बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
तृतीय दिवस 19.05.2014 बैंगलोर-ऊटी
सफ़रनामा-प्रारंभ से पढ़ें
सुबह कुछ देर से आँख खुली, तो भी हम साढ़े आठ बजे तक तैयार हो चुके थे। नाश्ते में करीब 15-20 मिनट का वक्त बताया गया तो हम नाश्ता छोड़ ऊटी के लिये निकल पड़े। होटल के काउंटर पर कैमरा छूट गया था पर वहां के स्टाफ ने फोन कर मेन गेट पर हमें रोक लिया और मुस्कुराती सुन्दर सी कर्मचारी ने कैमरा हमें सौंप दिया....तत्परता के साथ ईमानदारी...थैंक्स....ऊटी के लिये हमें मैसूर रोड पकड़नी थी। टोल के बाद जाने कैसे कन्फ्यूज़न हो गया और हम दनदनाते गलत सड़क पर खुशी खुशी गाने सुनते करीब 20-25 किमी आगे बढ़ गये। शक हुआ तो रुककर पूछताछ की, पता चला हम बिलकुल उल्टी दिशा तुमकुर की तरफ चले जा रहे थे। करीब 8-10 किमी आगे हाइवे पर कट मिला फिर वापस लौटे। मैसूर सड़क मिल गई पर वो अब तक मिली सड़कों से कमतर थी। भीड़ इतनी थी कि घंटे भर में 20 किमी ही चल पाए।ऊपर से तुर्रा ये कि पेट्रोल खतम होने को था और पेट्रोल पंप मिल ही नहीं रहा था, जो दिख भी रहे थे वे दाहिनी तरफ थे। जब लगा कि आगे फंस सकते हैं तो फिर से कट ढूंढा, 10 किमी वापस आए, पेट्रोल भरवाया और फिरऊटीकी ओर दौड़ लगा दी। बहरहाल मैसूर के आगे हमने बांदीपुर टाइगर रिजर्व होते हुए कर्नाटक पार किया और मधुमलाई नेशनल पार्क के रास्ते तमिलनाडु में प्रवेश किया। जंगलों के बीच सर्पाकार अच्छी सड़क, मनमोहक दृश्य, हरी-भरी वादियां और अनायास ही दिखते हिरण व अन्य जंगली जन्तुओं को निहारते, आनन्दित होते अपने आप में मगन हमने फिर किसी अन्य बिना आवाजाही वाले रास्ते को पकड़ लिया। गनीमत कि वो रास्ता भी ऊटी ही जाता था। मार्ग बीहड़ था। कुछ देर बाद ऊटी 18 किमी का बोर्ड पढ़ा, तसल्ली हुई कि मंजिल करीब ही है। 17 किमी से अचानक एकदम खड़ी सी चढ़ाई शुरू हो गई। लगा आगे चढ़ाई कुछ कम हो जायेगी। आगे पीछे चार-पांच और गाडि़यां थीं, उन्हें देखकर हौंसला मिला और उन्हें हमें देखकर....चढ़ते गये और धीरे धीरे सभी आगे चलती गाड़ियों ने हमें साइड दे देकर सबसे आगे कर दिया। दो-चार बार सेकण्ड गियर में गाड़ी चली बाकी पूरे 17 किमी करीब-करीब फर्स्ट गियर में ही चलना पड़ा। सच कहें तो वो सिर्फ एडवेंचर नहीं था, उसमें भय भी मिश्रित था। सामान्य दिखने की कोशिश ज़रूर जारी थी पर धड़कनें भी कुछ ज़्यादा ही तेज़ थीं। सामने से आती गाड़ियों के कारण दो-चार बार जब रूकना पड़ा ब्रेक फेल हो जाने, गाड़ी बंद हो जाने या पीछे ढुलक जाने जैसे बुरे ख्याल आने लगते थे। ख़ैर जैसे तैसे हिम्मत करते ऊटी पहुंच ही गये। दोपहर-शाम का वक्त था और सुबह केरल के लिये निकलना था, सो हमने तय किया कि होटल का कमरा शाम-रात को बुक करेंगे, पहले घूम लेते हैं और सीधे झील चले गये। पहले और अभी के ऊटी में बड़ा अंतर नज़र आया। अब ऊटी में भीड़ बहुत है। ज़्यादा मज़ा नहीं आया। दो चार पॉइन्ट्स देखकर हमने रात में अच्छा-खासा होटल ढूंढ लिया। उस घुमावदार खड़ी चढ़ाई को चढ़ने के बाद की खुशी और सुकून था या कुछ और, हममें ऊर्जा और उत्साह अथाह था, सो रात में पैदल ही ऊटी घूम डाला। कुछ नहीं तो 15 किमी जरूर चले होंगे। थकान, विश्राम, भोजन, शयन।
तस्वीर-ए-बयां -
होटल वाले कैमरा लौटा कर ईमानदारी का परिचय दिया, वरना कहाँ होटल में छूटा हुआ सामान वापिस मिलता है। अगले महीने मैं भी ऊटी पहुंचने वाला हूँ।
ReplyDeleteरोमांचक और ताजगी भरा
ReplyDeletemirchi bhajiya khai ya nahi
ReplyDeleteर्मिची देखकर ही डर गए....अभी सफर बहुत बाकी था...
Deleteसुन्दर यात्रा वृतांत ...
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