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हरोभूमि ३ मार्च २०१५ |
1 मार्च २०१५
बुज़ुर्गों के साथ मनाया हमने फाल्गुन...कोशिश की उनको थोड़ी सी खुशियाँ देने की और बदले में पाया ढेर सारा आशीर्वाद..
1 फरवरी को वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गो के साथ बिताया दो घंटे का समय 1 मार्च तक के लिये हम सबको ऊर्जा प्रदान करता रहा। हर दिन उन लम्हों की याद में और अगली बार उनसे मिलने के इंतजार में एक-एक दिन गुजरता चला गया। आखिर 28 दिनों बाद वो पल आ ही गया। हम पहुँचे एक बार फिर उन सबके बीच 1 मार्च की शाम 4 बजे।
बुजुर्गों के साथ फाग की मस्ती-
5 दिनों बाद होली है, इसलिए आज का कार्यक्रम उनके साथ स्वाभाविक है होली की थीम पर ही आधारित होना था। हमारे आज के कार्यक्रम के एजेंडा में शामिल था....नगाड़ो की थाप, फाग गीतों का जोष, गुजिया की मिठास, हर्बल गुलाल और चंदन का टीका और फूलों की बारिश। ऐसा नहीं है कि महीने के पहले रविवार का इंतजार सिर्फ हमें था, वे भी कर रहे थे हमारा बेसब्री से इंतजार। लेकिन उनमें से कुछ ने ये भी माना कि उन्हें शक था कि हम आयेंगे कि नहीं। औरों की तरह एक बार उनके बीच पहुॅंचकर, अगली बार आने का वादा करके तोड़ेंगे तो नहीं। दरी-चटाई बिछाकर 4 बजे से पहले ही बैठ गये थे हमारे बुजुर्ग साथी, हमारे इंतजार में।
अंतरा गुजियों से भरे डिब्बे लेकर पहुंची, मंजुला हर्बल रंगों के साथ पहुँच गई और फूलों को सुखाकर उनकी पंखुडि़याँ लेकर अंशुल, अनुज, योगेश भी आ गए। डाॅ योगी तो एक वर्कशॉप में पिछले 3 दिनों से सिंगरौली गए हुए थे। सुबह 5 बजे से लगातार ड्राइविंग करते हुए सीधे आश्रम आ गए अपने दो साथियों के साथ। सुनील, नम्रता, ऐश्वर्या, स्वप्निल, प्प्रशांत, अविनाष अपनी बहन के साथ, कोहिनूर, आभा, अभिलाष, श्रद्धा...... सब धीरे-धीरे 4.15 बजे तक जमा हो गए। अजय भी आ गया अपने दो फाग गाने वाले साथियों के संग....बस फिर नगाड़े की थाप के साथ फाग राग शुरू हो गया।
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कुछ खास प्रतिक्रियाएँ-
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दैनिक भास्कर २ march 2015 |
# एक बुजुर्ग महिला ने हमसे कहा आप लोग महीने में 2 बार आना शुरू करो, महीना बहुत लंबा हो जाता है।
# अविनाष अपनी बहन को लाया था, बड़े बेमन से आई थी वो, ये सोचकर कि वृद्धाश्रम है तो क्या होगा, ग्रुप के लोग कुछ खाना-फल दान करेंगे, होली का टीका लगाएंगे और फोटो खिंचवायेंगे। लेकिन यहाँ का माहौल देखकर वो हैरान हो गई और हर बार आने का वादा करके हमसे विदा हुईं।
# हमारी छोटी सदस्या मीशा को उसके नाना 2 दिन पहले दिल्ली ले गए थे, तो सिर्फ यहाँ आने के नाम पर वहाँ नहीं जाना चाहती थी। रात को सारी बातें फोन पर सुनकर बहुत दुखी हुई कि वो यहाँ क्यों नहीं थी।
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