दुर्भाग्य की बात है कि विषय के रूप में भाषाविज्ञान या लिग्िवस्टिक्स प्रदेश के चुनिंदामहावदि़यालयों व वि.वि. में ही उपलब्ध है। भाषाविज्ञान जैसे भावाभिव्यक्ति के विकास के लिये अति महत्वपूर्ण विषय को इस क्षेत्र में वह मुकाम, वह सम्मान हासिल नहीं हुआ जैसा दीगर प्रांतों और विदेशों में हासिल हुआ है।
ऐसे में सुखद आश्चर्य ही कहा जाएगा कि ब्रितानी हुकूमत ने छत्तीसगढ़ की बोलियों पर एक सदी पूर्व उस काम को अंजाम दिया जिसे आज भाषावैज्ञानिक विरासत के रूप में सहेज सकते हैं। उनके द्वारा उस समय किये गए सर्वेक्षण और अध्ययन की गूँज में आज भी मधुरस की मिठास बरकरार है।
बानगी देखिये बिलासपुर भास्कर सोमवार 22 नवंबर के अंक में छपी श्री संजीव पाण्डेय की रिपोर्ट में और उसके बाद सुनिये श्री आलोक पुतुल द्वारा सीजी स्वर को उपलब्ध करवाए गए उसी कार्य की रिकॉर्डिंग। ये याद रखें जनाब कि अच्छी खासी रिकॉर्डिंग 100 साल पहले भी होती थी।
श्री आलोक पुतुल व श्री संजीव पांडेय को कोटिशः बधाइयां और सीजी स्वर की तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद।
गजब की जानकारी. आभार.
ReplyDeleteश्री आलोक पुतुल व श्री संजीव पांडेय के साथ ही आपको इसे यहां सुविधापूर्ण रूप से प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteमेरे हमनाम संजीव जी को भास्कर में छत्तीसगढ़ से ब्लॉग हलचलों के संबंध में ऐसी ही फ्रंटपेजिया जानकारी कभी प्रस्तुत करनी चाहिए ताकि वेबप्रमोटरों-ब्लॉगमाडरेटरों को प्रोत्साहन मिले।
very good
ReplyDeletevery nice rajendra kashayap
ReplyDeleteIts a new experience for me.I didn't know about podcast....it's great work.I would also like to join the company of your pod casters.....
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