बोलते विचार 40
आलेख व स्वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा
एक विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष किसी बैठक में शामिल होने के लिए एक अन्य विश्वविद्यालय गए थे, जहाँ उन्होंने वहाँ के अपने विषय के विभागाध्यक्ष से किसी ऐसे व्यक्ति का नाम सुझाने को कहा, जिसे वे अपने विश्वविद्यालय में नियुक्त करा सकें। दूसरे विभागाध्यक्ष ने अपने जाने-पहचाने एक व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यताओं का धुआँधार गुणगान कर डाला। पहले विभागाध्यक्ष पर्याप्त संतुष्ट होते हुए बोले कियह सब बिलकुल ठीक हैं, पर अब यह बताइए कि वह ‘आदमी’ कैसा है? उनका मतलब यह था कि वह व्यक्ति शैक्षणिक दृष्टि से चाहे कितना भी अच्छा हो, पर यदि आदमी के रूप में अच्छा नहीं है तो बिलकुल बेकार है। सिद्ध है कि सदाचार का नंबर पहले आता है, विद्वत्ता का बाद में।आप किसी अविद्वान, लेकिन शरीफ आदमी को भले ही बरदाश्त कर लें, पर ऐसे विद्वान् को बददाश्त नहीं करना चाहेंगे, जो दुष्ट प्रकृति का हो। रावण बहुत विद्वान था, पर आप उसे पसंद नहीं करते। क्यों?
एक हलका-फुलका उदाहरण लें। यदि किसी बड़े ओहदे पर बैठा हुआ अधिकारी संभ्रांत महिलाओं के भी सामने माँ-बहन की गालियाँ बक देता हो तो उसे आप जरूर निम्न स्तर का कह देंगे।
औलाद वही अच्छी कही जाती जाती है, जो बहुत योग्य और बड़े पद पर आसीन होने के बाद भी अपने अनपढ़ माता-पिता तक के प्रति सदाचारी रहती है (बशर्ते वे भी दुराचारी न हों)।
किसी की विद्वत्ता दूसरों के दिमाग से आगे नहीं बढ़ती, जबकि किसी का सदाचार दूसरों के लि तक पहुँच जाता है। यदि आप दूसरों के दिल को छूना जानते हैं तो आप सदाचार के गुण से युक्त हैं।
दूसरी ओर, यदि कोई परम योग्य वैज्ञानिक अपनी सारी योग्यता केवल विध्वंसकारी वस्तुओं के आविष्कार और निर्माण में लगाता है तो उसे शायद ही कोई व्यक्ति अच्छा आदमी कहना चाहेगा।
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सही है, योग्यता से ज्यादा महत्वपूर्ण सदव्यवहार होता है।
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