Thursday, July 28, 2011

बोलते वि‍चार 4 - कर भला, हो भला

BOLTE VICHAR 4

आलेख व स्‍वर - डॉ.रमेश चन्‍द्र महरोत्रा 
कहावत छोटी है, पर बात बड़ी है- 'कर भला हो भला।' इस कहावत के पीछे हल्का फुल्का नहीं हमारे पूर्वजों का बहुत भारी अनुभव छिपा हुआ है; और इसका अर्थ साधारण नहीं, जीवन-दर्शन की दृष्टि से बहुत गहरा है। चाहे आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की दृष्टि से देखें,चाहे ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ और ‘जैसे कर्म करोगे, वैसा ही फल पाओगे’ आदि व्यावहारिक उक्तियों की दृष्टि से देखें, यह कहावत पग-पग पर लागू होती हुई दीखती है।

जानदार जगत् ही नहीं बेजान चीज़ें भी आपका भला तभी करती हैं, जब आप उनका भला करते हैं, अर्थात् वे आपको तभी सुख पहुंचाती हैं जब आप भी उनकी परवाह करते हैं। मान लिया कि आपने अपनी साईकिल या मोटर-साईकिल को रद्दी हालत में रखा है,तो निश्‍ि‍चत है कि वह भी आपको परेशानी में डालेगी, लेकिन यदि आप उसे बढ़ि‍या हालत में रखेंगे, तो आपकी वह आनंददायक सेवा करेगी। आप उस के लात मारिए उसकी तानें आदि टूट जाऐंगी,और आपके चोट अलग से लगेगी। एक बहुत छोटा सा अन्य उदाहरण लें। आप अपने शौचालय को साफ न रखिए। क्या होगा?आप गंदगी से त्रस्त रहेंगे और बीमार भी पड़ सकते हैं। तात्पर्य यह है कि यदि आप भला काम नहीं करेंगे, तो भला परिणाम नहीं होगा।

 यदि आपने दूसरों, पड़ोसियों का, साथियों का और अनजान लोगों का भी बुरा नहीं चाहा है, तो वे आप का भला ही चाहेंगें। ‘आप’ उन सबका थोड़ा-थोड़ा ही भला कर सकते हैं। यदि आप दूसरों की तारीफ़ करते हैं, तो आप को तारीफ़ मिलती है; और यदि किसी को गाली देते हैं, तो बदले में गाली ही मिलती है। अच्छा खा कर देखिये, अच्छा आराम कर के देखिये, अच्छा पढ़ कर देखिये, अच्छे विचार रखकर देखिये आप को अच्छा ही फल मिलेगा।
आप सड़क पर जा रहे हैं, नल खुला पड़ा है। फिजू़ल ही पानी बह रहा है। आप ने तीन-चार सेकण्ड ख़र्च करके वह बंद कर दिया। अब साधारण आदमी की बुद्धि में यह नहीं आएगा कि आपने ‘बहुत ही भला’ काम किया है। वह यह पूछ सकता है कि इस ‘कर भला’ से आप का ‘हो भला’ कैसे है! हमें उसे यह समझाने की ज़रुरत है कि इससे हमारा भला इस प्रकार है कि पानी बरबाद नहीं होने से उसका उत्पादन अपेक्षाकृत कम करना पड़ेगा, हमें पानी की तंगी का सामना नहीं करना पड़ेगा, और उसका मूल्य भी नहीं बढ़ेगा। इसी प्रकार,यदि हम सभी लोग ठान लें कि अपने घर की ही नहीं; जहां कहीं भी बिजली बेकार जल रही है, पंखे बेकार चल रहे हैं, वहां उन्हें ‘कर भला’ के नाम पर आगे बढ़ कर बन्द कर दिया करेंगें,तो देश के लाखों करोड़ों यूनिट व्यर्थ फुंक जाने से बच जाया करेंगे और अंततः हम सभी का भला ही होगा। तब बिजली की कटौतियों से हमें परेषान नहीं होना पड़ेगा और उनके कारण सैकड़ों कारखानों में तैयार होने वाली चीजों के बनने में अड़ंगा नहीं लगेगा।

दूसरों का भला करने वाला व्यक्ति यद्यपि स्वयं अपना भला प्रत्यक्ष रुप से नहीं सोचा करता, किन्तु परोक्ष रुप में उस का भला अवष्य निहित रहता है। इसके विपरीत,मात्र अपना भला सोचने वाला व्यक्ति स्वार्थ का शि‍कार कहा जाता है। ‘परमार्थ’ अर्थात् ‘कर भला’ से बड़े स्वार्थ की सिद्धि होती है और बड़े स्वार्थ को पूरा करने से छोटा स्वार्थ स्वयं सध जाता है। ज़रा सोचिए कि हमारे देश का भला होने से क्या हमारा भला नहीं होगा! यदि कोई विश्‍वविद्यालय अच्छा रहेगा, तो क्या उसके छात्र अच्छे नहीं रहेंगे! हमारे पड़ौस में यदि आग लग गई है और हम उसे बुझाने के लिए दौड़ पड़ते हैं, तो क्या इसमें हमारी भलाई नहीं है! वर्ना क्या वह आग हमारे घर तक नहीं आ सकती थी क्या? एक सर्वेक्षण के आधर पर यह साबित हुआ था कि कॉलोनी का सबसे सुखी परिवार वह था, जिस का हर सदस्य अपने से ज़्यादा दूसरों का ख़्याल रखता था। ज़ाहिर है कि ‘उस का’ ख्याल शेष सभी रखते थे।

निष्कर्ष रुप में यदि हम इन बातों के साक्ष्य पर भला ‘करने’ मात्र को लायें, तो भला ‘होने’ की बात स्वतः पूरी हो जाएगी ।

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