बोलते विचार 65
उधार लेने और देने से बचिए
आलेख व स्वर
डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा
प्रोफेसर साहब ने किसी-किसी दुकान पर लिखे हुए वाक्य ‘उधार प्रेम की कैंची है’ से भारी शिक्षा ली थी। वे अपने प्रेम संबंध किसी से भी खराब नहीं करना चाहते थे, इसलिए वे न तो किसी से रूपए उधार लेते थे और न किसी को उधार देते थे दूसरी ओेर, वे उधार माँगने वाले छोटे-मोटे लोगों की थोड़े बहुत रूपए-पैसों से मदद जरूर करते थे; लेकिन उनसे यह कहे हुए कि ये रूपए वापस नहीं लूँगा इसका मुख्य कारण वे यह बताते थे कि ऐसा करने से उनके मन पर यह बोझ और तनाव बिलकुल नहीं रह जाता था कि वह व्यक्ति ऋणस्वरूप लिये गए रूपए अपनी दी हुई ज़बान के अनुसार समय पर या कभी वापस करेगा या नहीं। हमें ऐसी स्थिति कई बार झेलनी पड़ती है कि हमने तो अपनी शराफत में किसी जरूरतमंद को उसकी मदद के नाम पर रूपए उधार तत्क्षण दे दिए कि वह बेचारा मुश्किल में है और दूसरे, उसने रूपए माँगते समय हमसे दुनिया भर की इन्सानियत दिखाते हुए यह वचन भी भरा कि वह वे रूपए अमुक तिथि को जरूर वापस कर देगा (यहाँ ब्याज के धंधे और लिखत- पढ़त की बात बिल्कुल नहीं है)। पर बाद में उन रूपयों का वापस मिलना‘दर्जनों बार टलती हुई अनिश्चितता’ में बदलता चला गया। प्रोफेसर साहब कहा करते थे कि इस प्रकार वह झूठा और बेईमान ऋणी हमें बेवकूफ बनाने में सफल हो जाता है। वे ऐसे मामलों में अपना भारी सा अहसान ऋण मांगने वाले पर पटक कर शुरू में ही आगामी दुविधा से मुक्त हो जाते थे। और यदि उनसे कोई यह पूछता कि वे रूपए तो क्या तो वे उत्तर देते -
रहिमन के नर मर चुके जे कहुँ माँगन नाहिं।
उनते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहि।।
प्रोफेसर साहब का दृष्टिकोण मानवतावादी था; पर एक बात वे यह भी कहते थे, जो रहीम ने नहीं कही थी, कि उधार लेकर वापस करने का वादा करके उसे न चुकाने वाले कृतघ्न आदमी से एक भिखारी बहुत ज्यादा ईमानदार होता है, क्योंकि यह विश्वासघात नहीं करता। केवल अपना स्वाभिमान खोता है।
Production-libra media group, bilaspur,india
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