Monday, December 19, 2011

बोलते वि‍चार 41 - कर्म से फल का नाता


इस बात को बच्चे भी सिद्ध कर देंगे कि आदमी का जैसा कर्म होता है वैसा ही उसको फल मिलता हैं, यहीं। आप खुशबूदार फूल सूँघने का ‘कर्म’ कीजिए, आपको अपनी तबीयत खुश होने का अच्छा ‘फल’ मिलेगा। आप बदबू सूँघने का कर्म कीजिए, आपको मन खराब होने का फल मिलेगा।

    
आप संतुलित भोजन कीजिए, आपको अच्छे स्वास्थ्य का फल मिलेगा। आप नाम तक ठूंस-ठूंसकर ऊल जलूल खाइए, आपको सड़े हुए स्वास्थ्य का फल मिलेगा। आप अपने बच्चों को सही मार्ग पर चलाने का कर्म कीजिए, आपको जीवन भी सूखी रहने का फल मिलेगा। आप उन्हे कुमार्ग पर जाने दीजिए, आपका खुद का जीवन भी परेशानियों और निराशाओं से भी जाएगा।

कई बार हम गलत काम से मिली तात्कालिक सफलता से इस भ्रम में रहते हैं कि हमने बाची मार ली-जुए की जीत शुरू मे बहुत अच्छी लगती हैं-लेकिन वस्तुतः किसी बरतन में गंदगी एक सीमा तक ही छिपाई जा सकती है, बरतन भरने के बाद वह चारों ओर गिरकर सड़ाँध फैलाने लगीत है, जिसके फलस्वरूप पूरा समाज उसपर थू-भू करने लगता है।

कई बार हमें लगता है कि हमें अपने अच्छे  कर्मों का सुफल नहीं मिल रहा है। यह भी भ्रम है; क्योंकि यदि हम अच्छे कर्म कर रहे हैं तो हमें सुख का सबसे बड़ा आधार ‘संतोष’ अवश्य मिलना चाहिए। दूसरे, हम अपने कर्मों का मूल्यांकनकर्ता और बदले में मिलनेवाले इनाम का निर्णायक सवयं का समझ बैठते हैं, जबकि निर्णायक होते हैं समाज के सब लोग। धैर्य रखिए, यदि अन्य बातें समान हो तो भोजन को पचकर खून आदि बनने में एक निश्चित समय लगता ही है।
    
‘सुफल’ की परिभाषा भी सरल नहीं हैं। अपने विवेक से हम इस बात को परखें कि अच्छा फल पाने के लिए हम अधिक स्वार्थी तो नहीं हो रहे है। परीक्षा में अच्छे उत्तर लिखनेवाले विद्यार्थी अनेक होते हैं, पर वे सब एक समान बहुत अच्छे अंक पानेवाले नहीं हुआ करते। तुलनात्मकता और आपेक्षिकता अनिवार्य है। कर्मों के मामले में हमें यह तथ्य स्वीकार करना हो पड़ेगा कि कुछ लोगों से यदि हमारे कर्म अच्छे रहते हैं तो हमार कर्मों से भी कुछ लोगों के कर्म अच्छे रहते हैं। इसीलिए यह कहना गलत नहीं है कि ‘फल की चिंता छोड़ दो ‘और’ जो होता है, अच्छा ही होता है’।

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