Sunday, September 25, 2011

Bolte Vichar 18 - व्यस्तता या प्राथमिकता?

बोलते वि‍चार 18

आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा

जब आपका कोई मित्र या संबंधी आदि आपसे बार-बार अपनी व्यस्तता की दुहाई देता हुआ यह कहने लगता है कि उसे बिलकुल समय नहीं मिल पा रहा है, वह कामों से बहुत घिरा है तो समझ लीजिए कि अब वह आपये दूर ‘खुद में और अन्यों में’इतना अधिक लीन हो चुका है कि आपको थोड़ा भी समय देने में तकलीफ महसूस करने लगा है। उसकी बहानेबाजी को भाँपिए और जान लीजिए कि अपने को महीनों तक हर वक्त व्‍यस्त खुद को जरूरत से ज्यादा महत्‍व देना और सामनेवाले के अस्तित्व की बिलकुल परवाह न करना है।


संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता,जिसे साँस लेने की फुरसत न मिलती हो (मुहावरे के मज़ाक को छोडि़ए)देश के प्रधानमंत्री तक के पास निकट के और दूर के लाखों के लिए समय होता है। वे अपने इच्छा के (और अनिच्छा के भी) कामों में किसी भी सामान्य आदमी से कम व्यस्त नहीं होते,बल्कि शायद यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि वे ही नहीं,अपने-अपने हिसाब से प्रत्येक व्यक्ति होता है-कोई मजदूरी-नौकरी में, कोई घर-गृहस्थी में, कोई रेडियो-टी.वी. में, कोई खाने-सोने में।
व्यस्तताएँ सिर्फ दूसरों को बताने के लिए होती हैं, जबकि मूल में ‘सिर्फ अपनी प्राथमिकताएँ’ होती हैं। प्रत्येक सामान्य आदमी दिन भर में दर्जनों छोर्ट-बड़े काम करता है और दर्जनों स्थगित कर देता है-अपने भी,दूसरों के भी। उन सबमें वह अपनी प्राथमिकताएँ ढूँढता है। व्यस्तताओं का  आधार प्राथमिकताओं के अलावा कुछ नहीं है। वह बात आगमी तथ्य से भी पुष्ट हो जाती है कि कभी-कभी अन्य प्राथमिकता के कारण भारी-भरकम समारोह तक आखिरी मौके पर रद्द कर दिए जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति ‘व्यस्त’ रहता है तो वह किसी पर अहसान नहीं करता है; क्योंकि वह जो कुछ भी करता है, ‘सिर्फ अपने लिए’ करता है-स्वेच्छा से या मजबूरी में। ‘मजबूरी में’ भी ‘सिर्फ अपने लिए’ इसलिए कि यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसका अपेक्षाकृत अधिक नुकसान होने की स्थिति बन जाएगी। इसी तरह जब वह ‘दूसरों के लिए’व्यस्त रहता है तब भी वह ‘अपने लिए’ ही जीता है-अपने कर्तव्य के लिए’ व्यस्त रहता है तब भी वह ‘अपने लिए’ ही जीता है-अपने कर्तव्य के लिए व्यस्त रहकर, अपने संतोष के लिए व्यस्त रहकर, अपने नाम और यश के लिए व्यस्त रहकर।
असल बात यह है कि कर्म को जीवन की अनिवार्यता माननेवाले व्यक्ति ‘व्यस्तता’ और ‘रिक्तता’ में से सदा ‘व्यस्तता’ को चुनते हैं।’ आराम हराम है’ उक्ति के पीछे भी यही उद्देश्य है कि आदमी खाली न रहे,वह अपने और समाज के उत्‍तरोत्‍‍तर विकास के लिए निरंतर कार्यरत रहे। हाथ पर हाथ रखकर बैठनेवाले व्यक्ति को भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। ‘कर्महीन’ शब्द इसीलिए गाली बन गया है।
यदि निठल्लों की बात छोड़ दी जाए तो सामान्यतया हर आदमी अपने आगामी दिनों में    अधिकाधिक व्यस्त होता जाता है,क्योंकि उसके संबंध और दायित्व बढ़ते जाते है। आज आपके जितने परिचित हैं। कल उससे अधिक संख्या में हो जाएँगे। नए-नए संबंधों के नित्य बढ़ते जाने के कारण आपके लिए यह संभव नहीं रह जाता कि आप पिछले सारे संबंधों को उसी घनिष्ठता और तीव्रता के साथ बनाए रख सकें। माँ-बेटी तक के संबंधों के बारे में यह सच्चाई है कि बेटी की शादी के बाद जैसे-जैसे समय का अंतराल बढ़ता जाता है तब पीछे की चीजें छूटना जरूरी हैं। हम आगे के दिनों में अपने संबंधों के मामले में ही नहीं,यदि किसी भी मामले में आगे नहीं बढ़े तो जहाँ-के-तहाँ रूके रह जाएँगे। हर प्रवाह का यह वैशिष्ट्य रहता है कि पुरानी चीजें जाती रहती हैं और नई चीजें आती रहती हैं;नए-नए विचार मन में आते जाते हैं और विचार दबते चले जाते है; ‘पुराना’ मरता जाता है, ‘नया’ पैदा होता जाता है। यदि केवल पुरानों से हमने सारी जगह घेरे रखी तो नयों के लिए जगह नहीं बचेगी।

एक घटनाक्रम इस प्रकार है। पहले साल गुरूजी के शिष्यों में से दस ने उन्हें पत्र लिखें। उन दसों को गुरूजी के उत्‍तर मिले। अगले साल ऐसे दस शिष्य और बढ़ गए। अब गुरूजी बीस उत्‍तरों के लिए बँध गए। यह सिलसिला आगे बढ़ने पर गुरूजी अपने सबके सब पुराने और नए शिष्यों को पत्रोत्‍तर देने में कमजोर पड़ने लगे। नयों से संपर्क बढ़ने की कीमत पर पिछले कितने ही शिष्यों से पत्राचार बनाए रखने की क्षमता गुरूजी में नहीं बची। कुछ समय बाद उन्हें अपने अनेक शिष्यों से संबंध कम करने ही पड़े। यदि वे ऐसा न करते तो पढ़ाना-लिखाना आदि छोड़कर दिन-रात चिट्ठियाँ ही लिखते रहते। श्रीकृष्ण जी भी जब द्वारिका गए तब व्रजवासियों से अपना संबंध बनाए नहीं रख सके।
इस सब चर्चा के संदर्भ में चिंतन के लिए आधार वाक्य यह बनता है कि अपनी चाहत के सामने दूसरों की व्यस्तताओं और दायित्वों के बारे में ने सोच पाना हमारा अज्ञान भी ही और हमारी स्वार्थपरता भी।

Production - Libra Media Group, Bilaspur (C.G.) India

4 comments:

  1. अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  2. सर को प्रणाम, बहुत सुन्दर प्रस्तुति, ज्ञानवर्धक.

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  3. बहुत कीमती सीख दी मेहरोत्रा सर ने। धन्यवाद कमल भाई आपने फेसबुक के जरिये इस ब्लाग तक पहुंचाया। संज्ञा जी, आप इस ब्लाग को रेगुलर अपडेट करती रहेंगी, ऐसी उम्मीद है।

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  4. महरोत्रा जी नमस्कार...
    आपके ब्लॉग 'सीजी स्वर' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 23 अगस्त को 'व्यस्तता या प्राथमिकता?' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
    धन्यवाद
    फीचर प्रभारी
    नीति श्रीवास्तव

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