BOLTE VICHAR 3
आलेख व स्वर - डॉ.रमेश चन्द्र महरोत्रा
सुख का निवास मन के भीतर है,मन के बाहर नहीं। बाहर सुविधाएं हो सकती हैं,जो आदमी को सुखी बनाने में सहायता पहुंचा सकती हैं, लेकिन कई बार हम ऐसे लोगों को भी सुखी देखते हैं,जिन्हें बहुत ही कम सुविधाऐं प्राप्त होती हैं। हमारे ऋषि-मुनि और योगी तो इस श्रेणी में आते ही हैं,सामान्य सांसारिक भी कभी-कभी सुख की तलाश में सुविधाओं और भोग विलास को स्थान न देकर तीर्थाटन के लिए निकल पड़ते हैं। अनेक बार हम धन संपन्न और धनी-मानी व्यक्तियों को भी सुखी नहीं पाते। वस्तुतः जिसकी ज़रुरतें और अपेक्षाएँ जितनी अधिक होती हैं, वह प्रायः उतना ही सुखों से दूर रहता है। यों तो आवश्यकताओं, अपेक्षाओं, और आकांक्षाओं की कोई सीमा नहीं हो सकती,लेकिन ‘संतोषी सदा सुखी’के अनुरूप संतोष की सीमा हुआ करती है पर असंतोष की कोई सीमा नहीं हुआ करती।
किसी व्यक्ति को दो दर्जन सूटों से भी संतोष नहीं होता,जबकि किसी अन्य का सारा काम दो-तीन जोड़ी कपड़ों में ही चल जाता है। कुछ लोग बड़े से बड़े होटलों में भोजन कर के भी स्वस्थ और खुश नहीं रह पाते,जबकि कुछ लोग ऐसे होटलों की शक्ल देखे बिना भी सुखी पाए जाते हैं। कुछ लोगों को हर व्यक्ति से, हर स्थिति में, और हर बात में शिकायत रहती है,जबकि दूसरे लोग संसार की होनी को यथास्थिति स्वीकार कर के अपने सुखी जीवन में कमी नहीं आने देते। ‘काज़ी जी दुबले क्यों? शहर का अंदेशा’ अरे भाई! यह मानने में कोई झिझक नहीं है कि सब तरफ अपूर्णता है,लेकिन एक विचार यह भी तो है कि पूर्णता का अर्थ समाप्त हो जाना होता है और ‘समाप्त हो जाना’ मृत्यु का भी वाचक है। इसलिए हर वक्त और हर जगह पूर्णता के पीछे पडे़ रह कर अपने मन की शांति को खो देना बुद्धिमानी की बात नहीं है। बाहरी बातें समान रहने पर भी सुख की मात्रा को जितना चाहे बढ़ाया या घटाया जा सकता है। कुछ लोग अपने आत्मीय के मरने पर भी दुःख से स्वयं को पराभूत नहीं होने देते जबकि कुछ दूसरे लोग एक पेंसिल के खो जाने पर भी तीन दिन तक रोते रहते हैं। यह सब इच्छा-शक्ति का खेल है, साधना की बात है, और घटनाओं से विचारों के सामंजस्य का मामला है। मन के सुख की तुलना हम नफरत से कर सकते हैं। नफरत भी चाहे जितनी घटाई या बढ़ाई जा सकती है। आदमी बहुत गुणों से भी नफरत कर सकता है और बहुत बुरे से प्यार भी कर सकता है इससे ज़ाहिर है कि नफरत भी मन के बाहर की नहीं,सुख के समान भीतर की ही चीज़ है।
सार्थक लेख
ReplyDeleteकाफ़ी विचारोत्तेजक आलेख. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
Sach kaha hai. bhautik sukh suvidha man ki shanti ka paryay nahi ho sakti!
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