Bolte Vichar 11
आलेख व स्वर - डॉ.रमेश चन्द्र महरोत्रा
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बच्चों की हर माँग को पूरा करते चले जाना भविष्य की दृष्टि से कोई सही कदम नहीं है। कहते हैं कि अधिक लाड़ से बच्चा सिर पर चढ़ता है; उस की ज़रुरत से ज़्यादा इच्छाऐं पूरी करने से उस की आदत खराब होती हैं। माँ यदि उसकी बढ़ती हुई मांग के अनुसार उसे सब-कुछ देती रहती है, तो एक दिन ऐसा ज़रुर आ जाता है, जब माँ की असमर्थता का ध्यान न रखते हुए बिगड़ा हुआ लड़का यह कह बैठता है कि उस की आदतें माँ ने ही बिगाड़ी हैं। माँ उसकी बुरी न बनती, यदि वह उसकी अपेक्षाओं को इतना अधिक न बढ़ाती। एक एम.ए. पास लड़की यह कहते हुए सुनी गई कि उस की बहुत ही अच्छी दीदी ने उसे पूरी तरह से बिगाड़ दिया, क्योंकि दीदी ने घर के किसी काम में उसे हाथ भी नहीं लगाने दिया। लड़की की शिकायत थी चूंकि उस का सारा काम दीदी ही कर देती थी, इसलिए वह फूहड़ रह गई।
परोपकार बहुत अच्छी चीज़ है, पर इतना परोपकार नहीं किया जाना चाहिए कि उस से खुद परोपकार करने वाला व्यक्ति एकदम निर्वस्त्र हो जाए और जिस पर परोपकार किया जा रहा है वह भस्मासुर बन जाए। भलाई करने के लिए कड़ाई भी ज़रुरी है। आदमी स्वयं अपना भला भी नहीं कर सकता, यदि वह अपने ऊपर भिन्न-भिन्न प्रकार के बंधन न लगाए।
दूसरों की मदद करने में एक पहलू और विचारणीय है। अपनी भलमनसाहत में आप जिसकी मदद करते हैं, यदि उस से बदले में कुछ चाहते हैं, तो आप को दुख मिलने की संभावना रहती है। प्रतिदान की अपेक्षा वाली ऐसी भलाई सौदेबाज़ी के समान हो जाती है, इसीलिए ‘‘नेकी कर दरिया में डाल’’ वाला सिद्धांत बहुत सुखकर माना गया है। बड़े नहीं आप बहुत बड़ें बने रहेंगे यदि आपने किसी पर अहसान के बदले में उस से कुछ नहीं चाहा। आप सत्कर्म कीजिए; यदि बदले में आप के प्रति सत्कर्म नहीं किया जा रहा है, तो आप यह समझ लीजिए कि यह ज़रुरी नहीं है कि जितने अच्छे आप हैं, दूसरा भी उतना ही अच्छा होगा। इस तथ्य को कोई नहीं नकार सकता कि कुछ लोग अयोग्य और बेईमान होते हैं, इसलिए आप को यह मान कर चलना होगा कि आप कितने भी परोपकारी हों- आप किसी प्रतिदान को पाने के कितने भी अधिकारी हों - आप के कुछ-न-कुछ काम हमेशा अधूरे पड़े रहेंगे। शिकायतें करने पर भी कुछ नहीं होगा, क्योंकि अयोग्यता और बेईमानी ऊँचे पदों पर बैठे लोगों में भी खूब मौजूद रहती है। दुनिया सरल नहीं काफी पेचीदी है। यदि सरल होती, तो हर आदमी परमार्थ करता और आप भी परमार्थ को पूरी पारंगतता के साथ निभा कर संसार में सतयुग ले आते। लेकिन दुनिया की पेचीदगी देखते हुए आप यह निर्णय करना कभी पसंद नहीं करेंगे कि आप अपना ‘जीवित शरीर’ नोच-नोच कर चील-कौवों को खिला दें। परमार्थ अवश्य करें- वह मानवता का परिचायक है- पर पात्रता देखकर। ऐसा न हो कि आप के द्वारा दी जा रही मदद के चक्कर में आप का शोषण शुरु हो जाए- आप लूट लिये जाऐं।वैसा हो जाने पर आप आगे परोपकार कैसे पाऐँगे? अपने को ठीक रखकर ही आप दूसरों का अच्छा इलाज कर सकते है।
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प्रेरक विचार।
ReplyDeleteसच कहा है, किसी की जरूरत से ज्यादा मदद करना बाद में स्वयं के लिए तकलीफदेय होता है।
जीवन की सच्चाईयों पर आधारित इस प्रेरक लेख के लिए आपका आभार।
कुछ लोग भला करने पर ही उतारू हो जाते हैं और आजकल तो सेवा-प्रदाताओं की कमी नहीं, जो प्रत्येक व्यक्ति में संभावित ग्राहक तलाश कर मदद? के लिए तत्पर है.
ReplyDeleteapne bilkul thik kaha hai main is bat se sahmat hu
ReplyDeletesaarthak vichaar....
ReplyDeletesaadar...