बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
सफरनामा -
सुबह रिसॉर्ट जल्दी छोड़ मडगांव मार्केट पहुंच गए, इतनी जल्दी कि दुकानें भी नहीं खुली थीं। कुछ देर घूमे-फिरे, चाय-नाश्ता किया और काजू खरीदे। गोवा चूंकि पहले से ही घूमा हुआ था, सारे पॉइन्ट्स देखे हुए थे सो आत्मसंतुष्टि की तीव्र भावना के साथ बेवजह और बेपरवाह कुछ देर यूं ही भ्रमण किया। सड़क मार्ग से स्वयं का वाहन खुद चलाकर केरल और केरल से कोस्टल रोड होते हुए गोवा की यात्रा की पुरानी ख्वाइश पूरी हो चुकी थी। अब वापस लौटना था तो सोचा वापसी के दौरान और कहां हाथ मार सकते हैं.....पैर पसार सकते हैं। महाबलेश्वर-पंचगनी होते हुए पूना-नागपुर के रास्ते वापस बिलासपुर आने का विचार किया सो अब महाबलेश्वर की तरफ दौड़ लगा दी। वहां के लिये हमने गोवा के पूर्वी बॉर्डर से बेलगाम-कोल्हापुर-सतारा वाला मार्ग चुना। गोवा में लिकर के साथ साथ पेट्रोल भी बहुत सस्ता है। बॉर्डर पर हमने करीब करीब खाली टैंक फुल करवाया, परमिट के साथ उम्दा स्कॉच की दो बोतलें लीं और कर्नाटक में प्रवेश कर गए। बेलगाम के पहले और बाद तक फिज़ाएं कुछ बदली बदली सी लगीं और हवाओं में कुछ राजस्थानी महक घुली हुई लगी। बड़े बड़े मक्के के खेत, ठेठ ग्रामीण परिवेश, पहनावा, पीली या नारंगी रौबदार पगड़ी पहने अन्नदान-महादान का पालन करते लोग, नज़ारा मनभावन था। थोड़ा आगे बेलगाम में एक चौराहे के सिग्नल पर हमें बाएं मुड़ना था, हम बिना ये जाने कि ये फ्री लेफ्ट टर्न नहीं है, मुड़ गए....कर्नाटक ट्रेफिक पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते हुए हमें रोका, कागज़ात देखे और सौ रू. का फाइन बाकायदा पर्ची काटकर कर दिया। पूरी ट्रिप में दो ही बार पुलिस वालों ने हमसे गुफ्तगूं की, दोनों बार आते-जाते कर्नाटक में...बड़े स्ट्रिक्ट हैं भई...इसके बाद कर्नाटक पुलिस को देखते ही चौकस हो जाना हमारे लिये आम बात हो गई थी...वैसे आम भी जगह-जगह फलते-बिकते नज़र आ रहे थे। मन ना माना, कुछ बेकाबू हुआ तो बेलगाम में कुछ हापुस आम खरीद लिये। रास्ते में हाइवे पर ही किनारे रूककर छांव में लंच के रूप में वही आम खाए और शाम के पहले महाबलेश्वर पहुंच गए। महाबलेश्वर के पहले ‘वाय’ के पास सड़क के दोनों तरफ बरगद के पचासों पेड़ हैं जिनकी मोटी-पतली जटाएं सड़क पर झूलती अद्भुत दृष्य पैदा करती हैं। पंचगनी-महाबलेश्वर दोनों जगह उटी की तरह ही भीड़ ही भीड़ थी। कुछ अजीब सा लगा कि ऐसे स्थानों पर लोगों की अब प्राकृतिक दृश्यावली से ज़्यादा मोटरसाइकिल-कार रेस ग्राउण्ड, बंजी जंपिंग और वाटर पार्क जैसे खेलों में कुछ ज़्यादा रूचि है...खैर, अपनी अपनी तबियत और अपनी अपनी फितरत। कुछ एक पॉइन्ट्स देखने के बाद रात होते महाबलेश्वर में मुश्किल से एक कॉटेज मिली जिसमें हम रुक गए। डिनर के लिये मार्केट की तरफ गये तो वहां का बाज़ार बहुत ही अच्छा लगा। हमारे अब तक के घूमे देश के सारे पहाड़ी स्थलों के श्रेष्ठ बाज़ारों में एक...रंगीन-रंगीन बाज़ार...फ्रूट क्रश, सीरप, जैम, चॉकलेट्स, जूते चप्पल और बाजार के बाहर लाल लाल ताजी स्ट्राबेरीज़ और गावरान मुर्गे परसने वाले रेस्टोरेन्ट्स बहुत संख्या में थे। हम तो खैर पूरा बाजार आनंदित होकर घूमे, खरीदारी की, शुद्ध शाकाहारी भोजन खाया, पान खाया और अपनी छोटी सी कुटिया...कॉटेज....में 12 बजे तक लौट आये। लेट होने का मूल कारण कार का पार्किंग स्थल भूलना और फिर रास्ता भटकना था। कुल मिलाकर एडवेंचर जारी था।
सुबह रिसॉर्ट जल्दी छोड़ मडगांव मार्केट पहुंच गए, इतनी जल्दी कि दुकानें भी नहीं खुली थीं। कुछ देर घूमे-फिरे, चाय-नाश्ता किया और काजू खरीदे। गोवा चूंकि पहले से ही घूमा हुआ था, सारे पॉइन्ट्स देखे हुए थे सो आत्मसंतुष्टि की तीव्र भावना के साथ बेवजह और बेपरवाह कुछ देर यूं ही भ्रमण किया। सड़क मार्ग से स्वयं का वाहन खुद चलाकर केरल और केरल से कोस्टल रोड होते हुए गोवा की यात्रा की पुरानी ख्वाइश पूरी हो चुकी थी। अब वापस लौटना था तो सोचा वापसी के दौरान और कहां हाथ मार सकते हैं.....पैर पसार सकते हैं। महाबलेश्वर-पंचगनी होते हुए पूना-नागपुर के रास्ते वापस बिलासपुर आने का विचार किया सो अब महाबलेश्वर की तरफ दौड़ लगा दी। वहां के लिये हमने गोवा के पूर्वी बॉर्डर से बेलगाम-कोल्हापुर-सतारा वाला मार्ग चुना। गोवा में लिकर के साथ साथ पेट्रोल भी बहुत सस्ता है। बॉर्डर पर हमने करीब करीब खाली टैंक फुल करवाया, परमिट के साथ उम्दा स्कॉच की दो बोतलें लीं और कर्नाटक में प्रवेश कर गए। बेलगाम के पहले और बाद तक फिज़ाएं कुछ बदली बदली सी लगीं और हवाओं में कुछ राजस्थानी महक घुली हुई लगी। बड़े बड़े मक्के के खेत, ठेठ ग्रामीण परिवेश, पहनावा, पीली या नारंगी रौबदार पगड़ी पहने अन्नदान-महादान का पालन करते लोग, नज़ारा मनभावन था। थोड़ा आगे बेलगाम में एक चौराहे के सिग्नल पर हमें बाएं मुड़ना था, हम बिना ये जाने कि ये फ्री लेफ्ट टर्न नहीं है, मुड़ गए....कर्नाटक ट्रेफिक पुलिस ने मुस्तैदी दिखाते हुए हमें रोका, कागज़ात देखे और सौ रू. का फाइन बाकायदा पर्ची काटकर कर दिया। पूरी ट्रिप में दो ही बार पुलिस वालों ने हमसे गुफ्तगूं की, दोनों बार आते-जाते कर्नाटक में...बड़े स्ट्रिक्ट हैं भई...इसके बाद कर्नाटक पुलिस को देखते ही चौकस हो जाना हमारे लिये आम बात हो गई थी...वैसे आम भी जगह-जगह फलते-बिकते नज़र आ रहे थे। मन ना माना, कुछ बेकाबू हुआ तो बेलगाम में कुछ हापुस आम खरीद लिये। रास्ते में हाइवे पर ही किनारे रूककर छांव में लंच के रूप में वही आम खाए और शाम के पहले महाबलेश्वर पहुंच गए। महाबलेश्वर के पहले ‘वाय’ के पास सड़क के दोनों तरफ बरगद के पचासों पेड़ हैं जिनकी मोटी-पतली जटाएं सड़क पर झूलती अद्भुत दृष्य पैदा करती हैं। पंचगनी-महाबलेश्वर दोनों जगह उटी की तरह ही भीड़ ही भीड़ थी। कुछ अजीब सा लगा कि ऐसे स्थानों पर लोगों की अब प्राकृतिक दृश्यावली से ज़्यादा मोटरसाइकिल-कार रेस ग्राउण्ड, बंजी जंपिंग और वाटर पार्क जैसे खेलों में कुछ ज़्यादा रूचि है...खैर, अपनी अपनी तबियत और अपनी अपनी फितरत। कुछ एक पॉइन्ट्स देखने के बाद रात होते महाबलेश्वर में मुश्किल से एक कॉटेज मिली जिसमें हम रुक गए। डिनर के लिये मार्केट की तरफ गये तो वहां का बाज़ार बहुत ही अच्छा लगा। हमारे अब तक के घूमे देश के सारे पहाड़ी स्थलों के श्रेष्ठ बाज़ारों में एक...रंगीन-रंगीन बाज़ार...फ्रूट क्रश, सीरप, जैम, चॉकलेट्स, जूते चप्पल और बाजार के बाहर लाल लाल ताजी स्ट्राबेरीज़ और गावरान मुर्गे परसने वाले रेस्टोरेन्ट्स बहुत संख्या में थे। हम तो खैर पूरा बाजार आनंदित होकर घूमे, खरीदारी की, शुद्ध शाकाहारी भोजन खाया, पान खाया और अपनी छोटी सी कुटिया...कॉटेज....में 12 बजे तक लौट आये। लेट होने का मूल कारण कार का पार्किंग स्थल भूलना और फिर रास्ता भटकना था। कुल मिलाकर एडवेंचर जारी था।
तस्वीर-ए-बयां -
गोवा का स्टेडियम |
समर्पण के साथ धार्मिक क्रिया |
बेलगाम की ओर..बदलती फिज़ा |
महाबलेश्वर की ओर |
महाबलेश्वर की कुछ तस्वीरें |
कल के अंक में - ...सुबह 8 बजे निकलते वक्त महोदय ने एक बुजुर्ग सफेद टोपी वाले सज्जन को हमसे मिलवाया और बताया ये यहां के सीनियर गाइड हैं जो आपका समय बचाते हुए महाबलेश्वर दर्शन कराएंगे। सबसे पहले वो हमें मंदिर दर्शन करवाने ले गए। वहां पहुंचते तक वे चुप रहे या हां..ना..में जवाब देते रहे। कुछ अजीब लगा...
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