Wednesday, November 2, 2011

बोलते वि‍चार 29 - मीठे व्‍यवहार की सीमा


मीठे व्‍यवहार की सीमा
बोलते वि‍चार 29
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा


‘मीठे बनिए, लेकिन बेहद मीठे हरगिज नहीं, वरना लोग आपको चाट जाएँगे। बहुत कड़वे भी मत बनिए, वरना लोग आप पर थू-थू करने लगेंगे।’ यह सार-विस्तार है एक चीनी कहावत का।

आप मीठे-ही-मीठे पर जीवित नहीं रह सकते। ज्यादा मीठे में कीड़े पड़ जाते हैं। दिन-रात सिर्फ मीठा खाने वाला व्यक्ति मधुमेह रोग को आमंत्रित करता है।

जरूरत से ज्यादा मीठी बातें का मतलब खुशामद होता है। जरूरत से ज्यादा मीठा व्यवहार छिपी हुई धूर्तता का भी लक्षण होता है। कड़ापन अन्यों को सामान्यतया कड़वा लगता है। सच कड़वा होता है। आप कड़ा होना अवश्य सीखें; लेकिन कड़ा-ही-कड़ा होना नहीं, वरना लचकने की जरूरत पड़ने से टूट जायेंगे। बैठने, लेटने, उठने, चलने - सबके लिए लचक की जरूरत पड़ती है।



आप सदा एक ढर्रे पर चलने वाली मशीन नहीं हैं। आपमें विवेक भी है और भावना भी संतुलन रखते हुए आपको कभी मीठा बनना पड़ेगा, कभी कड़वा-दोनों बिना अति के। आप केवल सुस्वादु नहीं देखेंगे। आपको आवश्यकता पड़ने पर नीम की पत्तियाँ भी चबानी होगी। नहीं चबाएँगे तो कड़वी गोलियाँ खानी पड़ेंगी। अच्छी माताएँ अपने बच्चों को इसी प्रकार बड़ा करती हैं लाड़ प्यार भी और अनुशासन भी। जज लोग न्याय करने में मीठे भी रहते हैं और कड़वे भी सीमा तक कड़वे भी। वे गुण-दोष तौलकर आदमी को बाइज्जत बरी भी करते हैं और बड़े-से-बड़ा दंड भी देते हैं।

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