Thursday, October 7, 2010

रे‍डि‍यो धारावाहिक रचना-1

‘रचना’ लिब्रा मीडिया ग्रुप द्वारा निर्मित एक ऐसा धारावाहिक था जिसके हर एपिसोड के प्रथम भाग में एक पारिवारिक ड्रामा था। इसको एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया गया था ‘रचना’ नामक लड़की की कहानी उसकी किशोरावस्था से लेकर उसके बच्चे के अन्नप्राशन तक धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत की जायेगी। इस कहानी में अधिक से अधिक संदेश एवं जानकारियाँ देने का प्रयास किया गया था।
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प्रथम भाग की मुख्य पात्र रचना के अलावा एपिसोड में दो महिला कंपीयर्स थीं, जो इस कहानी से मिलने वाले संदेशों के अलावा अन्य जानकारियाँ तो देती ही थीं, साथ ही कार्यक्रम को जोड़कर रखने का काम करती थीं। एपिसोड के दूसरे भाग में किसी डॉक्टर या रिसोर्स पर्सन से उस विषय पर, समस्याओं पर बातचीत की जाती थी।
हम इस धारावाहिक में से 9 कड़ियों के सिर्फ पहले भाग को ही आपके लिये पॉडकास्ट बनाकर सुनवाने के लिये लाए हैं। नाटक के रूप में यह प्रस्तुतियाँ संदेशात्मक भी हैं। आपको कैसी लगीं हमें जरूर बताइये।
धारावाहिक रचना की नौ कड़ियाँ इस प्रकार थीं -
1. किशोरावस्था
2. शादी की उम्र
3. गर्भावस्था के शुरूवाती 6 महीने
4. गर्भावस्था के अंतिम 3 महीने
5. प्रसव
6. 1 माह
7. 2-6 माह
8. अन्नप्राशन
9. संक्षिप्तिका

केयर इंडिया छत्तीसगढ़ के लिये निर्मित

प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य, मातृत्व कल्याण एवं पोषण पर आधारित
आकाशवाणी बिलासपुर से प्रसारित रेडियो धारावाहिक

रचना नाटिका
(9 कड़ियाँ)

प्रसारण जून-जुलाई 2006
आलेख डॉ.राजेश टंडन
निर्माण - लिब्रा मीडिया ग्रुप

प्रथम एपिसोड पॉडकास्‍ट
किशोरावस्था

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प्रथम एपिसोड आलेख
किशोरावस्था

माँ - क्यों रचना, ये चुन्नी में क्या बांध रख है तूने और तू आ कहाँ से रही है? ये...ये चोट कोहनी में कैसे
लगी?
रचना - आम हैं माँ, कच्चे आम। वो गंगू चाचा की बाड़ी में इत्ते आम लगे हैं, इत्ते आम लगे हैं, एक पत्थर
मारो, चार
गिरते हैं...खूब सारे आम तोड़े।
माँ - तू अकेले गंगू की बाड़ी में आम....
रचना - अकेले नहीं माँ रामू था...घासी था...जमना थी...शांति थी...फजल और सुरेश और राधे भी था। सबको 7-7 आम दे
दिये। बस राधे को आम नहीं मिले। बस राधे को नहीं दिये।
माँ - क्यों ? राधे को आम क्यों नहीं दिये।
मुनिया - वो गंगू चाचा की बाड़ी में कान पकड़ कर उठक बैठक कर रहा है ना।
माँ - कान पकड़ कर उठक-बैठक!
मुनिया - हाँ भागते समय वो पकड़ा गया था ना। गंगू चाचा ने उसे एक थप्पड़ मारा ...और...और ..वो आएगा तो उसे
उसके हिस्से के आम दम दूंगी...एक ज्यादा दे दूंगी।
माँ - कितनी बार समझाया है तुझे रचना, तू बड़ी हो गई है। छोटे बच्चों के साथ ऊधम करना छोड़ दे। जब देखो
दौड़ भाग करती रहती है। अरी घर के काम काज में ध्यान दे, रसोई संभाल, सिलाई कड़ाई सीख, बाकी काम सीख।
रचना - आता तो है, सब आता है- खाना बनाना, बड़ी बनाना, चाय बनाना, थोड़ी सिलाई भी.....
दादी - पर इतना काफी नहीं है घर संभालने के लिये। बहुत सारे काम आने चाहिये। तेरी उम्र में तो मैं सब सीख चुकी
थी।
रचना - पर दादी मुझे पढ़ना भी तो पड़ता है।
दादी - तो छोड़ दे पढ़ाई-लिखाई। कौन मार तुझे आगे किसी की नौकरी करनी है। ये काम चरनू के लिये छोड़ दे।
रचना - भैया पढ़ेगा! उसका मन भी लगता है पढ़ने लिखने में। पढ़ाई-लिखाई तो मैं नहीं छोड़ँूगी। देखना भैया से ज्यादा
पढ़ूँगी मैं।
माँ - ठीक तो कह रही है तेरी दादी, मैं खुद चौथी पास हूँ। आगे नहीं पढ़ी...लो रेखा मितानिन आ गई।
दादी - रे मितानिन तू ही रचना को समझा, बेकार पढ़ाई लिखाई में समय खराब कर रही हे। अरे मैं तो बिल्कुल नहीं
पढ़ी, इसकी माँ भी चौथी के बाद नहीं पढ़ी तो हमारा क्या बिगड़ गया और पढ़ लिख लेगी तो इसका क्या बन
पायेगा।
मितानिन - और अगर पढ़ लिख लेगी तो आपका क्या बिगड़ जायेगा।
दादी - हैं.....वो..अब...वो हम लोगों में लड़की को ज्यादा पढ़ा लिखा अच्छा नहीं मानते, वो फिर शादी में..
मितानिन - शादी में क्या...अरे अगर अच्छा पढ़ लिख लेगी तो अच्छा पढ़ा लिखा पति मिलेगा इसे। जहाँ जायेगी वहाँ सम्मान
पायेगी। इच्छा हो या जरूरत हो तो अच्छी नौकरी पा जायेगी। आज की दुनिया में शिक्षा बहुत जरूरी है माँजी।
माँ - पर हमारे समय में....
मितानिन - आप का समय अलग था, आज का अलग है। आज जिंदगी बहुत तेज रफ्तार है, जो पिछड़ा, उसके सारे रास्ते
बंद। इसीलिये माँ जी रचना को पढ़ने दो।
रचना - मैं तो पढूँगी, मैंने बोल दिया बस......
दादी - मुझे तो ये सब समझ में नहीं आता, जो जी में आये सो करो।
मितानिन - अरे तू कहाँ चली रचना?
रचना - राधे को आम देने ..वो अब तक छूट गया होगा।
मितानिन - बहुत चंचल है अपनी रचना।
माँ - यही तो परेशानी है मितानिन दीदी। बड़ी हो गई है रचना लंब तड़ंग, पर बचपना नहीं गया है उसका। जब देखो
भाग दौड़, लड़कों के साथ भी खेलती है और स्कूल में भी मुझे...मुझे तो डर लगता है कहीं कोई ऊँच नीच न
हो जाये।
(चाची का आगमन)
चाची - क्या ऊँच नीच बहू।
माँ, मितानिन - नमस्ते चाची
चाची - नमस्ते, नमस्ते। कोई गंभीर विषय पर बात चल रही है शायद। मैं गलत वक्त पर तो नहीं आई।
मितानिन - नहीं चाची, ऐसी बात नहीं है, वो रचना की बात चल रही थी....तो माँ जी ऐसे घबराने की बात नहीं है। स्कूल में
तो सभी गुरूजी-बहनजी बच्चों का ख्याल रखते ही हैं। लड़कियों की फीस माफ है। किताबें कापियाँ अलग
मिलती हैं। लड़के लड़कियों की बहुत सी व्यवस्थायें अलग अलग हैं और अब तो स्कूलों में पक्के शौचलय भी बन
गये हैं। रही बात उसकी लापरवाही, बचपना, लड़कपन की तो मैं उससे खुद बात करूँगी, उसे समझाऊँगी। आप
निश्चिंत रहें। और हाँ अब मैं चलूँ वैसे ही बहुत देर हो गई है। बच्चों को बुलाया था, सब इंतजार कर रहे होंगे।
अच्छा नमस्ते।
दादी - अरे कहाँ चली मैं तो चाय लाई थी तुम्हारे लिये और यदि चाची तुम ...तुम कब आईं।
चाची - आप मुझे चाची मत कहिये, आप तो मुझसे बड़ी है।
दादी - अरे तुझसे बड़ा यहाँ कोई नहीं है। तू तो जगत चाची है और मितानिन चाय पी फिर जाना।
मितानिन - नहीं माँ जी । आज जाने दीजिये। वैसे ही काफी देर हो गई है। चाय फिर कभी....मैं चलूँ।
चाची - माँ जी चाय का अब क्या करोगी?
दादी - क्यों तू क्या करेगी। तेरे मुँह में तो तंबाखू भरा है।
चाची - तंबाखू को मुँह में एक तरफ कर दूसरी तरफ से चाय पी लूँगी।
दादी - तो तुम ही पियो चाची।
चाची - फिर चाची। आप मुझे चाची मत कहा करिये। मैं तो आपसे छोटी हूँ।
दादी - तू कहाँ की छोटी। सारी दुनिया तुझसे छोटी है चाची।
चाची - फिर चाची
दादी - मैं तो चली। बहुत सारे काम हैं।
चाची - ठीक है माँ जी आप आराम करिये।
दादी - मैंने कब कहा आराम करने जा रही हूँ। मैंने कहा कि काम करना है।
चाची - तो फिर वही करिये। मैं बहू रानी के साथ थोड़ा बतिया लूँ।
दादी - एक बात सुन ले, मेरी बहू से उल्टी सीधी बात नहीं करना बताए देती हूँ।
चाची - अरे मैं तो बस यूँ ही टाइम पास के लिये आई हूँ, आप बेकार में डरती हैं माँ जी।
दादी - तुझसे तो दुनिया डरती है चाची।
चाची - हुँह......हाँ बहू माँ जी गईं। बोलती हैं काम है। काम नहीं आराम करना होगा। ये सारी सो एक जैसी होती हैं। ...
खैर तू ये बता वो कमला मितानिन क्या पट्टी पढा़ रही थी तुझे।...हैं...
माँ - अरे कुछ नहीं चाची, मैं थोड़ा रचना को लेकर परेशान थी..सयानी हो रही है, पर बचपना नहीं गया उसका। कभी
ृ किसी बाड़ी से आम तोड़ती है तो कभी किसी की भी साइकिल उठा तीन सवारी पूरे गाँव भर घूमती है। हर
समय भाग दौड़, खेलना कूदना। समझ में नहीं आता क्या करूँ। मितानिन दीदी बोली हैं कि चिन्ता ना करूँ, वो
खुद रचना से बात करेंगी।
चाची - और वो दूसरी बात क्या हो रही थी।
माँ - कौन सी दूसरी बात?
चाची - जब मैं आई थी तो कुछ ऊँच-नीच वाली बात चल रही थी। क्या बात थी।
माँ - अरे वो मैं अपनी चिंता बता रही थी कमला मितानिन को कि रचना बड़ी हो रही है इतनी देर तक घर से बाहर
स्कूल में रहना, फिर सारे दिन खेलना।
चाची - बिल्कुल सही चिंता है तेरी। चिंता की बात तो है ही ये और इसमें मितानिन क्या कर लेगी। तुझे तो कोई कठोर
कदम उठाना चाहिये। सही है अगर कुछ ऊँच-नीच हो गई तो गाँव हँसेगा। तू कहीं मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेगी। बिल्कुल सही चिंता कर रही हो तुमं।
माँ - ऐसा!
चाची - हाँ, और मैं बताऊँ मुझे तो रचना का पढ़ना, बच्चों के साथ खेलना....और अब वो बच्चे कहाँ रहे सब बड़े हो रहे
हैं...मुझे तो ये सब जरा भी पसंद नहीं है। और बुरा मत मानना बहू तुम्हें अपना मानती हूँ इसलिये कह दे रही हूँ
ये रचना के रंग ढंग भी ठीक नहीं लगते। इतनी बड़ी हो गई है, सब जानती है, समझती है फिर भी इस प्रकार
कभी भी किसी के साथ कहीं भी चले जाना, भले ही खेलने के लिये ...भई ये ठीक नहीं है। मैं तो कई दिनों से
ताक में थी कि तुझे समझाऊँ, पर तेरी सास तुझे छोड़े तब ना।
माँ - तो चाची मैं क्या करूँ?
चाची - मेरी मान तो कोई अच्छा सा लड़का ढूँढ और रचना को ब्याह दे।
माँ - पर वो अभी 18 की कहाँ हुई है।
चाची - क्यांे क्या कसम खाए बैठी है कि रचना जब 18 की होगी तब ही उसकी शादी करूँगी।
माँ - पर सरपंच कह रही थी उस दिन कि बिटिया की शादी 18 के पहले करना कानूनन अपराध है।
चाची - अपराध है..हुँह..जा जाके सरपंच से पूछ कि जब उसकी शादी हुई थी तो वो कितने साल की थी और तू...तू..
कितने साल की थी जब तेरी शादी हुई थी।
माँ - मगर वो पुराना जमाना था...
चाची - अरी नया पुराना कुछ नहीं होता। जैसे हो लड़का मिले ठीक ठाक तो उसकी शादी निपटा दे..इंतजार किया तो
बाद में पछताना पड़ सकता है। मैं तो कहती हूँ लड़की जैसे ही बड़ी हो दूसरों के मत्थे डाल दो -आजकल
रिस्क लेना बेकार है। ससुराल वाले जानें, समझें।
माँ - पर इतनी जल्दी लड़का ढूँढना...
चाची - अरे लड़का है, मेरे जेठ के साले का लड़का। लड़का अच्छा है, नवमीं पास है। दसवीं में फेल हो गया था। पर
कुलीन है, अच्छा खाता पीता परिवार है। बोलेगी तो दहेज में डिस्काउंट करवा दूंगी। मेरी उन लोगों से अच्छी
जमती है।
माँ - मैं रचना के पिताजी से बात करती हूँ।
चाची - बात क्या करना तू तो जिद पर अड़ जाना। मरद औरत की जिद से हारता ही है।
दादी की आवाज - बहू ...बहू...जरा सुनना....
चाची - मैं अब चलती हूँ, लेकिन मेरी बात को समझना। रचना तेरी ही नहीं मेरी भी बेटी है। मुझे भी उसकी चिंता है।
मैं भी उसके भले के लिये ही सोचती हूँ। तू अब जा नहीं तो तेरी सास तेरा......
माँ - नहीं मेरी सास ऐसी नहीं है।
चाची - तो हो जायेगी..सभी सास एक समान होती हैं।....मैं चलूँ
- - - - - -
रचना का पिता - उफ् क्या गरमी है। इस साल तो गर्मी ने हलकान कर दिया। ऊपर से शादियों का मौसम। कल
रामप्रसाद की बेटी की शादी में कोरबा जाना है और नरसों अपने पीताम्बर की बेटी सरला की शादी में भाटापारा। कैसे जाना होगा। गर्मी इतनी पड़ रही है कि रह रह कर गला सूखता है।
माँ - सरला की उम्र कितनी होगी?
पिता - पता नहीं पर सयानी हो गई है।
माँ - सयानी तो अपनी रचना भी हो गई है।
पिता - रचना कहाँ सयानी हो गई है। बच्ची है अभी तो...अभी...लेकिन तुम ऐसा क्यों कह रही हो।
माँ - सब बोलते हैं
पिता - कौन बोलता है?
माँ - रचना अब बड़ी हो गई है हमें भी अब उसके बारे में सोचना चाहिये। उम्र निकल गई तो बाद में परेशानी होगी।
पिता - उम्र निकल गई तो.....अरे अभी तो उसकी उम्र आई ही नहीं है उसकी। खेलने कूदने के दिन हैं रचना के। अभी
2-4 साल तो उसकी शादी के बारे में सोचना भी मत। उसे खेलने दे पढ़ने दे।
माँ - (गुस्से से) खेलने दे... पढ़ने दे, खेलने दे..... पढ़ने दे...सुनते सुनते कान पक गये हैं मेरे। आखिर कब तक खेलती
और पढ़ती रहेगी वो। दुनिया भर को चिंता है उसकी और आप...
पिता - तुम तो बड़ी गंभीर हो गई...हैं...और तुम किसके बारे में कह रही थीं कि उसे रचना की चंता है.....अच्छा वो चाची
आई थीं क्या?
माँ - कोई भी आया हो आपको क्या..आप बस अच्छा सा लड़का देखिये और रचना का ब्याह करिये।
पिता - एक तो इतनी जल्दी 18 साल के पहले रचना का ब्याह नहीं करूँगा। दूसरा थोड़ी देर के लिये मान लिया कि
उसका ब्याह इसी साल कर दूँगा तो लड़के क्या बाजार में सजे-सजाए मिलते हैं और खर्चे वगैरह का इंतजाम...
माँ - वो चाची का एक दूर का रिश्तेदार है। अच्छा खाता पीता परिवार है। लड़का सुंदर है और दहेज में वो
डिस्काउंट भी करवा देंगी।
पिता - तो ये सब चाची का भरा हुआ है। उसको तो मैं.....
माँ - उनको गाली मत दीजियेगा। वो बोल रही थीं उन्हें भी रचना की फिकर है। रचना उनके लिये बेटी जैसी है।
पिता - लो माँ आ गईं - माँ जी तुम ही इसे समझाओ। चाची ने तो...
दादी - मैंने सब सुन लिया है। बहू तुम्हें कई दफे मैंने कहा है चाची की बात पर ध्यान न दिया कर, दिन भर
तंबाखू-गुड़ाखू से फुरसत नहीं है उसको। तू तो समझदार है। अभी रचना की उम्र शादी के लायक नहीं है।
माँ - क्या फर्क पड़ जायेगा माँ। कल हो या आज हो शादी तो उसकी करनी ही है, तो देर क्यों करें।
दादी - अरे बहू जो गलती हमारे माँ बाप ने की वो हम तुम क्यों करें। वो भी इस बात को समझते तो आज मेरे दो बेटे
और एक बेटी और होती।
माँ - घर में जवान होती लड़की बहुत बड़ा भार होती है माँ।
दादी - लड़की कहाँ भार होती है माँ, वो तो अपने कंधों पर पूरे घर का भार उठा लेती है। अगर अभी उसकी शादी कर
दोगे, तो सबसे पहले तो उसकी पढ़ाई का नुकसान फिर स्वास्थ्य केन्द्र में नर्स दीदी बता रही थीं कि 18 साल
से पहले लड़की का शरीर इस लायक नहीं होता कि वो बच्चे को संभाल सके। बच्चा भी कमजोर और कुपोषण
का शिकार होगा। माँ में खून की कमी हो जायेगी।
पिता - तेरे से सौ बार कहा है कि मंगलवार को आंगनबाड़ी चली जाया कर, कुछ सीखेगी। कम से स्वास्थ्य शिविर में
तो जाया कर, जहाँ ये सब बातें तुम्हारी नर्स दीदी रेखा हमेशा बताती हैं।
दादी - अब मुझसे पूछो मैं सब जानती हूँ। आंगनबाड़ी में गर्भवती महिलाएँ, धात्री महिलाएँ, पैदा हुये बच्चे से लेकर 6
साल तक के बच्चों को पूरक पोषण आहार दिया जाता है, समय-समय पर लगने वाले टीके लगाये जाते हैं,
स्वास्थ्य व पोषण की जानकारी दी जाती है। चाची की गलत-सलत बातें तो तेरे दिमाग में फौरन घुस गईं,
लेकिन ये सब जरूरी बातें तुझे पता ही नहीं हैं। अरे हाँ...किशोरी बालिकाओं के लिये भी आंगनबाड़ी में कुछ
योजनाएँ चलती हैं। उनको कुछ.... आयरन की गोलियाँ...और पोषण आहार के साथ-साथ स्वास्थ्य शिक्षा भी दी
जाती है। तू नहीं जाती तो कल से रचना को तो वहाँ ले जा।
माँ - ठीक कहती हैं माँ जी आप। पहले रचना शारीरिक रूप से तैयार हो, उसे सारी जानकारियाँ हों, तभी हमें
उसकी शादी की बात सोचनी चाहिये।
पिता - चल तुझे कुछ समझ में तो आया।
रचना - माँ...माँ...माँ....
माँ - क्या हुआ?
रचना - गंगू चाचा ने अबकी बार फिरतू को पकड़ लिया।
माँ - क्यों?
रचना - वो धीरे भागता है ना इसलिये, पोलियो है ना उसको।
पिता - अब सुन ले फिरतू के घर वालों ने ध्यान नहीं दिया था, समय पर पोलियो की दवा नहीं पिलायी थी, बेचारा
जिंदगी भर को ऐसा होकर रह गया। माँ बाप को हर मामले में तो बच्चों का ध्यान रखना पड़ता है।
माँ - सही है। अब मैं तेरा क्या ध्यान रखूँ रचना। तुझे तो पकड़ कर पीटना चाहिये तू फिर गंगू चाचा के यहाँ आम
तोड़ने गई थी।
रचना - नहीं माँ..इमली। अबकी बार इमली तोड़ने गये थे।
(संगीत)

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