मानव की महत्वाकांक्षा को आसमान की ऊँचाईयों तक ले जाने वाली पतंग कहीं शगुन और अपशकुन से जुड़ी है तो कहीं ईश्वर तक अपना संदेश पहुंचाने के माध्यम के रूप में प्रतिष्ठित है। मकर संक्रांति को 'पतंग पर्व' भी माना जाता है। देशभर में इस अवसर पर पतंग उड़ा कर मनोरंजन करने का रिवाज है। पतंग उड़ाने की यह परंपरा बहुत प्राचीन है। प्रमाण मिलते हैं कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी! 'पतंग' शब्द बहुत प्राचीन है। सूर्य के लिए भी 'पतंग' शब्द का प्रयोग हुआ है। पक्षियों को भी पतंगा कहा जाता रहा है। 'कीट-पतंगे' शब्द आज भी प्रयोग में है। संभव है इन्हीं शब्दों से वर्तमान पतंग का नामकरण किया गया हो। शायद आसमान के नक्षत्र और उड़ते पक्षियों को देखकर मनुष्य के मन में कुछ उड़ाने की प्रेरणा मिली हो। संभव है इसी से पतंग का सामंजस्य बिठाया गया होगा। कुछ भी हो, पतंग उड़ाने की प्रथा प्राचीन होते हुए भी सार्व-देशीय भी है।
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कुछ धार्मिक भाव भी प्रकट होता है। इस दिन सूर्य मकर से उत्तर की ओर आने लगता है। सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में पतंग उड़ा कर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है तथा आंतरिक आनंद की अभिव्यक्ति की जाती है।
मकर संक्रांति पर्व पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं अपितु मनोवैज्ञानिक पक्ष है। पौष मास की सर्दी के कारण हमारा शरीर कई बीमारियों से ग्रसित हो जाता है जिसका हमें पता ही नहीं चलता। इस मौसम में त्वचा भी रुखी हो जाती है। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब इसकी किरणें हमारे शरीर के लिए औषधि का काम करती है। पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है जिससे अनेक शारीरिक रोग स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं।
हजारों वर्षो से मनुष्य पक्षी को उड़ता देखता आया है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन मे एक बार पक्षी की तरह उड़ने की इच्छा जरुर होती है । इतिहास इसकी गवाही देता है कि आकाश मे उड़ता पतंग विमान का पूर्वज है। पतंग उडाना , पेंच लडाना तथा कटता पतंग देखकर आनंद लुटने तक ही आज हम पतंग को जानते है। लेकिन पतंग की मात्र यही कहानी नही है, पतंग का रोचक इतिहास करीब २००० हजार साल पुराना है। सबसे पहली किसने पतंग बनाई और उडाई इसका कोई इतिहास नहीं मिलता है। लेकिन लोगों का मानना है कि चाइनीज किसान ने हवा मे उड़ती अपनी टोपी को डोरी से बाँध कर हवा में लहराया था, तब से पतंग की शुरुआत हो गई। ई.सन.पूर्व दूसरी सदी से द्वितीय विश्व युद्ध तक पतंगों का विविध रूप से उपयोग के प्रमाण मिलते है। पतंग का उपयोग जासूसी करने, दुश्मन पर हमला करने, बिना घोडों के गाडी चलाने में तो कहीं बोट को चलाने में, कहीं लोगों ने मछली पकड़ने मे भी इसका उपयोग किया। माना जाता है कि पतंग चीन से बौद्घ साधुओ के साथ जापान गया और फिर दक्षिण-पश्चिम वर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया होते हुए भारत मे पहुंची। ये भी माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व तीसरी सदी में चीन में हुआ था। दुनिया की पहली पतंग एक चीनी दार्शनिक मो दी ने बनाई थी। इस प्रकार पतंग का इतिहास लगभग २,३०० वर्ष पुराना है। पतंग बनाने का उपयुक्त सामान चीन में उप्लब्ध था जैसे:- रेशम का कपडा़, पतंग उडाने के लिये मज़बूत रेशम का धागा और पतंग के आकार को सहारा देने वाला हल्का और मज़बूत बाँस। चीन के बाद पतंगों का फैलाव जापान, कोरिया, थाईलैंड, बर्मा, भारत, अरब, उत्तर अफ़्रीका तक हुआ।
पतंग का अंधविश्वासों में भी विशेष स्थान है। चीन में किंन राजवंश के शासन के दौरान पतंग उड़ाकर उसे अज्ञात छोड़ देने को अपशकुन माना जाता था। साथ ही किसी की कटी पतंग को उठाना भी बुरे शगुन के रूप में देखा जाता था। पतंग धार्मिक आस्थाओं के प्रदर्शन का माध्यम भी रह चुकी है। थाइलैंड में हर राजा की अपनी विशेष पतंग होती थी जिसे जाड़े के मौसम में भिक्षु और पुरोहित देश में शांति और खुशहाली की आशा में उड़ाते थे। यहां के लोग भी अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए वर्षा ऋतु में पतंग उड़ाते थे। दुनिया के कई देशों में २७ नवंबर को पतंग उडा़ओ दिवस (फ्लाई ए काइट डे) के रूप में मनाते हैं। पतंग उड़ाने का शौक चीन, कोरिया और थाइलैंड समेत दुनिया के कई अन्य भागों से होकर भारत में पहुंचा। देखते ही देखते यह शौक भारत में एक शगल बनकर यहां की संस्कृति और सभ्यता में रच-बस गया। खाली समय का साथी बनी पतंग को खुले आसमान में उड़ाने का शौक बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के सिर चढ़कर बोलने लगा। भारत में पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इस साधारण सी हवा में उड़ती वस्तु पर भी कविताएँ लिख डालीं।
पतंग एक धागे के सहारे उड़ने वाली वस्तु है जो धागे पर पडने वाले तनाव पर निर्भर करती है। पतंग तब हवा में उठती है जब हवा का प्रवाह पतंग के उपर और नीचे से होता है, जिससे पतंग के उपर कम दबाव और पतंग के नीचे अधिक दबाव बनता है। यह विक्षेपन हवा की दिशा के साथ क्षैतिज खींच भी उत्पन्न करता है। पतंग का लंगर बिंदु स्थिर या चलित हो सकता है। पतंग आमतौर पर हवा से भारी होती है, लेकिन हवा से हल्की पतंग भी होती है जिसे हैलिकाइट कहते है। ये पतंगें हवा में या हवा के बिना भी उड़ सकती हैं। हैलिकाइट पतंगे अन्य पतंगों की तुलना में एक अन्य स्थिरता सिद्धांत पर काम करती हैं क्योंकि हैलिकाइट हीलियम-स्थिर और हवा-स्थिर होती हैं।
यूरोप में पतंग उड़ाने का चलन नाविक मार्को पोलो के आने के बाद आरंभ हुआ। मार्को पूर्व की यात्रा के दौरान प्राप्त हुए पतंग के कौशल को यूरोप में लाया। माना जाता है कि उसके बाद यूरोप के लोगों और फिर अमेरिका के निवासियों ने वैज्ञानिक और सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पतंग का प्रयोग किया। ब्रिटेन के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डाक्टर नीडहम ने अपनी चीनी विज्ञान एवँ प्रौद्योगिकी का इतिहास (ए हिस्ट्री आफ चाइनाज साइंस एण्ड टेक्नोलोजी) नामक पुस्तक में पतंग को चीन द्वारा यूरोप को दी गई एक प्रमुख वैज्ञानिक खोज बताया है। यह कहा जा सकता है कि पतंग को देखकर मन में उपजी उड़ने की लालसा ने ही मनुष्य को विमान का आविष्कार करने की प्रेरणा दी होगी।
राजस्थान में तो पर्यटन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है जिसमें जाने-माने पतंगबाज भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त दिल्ली और लखनऊ में भी पतंगबाजी के प्रति आकर्षण है। दीपावली के अगले दिन जमघट के दौरान तो आसमान में पतंगों की कलाबाजियां देखते ही बनती हैं। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी पतंग उडा़ने का चलन है। यद्यपि आज के भागमभाग पूर्ण जीवन में खाली समय की कमी के कारण यह शौक कम होता जा रहा है, लेकिन यदि अतीत पर दृष्टि डालें तो हम पाएँगे कि इस साधारण सी पतंग का भी मानव सभ्यता के विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान है।
राजस्थान में तो पर्यटन विभाग की ओर से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय पतंगबाजी प्रतियोगिता होती है जिसमें जाने-माने पतंगबाज भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त दिल्ली और लखनऊ में भी पतंगबाजी के प्रति आकर्षण है। दीपावली के अगले दिन जमघट के दौरान तो आसमान में पतंगों की कलाबाजियां देखते ही बनती हैं। दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी पतंग उडा़ने का चलन है। यद्यपि आज के भागमभाग पूर्ण जीवन में खाली समय की कमी के कारण यह शौक कम होता जा रहा है, लेकिन यदि अतीत पर दृष्टि डालें तो हम पाएँगे कि इस साधारण सी पतंग का भी मानव सभ्यता के विकास में कितना महत्वपूर्ण योगदान है।
आसमान में उड़ने की मनुष्य की आकांक्षा को तुष्ट करने और डोर थामने वाले की उमंगों को उड़ान देने वाली पतंग भारत मे पतंग के बारे १३वी सदी से १९वी सदी के संतो और कवियों के पदों मे उल्लेख तथा १८वी सदी से १९वी सदी मे लघु चित्रों मे पतंग उड़यन के चित्र मिलते है। संत नामदेव ने पतंग के लिए ' गुड्डी ' शब्द प्रयोग किया, तो मराठी कवि संत एकनाथ ने एवं तुकाराम ने ' वावडी' शब्द प्रयोग किया था। कवि मंझन ने पहली बार पतंग के लिए पतंग शब्द का प्रयोग किया था। जापान के एक शब्दकोश मे पतंग के लिए ' शिरोशी ' शब्द मिलता है। जिसमे 'शि' का अर्थ कागज तथा 'रोशी' का अर्थ पक्षी होता है अर्थात कागज का पक्षी। 1२८२ मे मार्को पोलो ने मानव सहित पतंग उडाने के जोखिम और पतंग उडाने की पद्घति का सचोट वर्णन किया है।
१७४७ में एलेक्जाइनडर ने पतंग उडा कर अलग-अलग ऊंचाई पर तापमान नापने का प्रयोग किया। तो बेंजामीन फ्रेंकलीन ने पतंग उडा कर यह सिद्ध किया कि यांत्रिक रूप से पैदा बिजली और आकाश में चमकती बिजली एक ही है। इस प्रयोग के बाद फ्रांस, जर्मन, इटली और अमेरिका में सिन्गलिंग युद्ध में, टेलीग्राफी, युद्धविराम और जीवनरक्षा के लिए पतंग का उपयोग किया गया। जयपुर के महाराजा खास पर्व पर पतंग उडाते थे, जिसमे ढाई तोले की सोने या चांदी की घुघरी बांधते और पतंगो के पेच लगाते थे। सोने की घुघरी वाली कटी पतंग जिसके हाथ में आती उसके साल भर का खुराकी निकल जाती थी। रामचरित मानस में महाकवि तुलसीदास ने ऐसे प्रसंगों का उल्लेख किया है, जब श्रीराम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी। इस संदर्भ में बाल कांड में उल्लेख मिलता है 'राम इक दिन चंग उड़ाई। इंद्रलोक में पहुँची जाई॥'
'जासु चंग अस सुन्दरताई।सो पुरुष जग में अधिकाई॥'
पतंगें उडती हैं हमारे सपनों से भी उंची और इससे डोर बंधी होती है हमारी इच्छाओं, आकांक्षाओं से भी से भी ज्यादा मजबूत...आपकी इच्छाएं और सपने हकीकत में तब्दील हों, बहुत उंचाइयों तक नाम पहुंचे...हमारी कामना....इस मकरसंक्रांति पर आपके लिये......
पॉडकास्ट में में प्रयुक्त गीत -
चली चली रे पतंग - भाभी
ये दुनिया पतंग- पतंग
पिया मैं पतंग हू तू डोर- रागिनी
अरी छोड दे पतंग मेरी छोड दे - नागिन
ना कोई उमंग है -कटी पतंग
पतग जैसा हवा में लहराए
पतंग वारगी - पंजाबी लोकधुन
मेरी प्यारी पतंग चली बादल के संग - दिल्लगी
ढील दे दे रे भैया - हम दिल दे चुके सनम
प्यार की पतंग की डोर - 5 राइफल्स
पॉडकास्ट में में प्रयुक्त गीत -
चली चली रे पतंग - भाभी
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पिया मैं पतंग हू तू डोर- रागिनी
अरी छोड दे पतंग मेरी छोड दे - नागिन
ना कोई उमंग है -कटी पतंग
पतग जैसा हवा में लहराए
पतंग वारगी - पंजाबी लोकधुन
मेरी प्यारी पतंग चली बादल के संग - दिल्लगी
ढील दे दे रे भैया - हम दिल दे चुके सनम
प्यार की पतंग की डोर - 5 राइफल्स
इस बेहतरीन जानकारी युक्त आलेख के लिए आभार।
ReplyDeleteक्या बात है !
ReplyDeleteक्लिप में बहुत सुन्दर गीतों का चयन किया है और आप का सुन्दर स्वर ...सुनना अच्छा लगा.
पहली बार आप के ब्लॉग पर आई पॉडकास्टिंग ब्लॉग देख कर अच्छा लगा.
jankari ke liye dhanyawad.guj. me to aaj sara din dhol nagado kesath patang udati rahi.ha maine kai bujurg logo se itihas janna chha per jawab santusti nahi de paya. nakhlau me sal bhar patang udai jati hai sirf manoranjan aur samay gujarne ke liye.murgo ki ladai patang bazi hindustan me mugalia badsahon ke manoranjan ko aage badhaya ja raha hai.bengal me patang akchay tritia ke dinudai jati hai aap ke blog se aap ise kaise jod sakengi kripaya batayen sirf jankari ke liye dhanyawad sasneh.
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