अच्छा बनने की चाह तो बहुतों में होती है और उसके लिए कोशिश भी बहुत से लोग करते हैं, पर अधिक-से-अधिक लोगों के लिए अच्छा बनकर दिखाने वाले व्यक्ति विरले ही होते हैं। इसका कारण यह है कि अच्छे-बुरे व्यक्ति हमारे अच्छा या बुरा होने का मूल्यांकन करते हैं, उनकी संख्या का भी कोई अंत नहीं है और अच्छाइयों तथा बुराइयों की भी कोई सीमा नहीं है।
अच्छा होने का संबंध मनुष्य के भीतर से भी है और बाहर से भी। बाहर की अपेक्षा भीतर से अच्छा होने का महत्व बहुत अधिक है ; क्योंकि स्वयं को केवल बाहर से अच्छा दिखाने वाले व्यक्ति ढोंगी होते हैं। उनकी पोल आगे-पीछे जरूर खुल जाती हैं। दूसरी ओर, केवल भीतर से अच्छे देर-सबेर दूसरों की नज़रों में अपनी अपेक्षित पहचान और इज्ज़त बना ही लेते हैं। यदि वे बाहर से भी अच्छे हुए, तब सोने में सुहागा है। उन अच्छों की सुगंध फैलते देर नहीं लगती।
उपर्युक्त उच्च अवस्था संत और संन्यासी बनकर प्राप्त करना अधिक सरल है, क्योंकि उन पर पारिवारिक जिम्मेदारियाँ नहीं होतीं और उन्हें सामाजिक आवश्यकताओं और प्रतिद्वंद्विताओं का सामना कम करना पड़ता है। अन्य लोगों को एक-दूसरे की इच्छाओं के पारस्परिक टकराव और बहुत व्यापी ईर्ष्या के कारण अच्छा बनने और बना रहने के लिये विकट संघर्ष करना पड़ता है। संतों और संन्यासियों के निजी जीवन की तुलना में सामान्य आदमियों के जीवन में विरोधों और शत्रुताओं के अवसर अधिक आते हैं। ऐसी स्थिति में भी जो व्यक्ति नैतिक मूल्यों पर खरे उतरते हैं, वे वस्तुतः संतों और संन्यासियों से भी अधिक बड़े हैं और मानव मात्र के लिए आदर्श एवं अनुकरणीय हैं।
गांधीजी ने संसार की कर्मस्थली से बिना अलग हुए यह सिद्ध कर दिखाया कि आदमी सांसारिक गतिविधियों से विरक्त न रहकर भी अधिकाधिक लोगों के लिए अधिकाधिक अच्छा बन सकता है। यही बात गांधीजी के पदचिन्हों पर ईमानदारी से चलने वालों पर लागू है। निष्कर्ष यह है कि अच्छा बनने के लिए संन्यास लेना जरूरी नहीं है, शादी न करना जरूरी नहीं है, चौबीसों घंटे भजन-प्रवचन करना-सुनना जरूरी नहीं है।
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sanyaas ke bina b jivan kram gatiseel hota hai.
ReplyDeleteyaha par bhi aapki sabhi kamnaay puri hongi
khotej.blogspot.com
महरोत्रा जी नमस्कार...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग 'सीजी स्वर' से लेख भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 9 अगस्त को 'सन्यास के बिना भी...' शीर्षक के लेख को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaksarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव