Wednesday, November 9, 2011

बोलते वि‍चार 31 - जबान की कीमत

                                    जबान की कीमत

    आपने एक दुकानदार को नेम-प्लेट बनाने के लिए दी। उसने कछ एडवांस लेकर आपसे कहा कि आप उसकी दुकान पर अगले बुधवार को पहुँच जाएँ। आप बुधवार की शाम को पहुँचे। आपको जवाब मिला - ‘परसों आ जाइए साहब, बस थोड़ा साकाम बच गया है।’
    आपने दर्जी को कुरता-पाजामा सिलने को दिया। उसने आपको एक सप्ताह बाद बुलाया। आप उसके पास आठवें दिन पहुँचे। दर्जी ने आपसे कहा कि अभी तीन दिन और लग जायेंगे। आप वहाँ चैथे दिन गए। कुरता-पाजामा तब भी तैयार नहीं था।



    आपने प्रेस में कुछ छपने के लिए दिया। काम लेते समय प्रेस वाले ने बेहतद शराफत दिखाई और वचन भरे; पर बाद में उसने अपनी जबान तीन बार पलटी कि कल जरूर दे दूँगा।
    आपने बढ़ई सेअपने घर पर काम करवाने के लिए बात पक्की। वह आपको भरपूर विश्वास दिलाकर भी अपने बताए हुए दिन पर नहीं आया।
    यह क्या होता जा रहा है आदमी की जबान को और उसके द्वारा दिए गए भरोसे को ! काम आपका, पैसा आपका, समय आपका, आने-जाने की कसरत आपकी, सहनशीलता की परीक्षा भी आपकी।
    अपने शब्दों की लाज न रखने वाले उपर्युक्त प्रकार के व्यक्तियों का चरित्र निम्न स्तर का होता है, क्योंकि वे अपने प्रिय ग्राहकों के साथ विश्वासघात करते हैं।
    आदमी को अनमोल बोलों का धनी बनने के लिए अपनी कथनी-करनी में भेद न करने का वशीकरण यंत्र बनाना पड़ता है।
    अपना तात्कालिक काम निकालने के लिये बहकाने वाली जबान का इस्तेमाल करने वाले आगे-पीछे निश्चित रूप से लोगों की नजरों से गिर जाते हैं। दूसरी ओर, अपनी जबान का इन्सानी उपयोग करने वालों का कद समाज में कितना ऊँचा उठता चला जाता है, उसे उनके मुँह से दिन-रात निकलने वाली सूक्तियाँ बताती हैं। अच्छा आदमी अपनी जबान को चमड़े का कामचलाऊ टुकड़ा नहीं, मानवता का कवच मानता है।

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