Tuesday, December 7, 2010

सुगंध की दुनिया

कविता के आंचल से लेकर,
आसव मृदु वाणी वाला।
भीने भावों के फूलों से,
गूँथ रही हूँ यह माला।
‘गीत’ हृदय का जीवन धन है,
इस का रंग दिखाने को,
‘गीतों’ के संग परस रही हूँ,
अर्क ‘सुगंध’ का यह उपवन।
सुगंध-जो देती है अहसास शांति, आनंद ओर पवित्रता का। हमें सरोबार कर देती है प्रेम और भावनाओं से, आल्हादित कर देती है उमंगों से ओर याद दिला देती है अनेक रंग बिरंगे खुशबूदार फूलों की।



यूँ तो फूलों की सुंदरता, मनमोहक रंग, पुष्परस ओर उसकी सुगंध मानव को हमेशा से प्रफुल्लित एवं आकर्षित करती आई है, पर दरअसल ये सब प्रकृति प्रदत्त गुण हमारे लिए नहीं वरन् उड़ने वाले कीट-पतंगों को आकर्षित करने के लिए हैं। फूलों के रंग, रस और ख़ासतौर पर सुगंध के कारण कीट-पतंगे आकर्षित होकर जब इन पर बैठते हैं, तो वे अपने साथ फूलों के परागकणों को दूसरे फूल तक ले जाते हैं ओर इन्हीं परागकणों से फूलों में गर्भाधान की क्रिया होती है, जिससें फल और बीज बनते हैं। आप सोच रहे होंगे माधुर्य ओर साहित्य से हम विज्ञान तक कैसे पहुँच गए, लेकिन ज़रा ये भी तो सोचिए कि सुगंध का कितना बड़ा योगदान होता है पेड़-पौधों का वंश चलाने में।
हम सब सुमन एक उपवन के,
सबके लिए है सुगंध हमारी।
हम श्रृंगार धनी निर्धन के,
लेकिन हम सबसे मिलकर ही,
है उपवन की शोभा सारी।
        
जहाँ तक बात आती है हम इंसानों की, तो हमने सुमन से सुगंध को भी अलग निकाल लिया है और जिनसे निर्माण किया इत्र, परफ्यूम ओर सेंट आदि का । दरअसल अलग-अलग फूलों में अलग-अलग तरह के तेल होते हैं, जो धीरे घीरे वाष्पित होते हैं और हमें गंध का अनुभव होता है। फूलों के इन्हीं तेलों से इत्र बनता है। आपके लिए दो जानकारियाँ और गुलाब के सिर्फ एक औंस इत्र के लिए 250 पौंड गुलाब के फूलों की आवश्यकता पड़ती है ओर एक बेहतरीन इत्र में 200 से भ ज़्यादा प्रकार के पदार्थ हो सकते हैं। और हाँ अपने देश में कन्नौज में सबसे ज़्यादा इत्र का निर्माण होता है। किसी शायर ने क्या ख़ूब कहा है -
फूल डाली से गुंथा ही झड़ गया है,
और घूम आई गंध पूरे संसार में।
       
इत्र, खुशबू, सुगंध इन शब्दों से जुड़ा एक नाम तुरंत दिमाग में आता है - वो है कस्तूरी। जिसे उत्तम किस्म के साबुन और इत्र के लिए प्रयोग में लाया जाता है।इसकी सुगंध बहुत मनमोहक होती है। दरअसल कस्तूरी मृग में एक ख़ास तरह की सुगंध होती है। ये मृग एकांत में रहने वाला छोटा सा जानवर है, जो साइबेरिया से लेकर हिमालय तक पाया जाता है। इसका रंग भूरा, कत्थई, कान बड़े, पूँछ छोटी, ऊँचाई 50-60 से.मी.होती है।ओर ये बिना सींगों वाला जानवर होता है। ताज़ी कस्तूरी गाढ़े द्रव के रूप में होती है, लेकिन सूखने पर दानेदार चूर्ण में तब्दील हो जाती है।
आ रही सुरभि की आँधी जो हर उपवन में,
पतझर कौन सा है, जो उसको टोकेगा।
रे, गंध नहीं बाँधी जा सकती ताकत से
है कौन सा तूफान जो इसको राकेगा।
   
कोमल गुलाब के नाज़ुक होंठों के गाने उठा लाया था।
गंध तुम्हारी थी, मै। तो बस बनकर सुमन चुरा लाया था।
खुशबुओं से लबरेज हम मिले हँसते गुलाबों से, महकते चमन से, कुलांचे भरते कस्तूरी मृग से और अब मिलते हैं खुशबुओं के शहंशाह से।
प्राचीनकाल से ही जिस वृक्ष को पवित्र, सुगंध का दाता माना गया, वह है चंदन। पूजा-अर्चना, अगरबत्ती, साबुन, इत्र, श्रृंगार के साथ तारीर में ठंडा होने के कारण औषधि के रूप में भी इसका बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। चंदन की लकड़ी की गणना सर्वाधिक मँहगी वस्तुओं में होती है। अत्यंत दुर्लभ हो रहे ये वृक्ष भारत में मुख्यतः मैसूर के वनों में पाए जाते हैं।
रूप यह मेरा नहीं है,
छाँहश्री उस नयन की,
ज्योति गंध, सुगंध,
चंचल चमक, चंदन बदन की।

चंदन सा बदन या चंदन की महक वाला बदन तो काव्य में ही पाया जा सकता है। लेकिन ये बात सच है कि हर बदन, हर शरीर में अपनी एक विशिष्ट गंध होती है।प्रत्येक व्यक्ति के शरीर से अलग प्रकार की गंध आती है। इस गंध का मुख्य कारण वे जीवाणु हैं, जो व्यक्ति विशेष के पसीने में पलते है। बच्चा जब पैदा होता है, तो माँ, नर्स, डॉक्टर एवं अन्य व्यक्तियों के संपर्क में आता है और बहुत से जीवाणु प्राप्त कर लेता है। ये विभिन्न जीवाणु हमारी त्वचा को ढँक लेते हैं और स्थायी रूप से जम जाते हैं। शरीर की त्वचा के गीले भागों में सूखे भागों की अपेक्षा ज़्यादा जीवाणु होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की त्वचा पर जमा होने वाले जीवाणुओं की अलग-अलग किस्में होती हैं, जो अलग-अलग गंध पैदा करते हैं। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति के शरीर से आने वाली गंध भी अलग-अलग होती है। और यही कारण है कि अपराधी पुलिस के कुत्तों से भागे-भागे फिरते है।
       
वैसे एक गंध और है, जिसका इंतज़ार हम सब बेसब्री से करते रहते हैं और वो गंध है बारिश की शुरूवाती फुहार के बाद आने वाली माटी की भीनी-भीनी, सोंधी-सोंधी गंध। मिट्टी में वैसे भी भावुकता भरी सुगंध या खुशबू पायी जाती है। मेरे देश-वतन की मिट्टी की सुगंध हर परदेस गए वतन परस्त देश भक्त को बेहद सताती है।
       
और अंत में एक सीधी-सादी, सच्ची बात -ख़ुशबू, महक, सुगंध का महत्व तभी तक है जब तक मनुष्य के पास नाक है। नाक नहीं, तो कोई सुगंध नहीं। दरअसल गंधों के कण नाक के अंदर जाकर ऑलफैक्टरी नर्व की कोशिकाओं में षुलकर विद्युतधारा के रूप में गंध का संदेश मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं और हमें गंध का पता चल जाता है। वेसे एक सिद्धांत के अनुसार गंध सात प्रकार की होती है - फूलों से आने वाली गंध, तीखी गंध, जलने की गंध, एल्कोहल जैसी गंध, फलों की गंध, कस्तूरी जैसी गंध और पिपरमेंट वाली गंध। तो श्रोताओं, नाक तो आप सब के पास है। सुगंधों का आनंद उठाइए, पर थोड़ा स्वास्थ्य पर भी ध्यान दीजिए, क्योंकि साधारण सा ज़ुकाम भी आपको आपकी पसंदीदा सुगंध से वंचित कर सकता है। पर घबराइये नहीं हमने तो आपको सि‍र्फ सावधान कि‍या है,वि‍ज्ञान ने इलाज तो अनेक ढूंढ नि‍काले हैं...करवा लीजि‍ये एलर्जी टेस्‍ट और बचा लीजि‍ये अपनी नाक की तुनकि‍मजाजी को।

तो सुगंध की बातों की दुनि‍या से अब हमें दीजि‍ये ‍वि‍दा, लेकि‍न दुआ करेंगे कि आपके जीवन से सुगंध कभी भी न ले वि‍दा।‍
       
पॉडकास्‍ट में शामिल गीत-
प्रेमगीत -- आओ मिल जाएँ हम सुगंध और सुमन की तरह......
उत्सव -    मन क्यों बहका रे बहका........
डर-        जादू तेरी नजर, खुशबू तेरा बदन
सरस्वती चन्द्र - चंचल सा बदन, चंचल चितवन.......
तुमसे अच्छा कौन है -    रंगत है तेरे चेहरे की........
ममता - रहे रहे ना हम महका करेंगे

3 comments:

  1. पाडकास्‍ट के स्‍वरों और शव्‍दों में सुगंध बिखेरते इस पोस्‍ट के लिये धन्‍यवाद.

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रयास....शुभ्काम्नाये....

    ReplyDelete