अगर हम आपसे पूछें कि ये बचपन आखिर है क्या- तो आपका जवाब क्या होगा- शायद कोई कहे उन्मुक्त आकाश और मजबूत पंख - यही बचपन है। न जवाबदारी, न भय, न जहमत, न तोहमत, बस प्यार, स्नेह वात्सल्य और दुलार - यही होता है बचपन। किसी का जवाब हो सकता है -सीख, संस्कार, समझाइश- यही होता है बचपन या फिर - मुस्कुराहट, खिलखिलाहट, हास-परिहास- ये है बचपन। जवाब ये भी हो सकता है- थोड़ी डाँट, थोड़ी डपट, एक चपत और दो बूंद आंसू- ये है बचपन या-निश्छलता, सरलता, निस्वार्थता और अपनापन- ये है बचपन।
बालसुलभता या बचपना प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद होता है, और आखिर क्यों न हो, हर व्यक्ति ने जीवन के उन बेहतरीन पलों को जिया है, भोगा है, समझा है और आनंद लिया है। स्वर्णिम काल होता है बचपन। और अप्रतिम बचपन का बचपना बढ़ती उम्र के साथ भी अपना अंश, अपनी मौजूदगी बनाए रखता है। मौका-ब-मौका, जाने- अनजाने, प्रत्येक उम्र दराज इसका प्रदर्शन भी करता है और सबको अच्छा भी लगता है- बावजूद इसके उम्र के दूसरे पड़ावों तक पहुँचने के लिए बचपन को बाय-बाय करना ही पड़ता है। कभी न कभी वह अबोध बालपन, भोलापन, हमसे छूट ही जाता है।
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बच्चे की पहली आवाज, उसका रोना, घर के सभी सदस्यों के चेहरों पर मुस्कान ला देता है। बिलकुल वीआईपी होता है बच्चा। चारों तरफ लोगों से घिरा हुआ, जिसकी किलकारी लोगों को खुश और जरा सी पीड़ा भरी दुहाई सबको दौड़भाग करने को मजबूर कर देती है। जिसकी हर हरकत को प्रशंसा के भाव से देखा जाता है और हर शिकायत ममत्व और अपनत्व से भरी होती है। बच्चे का पहली बार पलटना, घुटनों पर चलना, पैरों पर खड़े होना, पहला शब्द बोलना- त्यौहार के मानिन्द होता है। लेकिन ये सारी बातें बचपन के उस हिस्से से जुड़ी हुई जो बड़े होने पर यादों में नहीं परिवार वालों की बातों से पता चलती रहती हैं- बचपन की याद रखने वाली बातें तो होती है- नानी-दादी की कहानियां, बारिश के पानी में छप-छप करना, दूध चुपके से खिड़की के पीछे फेंक देना, सिक्कों को मिट्टी में रोपना या फिर आम-अमरूद के पेड़ों पर चढ़कर चोरी से फल तोड़ना। हर व्यक्ति के साथ अपने बचपन की यादों का एक बहुत पिटारा होता है- जिसको खोलने पर बस यही लगता है - बचपन के दिन भी क्या दिन थे।
बच्चे का स्कूल जाना परिवार के लिए अपने आप में अभूतपूर्व घटना होती है। माँ-बाप से मिले शिक्षा और संस्कार अकेले काफी नहीं होते। गुरुजनों से ज्ञानार्जन बहुत जरूरी होता है। कितना अजीब लगता है अक्षरज्ञान से शिक्षा प्रारंभ करके बच्चा बाद में अकल्पनीय ऊँचाइयों तक पहँच जाता है। यकीनन इस दौरान बच्चे के बस्ते का बोझ भविष्य के लिए उसके कंधो को मजबूती देता है। कितना बढ़िया होता है बचपन सिर्फ खाओ-पियो, पढ़ो और खेलो- ना कोई चिंता- ना कोई गम।
पहले के समय में गिल्ली-डंडा, डंडा-पचरंगा, लट्टू , सत्थुल-पिट्टुल, गदागदी, छू-छूआ, छुपा-छुपी आदि अनेक देसी खेल जाने थे। आज क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल के साथ साथ रकबी और बेसबॉल जैसे आधुनिक खेलों का जमाना है। यहाँ तक तो सब ठीक है- लेकिन बच्चे आजकल वीडियो और कम्प्यूटर गेम्स खेला करते हैं-अब उसमें दिमागी मजबूती कितनी मिलती है- हम नहीं जानते - लेकिन शारीरिक मजबूती तो कतई नहीं मिलती। बहरहाल बच्चों का बचपन खेलों के बगैर गुजरे ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि बच्चे और खेल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और खेलने के लिए होते हैं साथी- ढेर सारे साथी -ढेर सारे दोस्त । जिनमें दांतकाटी दोस्ती भी होती है, तुनक-मिजाज़ी भी, मान-मनौवल भी और कभी खट्टी कभी मिट्ठी। बचपन के साथी शायद ही कभी कोई भूल सकता है।
अक्सर उदासी या तन्हाई के आलम में आदमी अपने बचपन की स्मृतियांे का सहारा लेता है। बचपन की खट्टी -मिट्ठी यादें वापस उम्र के उसी मोड़ पर पहुँचा देती हैं। यार-दोस्त, शैतानियाँ, खेल-प्यार, स्नेह-भरी घटनांए जब याद आती हैं तो अवसाद की स्थिति से आदमी निश्चित ही उबर जाता है वहीं बचपन में घटी कुछ घटनांएँ ऐसी होती है जो आंखें नम कर देती है। ना जाने कितने भाव और रसों को समेटे रहता है बचपन अपने अंदर। ऐसा ही होता है बचपन।
पॉडकास्ट में इस्तेमाल गीत -
गीत गाता चल- बचपन हर गम से बेगाना होता है
बीस साल बाद - सपने सुहाने लडकपन के
वो कागज की कश्ती-जगजीत सिंह
दीदार- बचपन के दिन भुलाअनमोल घड़ी - मेरे बचपन के साथी - नूरजहाँ
कुछ और बचपन से जुड़े गीत वीडियो पर -
अनमोल मोती - कोई मेरा बचपन ला दे.
सुजाता - बचपन के दिन भी क्या दिन-.आशा, गीता दत्त
जंगली - जा जा जा मेरे बचपन - लता
पुरानी जीन्स - अली हैदर
आया है मुझे फिर याद वो जालिम -देवर
बहुत सुंदर लेकिन आपने अगर इन यू ट्यूब को छोड़ दिया होता तो भी आपका पोस्ट सुंदर था.
ReplyDeleteAlok
www.raviwar.com
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteSangyaaJi,
ReplyDeletekhudaa kee kasam! majaa aa gayaa!!
jaaree raakhiye.
Ranjan
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग में आकर .
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट बधाई .
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
सिलसिला बना रहे, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसंज्ञा जी,
ReplyDeleteआपका प्रयास सराहनीय भी है और नूतन भी। आलोक जी का कहना बिलकुल सही है, आपको यू ट्यूब की जरूरत नहीं है। आपका उच्चारण भी बहुत अच्छा है।
www.hindiforyou.blogspot.com
संज्ञा जी,
ReplyDeleteआपका प्रयास सराहनीय भी है और नूतन भी। आलोक जी का कहना बिलकुल सही है, आपको यू ट्यूब की जरूरत नहीं है। आपका उच्चारण भी बहुत अच्छा है।
धन्यवाद आप सभी को. मेरे जैसे नए ब्लॉगर, पॉडकास्टर के लिये आप सभी वरिष्ठ लोगों की शुभकामनाएं व सुझावों ने कुछ नया करने की भावना को और भी तीव्र कर दिया है. आगे भी आपके सहयोग की आकांक्षी.....संज्ञा
ReplyDeleteसंज्ञा जी,
ReplyDeleteब्लॉग में सब कुछ अच्छा है, खासतौर पर आपने जो बचपन के विषय में लिखा है, उसने मुझे काफी प्रभावित किया. आपने लिखा है
‘बचपन आखिर है क्या- तो आपका जवाब क्या होगा- शायद कोई कहे उन्मुक्त आकाश और मजबूत पंख - यही बचपन है। न जवाबदारी, न भय, न जहमत, न तोहमत, बस प्यार, स्नेह वात्सल्य और दुलार - यही होता है बचपन। किसी का जवाब हो सकता है -सीख, संस्कार, समझाइश- यही होता है बचपन या फिर - मुस्कुराहट, खिलखिलाहट, हास-परिहास- ये है बचपन। जवाब ये भी हो सकता है- थोड़ी डाँट, थोड़ी डपट, एक चपत और दो बूंद आंसू- ये है बचपन या-निश्छलता, सरलता, निस्वार्थता और अपनापन- ये है बचपन ’’ ; अद्भुत.
बीते जमाने के गीतों की सुमधुर प्रस्तुति से मन आह्लादित हो उठा. डायरेक्टर एसडी नारंग ने 1969 में एक सुंदर फिल्म बनाई थी ‘’ अनमोल मोती’’ जिसमें जितेंद्र, बबीता, अरूणा ईरानी, जयंत, राजेंद्रनाथ, जगदीप जैसे दिगगज कलाकारों ने अभिनय किया था. इस फिल्म का सुंदर गीत ‘’ कोई मेरा बचपन ला दे रे ‘’ लेकर आपने तो जैसे मेरे मन को छू लिया. मैं आपका शुक्रगुजार हूं जो आपने मुझे सदाबहार गीत सुनने के लिए प्रेरित किया. आप हमेशा मुझे प्रेरित करती है. आपका बहुत-बहुत धन्यवाद.
Sunil sharma, Bilaspur
बचपन में ही व्यक्ति उस निश्छलता में होता है,जिसके कारण कहा जाता है कि वह भगवान का ही रूप है। बाद का मनुष्य किसी प्रोग्राम्ड सॉफ्टवेयर-सा समझिए। सब कुछ कृत्रिम,पूर्व निर्धारित।
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