आज शरद पूर्णिमा है, पूरे चांद की रात। शरद ऋतु के आगमन की सूचना देने वाले चांद की रात, दीपों भरी दीपावली की रात बस आने को है, ये बताने वाले चांद की रात। चांद, चंदा, मामा या चंद्रमा हमारा हर रोज का साथी। एक ऐसा साथी जो हर रात एक नये रूप में हमारे साथ होता है। लेकिन आज की रात का चंद्रमा होता है कुछ खास, कुछ विषेष जो कहता है हमसे बहुत कुछ। इस अवसर पर हमारी कुछ बातें, चांद के कुछ बेहतरीन नगमों और कुछ नायाब संकलित पंक्तियों से सजी ये पोस्ट और पॉडकास्ट आपके लिये प्रस्तुत है-
पॉडकास्ट में शामिल किये गए गीत -
सब तिथियन का चंद्रमा.......(सावन को आने दो)
चांद सिफारिश..............(फना)
वो चाँद खिला............. (अनाड़ी)
चांद सी मेहबूबा.............(हिमालय की गोद में)
मेहताब तेरा चेहरा............(आशिक)
चौदहवीं का चांद हो...........(चौदहवीं का चांद)
मैंने पूछा चांद से............(अबव्दुल्ला)
चंदामामा मेरे द्वार आना........(लाजवंती)
चांद छुपा बादल में...........(हम दिल दे चुके सनम)
धीरे धीरे चल...............(लव मैरिज)
ए चाँद ज़रा छुप जा .........(लाट साहब)
प्राचीनकाल के काव्य से आधुनिक यंग के गद्य, पद्य, गीत, नाटक, कहानियों, फिल्मों आदि में प्रेम और विरह दोनों ही रसों में चाँद यानि चन्द्रमा अपने अनेक पर्याय जैसे - हिमांशु, सुधाकर, सोम, मयंक, रजनीश, राकेश, इंदु, सुधांशु, शशि, रजनीपति आदि के साथएक विशिष्ट स्थान प्राप्त करता आया है। अक्सर नायको द्वारा अपनी जीवन संगिनी की तुलना चाँद से की जाती रही है।
चाँदनी का श्रृंगार समेट, अधखुली आँखों की यह कोर,
लिए अपना रूप अनमोल, ताकती किस अतीत की ओर।
और तो और नायक कई बार अपनी प्रेमिका को चाँद उपहार में देने का प्रतिबद्ध दिखाई पड़ा है। गीत, साहित्य और सिनेमा के अलावा चाँद ने अनेक धर्मों में भी अपना स्थान बनाया है। प्राचीन काल से इसे देवता आदि का स्थान भी प्राप्त रहा है और पूजा-अर्चना होती रही है।लेकिन चाँद है क्या? चाँद दरअसल एक आकाशीय पिण्ड जो अपनी पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है।यह सतत रूप से पृथ्वी की परिक्रमा अंडाकार पथ में 29 दिन, 12 घंटे और 43 मिनट में पूरी करता है। इसे हम चंद्रमास कहते हैं। चंद्रमा का व्यास 3476 कि.मी.है। इसके अपनी धुरी पर घूमने की गति 2287 मील/ घंटा है। 20 जुलाई 1969 को अपोलो 11 की उड़ान में मानव ने अमेरिकी वैज्ञानिक नील आर्मस्ट्रांग के रूप में सर्वप्रथम चंद्रमा के धरातल पर कदम रखे। इसी उड़ान के दौरान चंद्रमा पर एक रिट्रो परावर्तक लगाया गया। पृथ्वी से इस पर लेसर किरणें भेजी गईं जो इस परावर्तक से परावर्तित हुईं ओर उन्हें पुनः प्राप्त करके चंद्रमा की बिल्कुल सही दूरी माप ली गई। ये दूरी 3 लाख 84 हज़ार 400 किमी है और इस दूरी में छः इंच से ज़्यादा की त्रुटि की संभावना नहीं है।
यह शरद की रात, मत कर विरह की बात
जिय अकुला रहा है, नशा सा अपार छा रहा है।
हमको आशीर्वाद देने चाँद छत पर आ रहा है।
चाँद का टुकड़ा, चाँद का कटोरा, ईद का चाँद, चाँद में बैठी चरखा कातती बुढ़िया, चौदहवीं का चाँद, चाँद का दाग, चाँद सा चेहरा आदि अनेक उपमाएँ, लोकोक्तियाँ, मुहावरे आदि प्रारंभ से ही चलन में रहे है। चाँद ने अपनी सुंदरता, शीतलता और आकर्षण से कवियों और साहित्यकारों की लेखनी को तुलना की एक बेमिसाल उपमा प्रदान की, जिसका भरपूर प्रयोग लेखनी के द्वारा किया गया। पर सुंदरता का प्रतीक चंद्रमा - जिसे घंटों निहारते रहने की इच्छा होती है, वास्तव में ऊबड़-खाबड़ सतह वाला उपग्रह है। यहाँ पहाड़, घाटियाँ, चट्टानें और काले-काले सपाट मैदान मात्र है। ढेर सारे बड़े-बड़े गड्ढे भी हैं जिनकी सतह पर राख के ढेर हैं - जो उल्कापात के कारण हो गए हैं, इनके नाम टायको, कोपरनिकस, कैपलर आदि हैं। रात को यह प्यारा सा,सुंदर सा चंद्रमा ठंडा रहता है, पर दिन में इसकी सतह का तापमान लगभग 130 डिग्री सेल्सियस होता है। चाँद की इतनी ख़ूबियाँ बताने के पश्चात् किसी के सुंदर मुखड़े की तुलना चाँद से करने की ज़ुर्रत मत कीजिएगा। अगर करें भी तो ऐसे -
पूनम के मुख का दाग,चाँद से लगता है प्यारा,
दीपक के नीचे छाँह,मात है जिससे उजियारा।
मैं तेरी छवि बनाऊँगा,मैं तेरी छवि बनाऊँगा,
तेरे रंग पे रंग मिलाने को,मैं चाँद से चाँदनी लाऊँगा।
मानव का चाँद के पीछे आकर्षित हाने का कारण है उसकी चाँदनी, उसका प्रकाश और उसकी किरणें।यह तो खै़र हम सभी जानते हैं कि चंद्रमा अपने प्रकाश से प्रकाशित नहीं होता, बल्कि सूर्य के प्रकाश के परावर्तन द्वारा ही चमकता है। लेकिन सबसे रहस्यमय हैं चंद्रमा की किरणें। ये किरणें चमकीली लकीरें हैं, जो टायको, कोपरनिकस और केपलर सरीखे विशाल गड्ढों से सभी दिशाओं में निकलती हैं।वेसे निश्चयपूर्वक ज्ञात नहीं हो पाया है कि इन किरणों की उत्पत्ति कैसे हुई, पर प्रचलित सिद्धांत तो यही है कि ये किरणें उन चट्टानों के कणों की धाराएँ हैं, जो गड्ढों के निर्माण के समय उल्कापिण्डों के टकराने से प्रकीर्णित हो गए थें चूँकि चंद्रमा में कोई वायुमंडल नहीं है, धूल के इन कणों की संरचना में कोई विघ्न नहीं पड़ता। अतः धूल के छितरे कणों का आज भ वही रूप है जैसा निर्माण के समय था।धूल की इन्हीं रेखाओं से सूर्य का प्रकाश परावर्तित हो जाता है, जो हमें चंद्र किरणें के रूप में दिखाई देता है।
चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही है जल-थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है, अवनि और अंबर तल में।
छोटे से बच्चे ने अपने पापा से कहा मुझे चाँद चाहिए। पिता ने टाल दिया, कल देंगे। दूसरे दिन बच्चे ने फिर चाँद की फरमाइश की, पिता ने फिर कहा - बेटा कल ला देंगे। सदियों से ये मांग और जवाब यूँ ही हर घर में दोहराई जा रही है।
चंदामामा आना तुम, करना नहीं बहाना तुम।
शीतल किरणें बिखरा कर, अपना रंग जमाना तुम।
कैसे रूप बदलते हो, हमें तनिक बतलाना तुम।
अपने अमृत के घट से, प्रेम-सुधा बरसाना तुम।
चरखा काते जो बुढ़िया, उसका हाल सुनाना तुम।
भू-तल पर हम भी चमकें, ऐसा मंत्र सिखाना तुम।
छोटे बच्चों के चंदामामा में ज़बरदस्त आकर्षण है। माँ कौशल्या से रामचंद्रजी बचपन में खेलने के लिए चंद्रमा मांग बैठै थे ‘मैया मैं चंद्र खिलोना लैहियों’ यही आकर्षण मानव को चंद्रमा से भावनात्मक रूप से जोड़े हुए है। ठीक ऐसे ही ब्रम्हांड में प्रत्येक वस्तु एक दूसरी वस्तु को आकर्षित किए हुए है। इस आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। चंद्रमा पर गुरुत्व बल पृथ्वी की तुलना में केवल छठवाँ हिस्सा है। यदि कोई मनुष्य पृथ्वी पर एक मीटर उछल सकता है, तो वही मनुष्य चंद्रमा पर छः मीटर उछल लेगा। चंद्रमा के गुरुत्व बल का असर पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर भी पड़ता है और इसी गुरुत्व बल के कारण समुद्रों का पानी ऊपर की ओर खिंचता है, जिससे समुद्रों में ज्वार आते हैं।
चंदा, सुन लो ध्यान से, एक दिन अपने यान से,
चन्द्रलोक में आएँगे, तुमसे हम बतियाएँगे।
और तुम्हारी बस्ती में, झूम-झूम कर मस्ती में,
तनिक सुधारस पी लेंगे, तारों के संग फिर खेलेंगे।
नीलगगन में हंगामा, कर देंगे हम चंदामामा।
चंद्रलोक में पहुँचने की, वहाँ के रहस्यों को समझने की जिज्ञासा सिर्फ बच्चों में ही नहीं, बड़े बुज़ुर्गों में भी हमेशा से रही हैं। बहुत से रहस्यों के परदे अब खुल चुके है। फिर भी शायद चंद्रमा से जुड़े बहुत सी बाते अभी हमें जानने के लिए बाकी हैं। एक बात और - पूर्णिमा के समय मानव में चाँद का मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखने को मिलता है। मानसिक रोगियों की शिकायतें कुछ बढ़ जाती हैं। मानवीय मस्तिष्क भी इस समय प्रबल चंद्र गुरुत्वाकर्षण के कारण कुछ ज़्यादा उथल-पुथल का शिकार हो जाता है। बहरहाल पूर्णिमा की प्रकृति चाँदनी की चादर ओढ़ एक नए और अद्वितीय रूप में नज़र आती है।
खूबसूरत से चंद्रमा को ग्रहण भी लगता है। परिक्रमा के दौरान पृथ्वी जब सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है, तो पृथ्वी की परछाई चंद्रमा पर पड़ती है।यही परछाईं या अंधकार चंद्रग्रहण कहलाता है। ये ग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन होता है। आमतौर पर एक साल में तीन ग्रहण होते हैं। एक बात और - जब हम चलते हैं तो चंद्रमा हमारे साथ-साथ क्यों चलता है? चलते वक्त पेड़-पौधे, इमारतें आदि की तरह पीछे जाते अथवा चलते हुए क्यों नहीं दिखता? कारण है-चाँद का पृथ्वी से दूर होना। जब हम गाड़ी इत्यादि में चलते हैंतो धरती पर स्थित वस्तुओं द्वारा हमारी आँख पर बना कोण तेज़ी से बदलता है, इसलिए वस्तुएँ पीछे चलती सी नज़र आती हैं। कोण तेज़ी से इसलिए बदलता है क्योंकि ये वस्तुएँ हमसे अधिक दूरी पर नहीं होतीं।चूँकि चंद्रमा पृथ्वी से ज़्यादा दूर हैतो उसके द्वारा हमारी आँखों पर बनाया गया कोण बहुत कम, ज़रा सा ही बदल पाता है।इसीलिए चंद्रमा हमें अपने साथ साथ चलता हुआ प्रतीत होता है।
पुष्पों द्वारा सजी शीश पर, चारु चन्द्रिका की झांकी।
जैसे वर्तुल रेखा खिची है, रजत शिखर सुषमा की।
और बस चांद की बातों के साथ चांद के गीतों का ये ये सफर यहीं तक।
आलेख - डॉ.राजेश टंडन प्रस्तुति - संज्ञा टंडन
उम्दा स्क्रीप्ट के बेहतरीन प्रस्तुतिकरण
ReplyDeleteपहली बार ब्लॉग पर मैंने पॉडकास्ट पूरा सुना।
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं
शरद पूर्णिमा के अवसर पर इतनी अच्छी और रोचक जानकारी गीत-संगीत में पिरोने के लिए डॉक्टर साहब को एवं सुमधुर स्वर में इसे प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteशरद पूर्णिमा की शुभकामनांए.
बहुत अच्छी लगी पोस्ट। हर चमकने वाली चीज़ सोना नही होती मगर लोग तो चांद को सोना ही समझ रहे हैं। चाँद का शिंगार रस फिर भी लेखकों को आकर्षित करता रहेगा। आभार।
ReplyDeleteachcha laga karyakram....
ReplyDeleteशरद पूर्णिमा पर शरद के लिये इतना अच्छा उपहार । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा । शरद पुर्णिमा के शुभ अवसर पर बधाइयाँ - शुभ कामनाएं । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteइस तरह कभी शरद पूर्णिमा किसी ने नहीं मनाया होगा. अद्भुत प्रस्तुति. बधाई......
ReplyDeleteसंज्ञा जी,
ReplyDeleteचाँद पर इतनी उम्दा जानकारी! सचमुच अच्छी लगी। कोई भला चाँद इतने अधिक नजरिए से देख भी सकता है, अब जाना। वाकई चाँद के बारे में जानना ऐसा लगा, मानो, अंतरिक्ष में चाँद तक पहुँचना। चाँद का रहस्य बरकरार रहे, आपकी लेखनी इसी तरह चलती रहे, यह शुभकामनाएँ।
डॉ. महेश परिमल
Very refreshing :-)
ReplyDeleteplease see
http://rajubindas.blogspot.com/2010/10/blog-post_24.html
सही में अद्भुत प्रस्तुति...
ReplyDeleteहर कुछ बेहतरीन है, गाने खास कर के और विवरण बस कमाल..:)
वाह,अद्भुत,उम्दा जानकारी।
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