर.पार होता है और शेष तीन फलक तक सीमित होते हैं । इन्हीं छिद्रों से मुंह से फूंक कर स्वर लहरी प्राप्त की जाती है। वादक इसके छिद्रों को अपनी अंगुलियों से आवृत-अनावृत कर आरोह-अवरोह के जरिए स्वर संचालन करते हैं ।  गीत कहार अपने कानों में हाथ लगाकर लहराते हुए विविध भाव. भंगिमाओं से अपनी तान छेडता है । गीतों का आरंभ में ये विभिन्न देवी.देवताओं को जोहार.प्रणाम.करते हैं जिसे स्थानीय बोली में ‘जोहारनीन’ कहते हैं । गीतों में अन्तर्निहीत भावों के अनुरूप गीतकहार स्वयं को नायक के स्थान पर प्रतिस्थापित कर प्रसंगानुकूल मुद्राओं का संयोजन भी करने लगता है ।
            बांसकहार अपने बांस से ध्वनि निकालकर स्वरों में ढालते हुए प्रचंड स्वरघोष उच्चारित करता है मानो शुभ कार्य के आरंभ से पूर्व शंखघोष कर मंगल ध्वनि से आपूरित कर देना चाहता हो । इस घोष को छत्तीसगढी में घोर कहा जाता है। बांसगीत गायकों की टोली में कम से कम तीन सदस्य होते हैं । एक बांस गीतों का गायन करने गीतकहार, दूसरा बांस वादन करने वाला बांसकहार तथा तीसरा गीतकहार के राग में राग मिलाने वाला रागी कहलाता है। गीतकहार अपने हाथों को कानों से लगाकर ही गाता है जिससे वह हाथों को संचालित करके गाने का अवसर नहीं जुटा पाता । फिर भी वह पूरी देह को लहराने, मुख पर विभिन्न भावों को व्यक्त करने तथा उठने बैठने का संयोजन कर ही लेता है । भाव भंगिमाओं के अतिरिक्त इनमें स्वरालाप एवं स्वर परिवर्तन की अद्भुत क्षमता होती है । गीतकहार बीच-बीच में अर्थ भी स्पष्ट करना नहीं भूलता ताकि सुनने वालों को कथानक को समझने में आसानी हो सके ।
                छत्तीसगढ में बांस गीत को संरक्षित करने की दिशा में  डा. सोमनाथ यादव ने काफी काम कि‍या है। इनको पिछले वर्ष राष्ट्रीय संगीत अकादमी ने बनारस में बांसगीत पर किए गए शोध पठन के लिए आमंत्नित किया गया था । इसी तरह दक्षिण मध्य क्षेत्नीय सांस्कृतिक केंद्र नागपुर द्वारा बांस गीत के संदर्भ में एक शोध ग्रंथ का प्रकाशन तथा डाक्यूमेंटरी फिल्म का निर्माण भी किया गया है । बांस गीत गायकों के लिए गांव की किसी गली का चबूतरा ही उनका मंच बन जाता है । बांस गीतों की टोली में शामिल रागी की भूमिका महत्वपूर्ण भले नहीं होती हो फिर भी वह टोली का सक्रिय सदस्य होता है । लोक कथाओं में हुंकृति भरते हुए वह गीतकहार के काम को सरल बनाता है। जब कभी गायक पंक्ति को शुरू करके छोड देता है उसे वही पूरा करता है ।

               'झुरमुट में गुम बांस गीत की मिठास' व 'आज भी भाव-विभोर कर देता है बाँस गीत' शीर्षकों से डॉ;महेश परि‍मल के बलॉग संवेदनाओं के पंख पर बांस गीत की अच्‍छी जानकारी प्राप्‍त है

http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/2008/07/blog-post_21.html

http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/2010/05/blog-post_21.html 

वि‍गत 19 मार्च को बीबसी हि‍न्‍दी पर बांस संरक्षण को लेकर रायपुर के सलमान रावी की एक रि‍पोर्ट का प्रसारण कि‍या गया जि‍सकी ऑफलाइन रि‍कॉर्डिग करके आपके लि‍ये हमने पॉडकास्‍ट बनाया है ....सुनकर प्रति‍क्रि‍या देना न भूलें......

5 comments:

  1. बहुत सुंदर लेख

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  2. प्रेरक भाव-विभोर ,अद्भुत अभिव्यक्ति!

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  3. let us save this great form of music....all who hv created this effort to bring it in front of us r just requested to receive my hearty congrats.....

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