बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
पंचम दिवस 21.05.2014 पेरम्बवूर-एलिप्पी-हरिपाड
सफरनामा -
होटल से तो सुबह जल्दी निकलना हो जाता था, पर घर से संभव न था। आराम से चाय-नाश्ता करके 10 बजे के बाद एलिप्पी के लिये निकले। यहाँ केरल में अनिल हमारे साथ ही रहे या यों कहें कि हम अनिल के साथ रहे। एर्नाकुलम काफी बड़ा और आधुनिक शहर है और उससे लगा हुआ कोच्ची भी काफी बड़ा नगर है। दोनों वैसे जुड़वां शहर हैं। ज़बरदस्त भीड़-भाड़ और ट्रेफिक से गुज़रते हुए हम एलिप्पी पहुँचे। (कोच्ची, एर्नाकुलम के बारे में बाद में) एलिप्पी को हिन्दुस्तान का वेनिस भी माना जाता है। बैकवाटर्स में हाउसबोट का आनंद लेने के लिये सैलानियों की भीड़ लगी रहती है। हाउसबोट 7000 से 14000 प्रति कमरे लक्जरी के हिसाब से उपलब्ध हो जाती है। हाउसबोट दोपहर 12.30 से अगले दिन 11.30 तक बैकवाटर्स में दूरदराज के दर्शनीय स्थलों और कस्बों तक वेज-नॉनवेज नाश्ते, खाने और ड्रिंक्स के साथ सैर कराती है। यही वो जगह है जहाँ ओणम में विश्वविख्यात सर्प नौका दौड़ आयोजित होती है। नहरों में भी बड़ी बड़ी नौकाओं में भ्रमण कराया जाता है। उत्तर और दक्षिण से जल यातयात का यहाँ बड़ा टर्मिनस है। बेहद खूबसूरत जगह। परेशानी हुई तो सिर्फ उमस से। जब तक हवा चले मौसम बहुत खुशगवार लगे, हवा बंद तो चिपचिपाहट वाली गर्मी। खैर अनिल की पत्नी और बच्चे छुट्टियों में यहीं पास में हरिपाड नगर में थे। तो शाम को हम वहाँ पहुँच गये। वहाँ भी केरल की परंपरा के अनुसार घर के नारियल के पेड़ के पानी के साथ अतिथि स्वागत हुआ। उसकी पत्नी और प्यारी प्यारी दो बेटियों से पहली बार मिलना आनंददायक क्षण था। कभी कभी हम सोचते थे कि दो अलग अलग भाषा वाले व्यक्ति अगर साथ हों तो भावाभिव्यक्ति और संवाद कैसे स्थापित हो सकता है....पर हुआ और बहुत खूब हुआ....भाषाई समस्या के बावजूद एक-दूसरे के भाव-विचार, हिन्दी-मलयाली-अंग्रेजी मिक्स, अच्छी तरह समझे जा रहे थे। रात में केरल का पारंपरिक भोजन प्राप्त हुआ। सी-फूड का भी आनंद लिया। खाना गले तक भर गया। हमारा अगला पड़ाव मुन्नार था लेकिन अनिल के दोनों बच्चे कन्याकुमारी में दिलचस्पी रखते थे, तो हमने मुन्नार कैंसिल कर अगले दिन कन्याकुमारी जाने का प्रोग्राम बनाया। फिर वही देर रात तक गप्पें, हंसी-ठठ्ठे, भाषाई समस्या से उपजने वाली स्थितियों पर ठहाके, फिर अपने अपने विश्राम कक्ष की ओर प्रस्थान.....निद्रादेवी को नमन....
तस्वीर-ए-बयां...
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अनिल का घर और घर का पर्यावरण |
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लिप्पी में बैक वाटर्स |
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हाउसबोट अंदर व बाहर से |
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एक दिन व रात के सफर पर जाने को तैयार हाउसबोट्स |
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नौका दौड़ समाप्ति स्थल पर बना स्टेडियम |
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अपनी अपनी हाउसबोट पर पहुंचते पर्यटक |
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बैकवाटर्स के पास का एक और दृश्य |
कल के अंक में पढ़िये- ....अद्भुत जगह...देश के दक्षिणी छोर के अंत में तेज़ हवाओं के बीच मौजूद होना किसी सपने के पूरे होने जैसा था। अपने शहर बिलासपुर से करीब सवा दो हजार किमी दूर इस विचार से अभीभूत था कि लेह से कन्याकुमारी अपने देश के सुदूर उत्तर एवं दक्षिणी छोर को किश्तों में ही सही पर सड़क मार्ग से यकीनन नाप लिया था।.....
संज्ञा आप दोनों के सफरनामा पढ़ कर ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मै अपने कालेज के दिनों मे घूमता था। बहुत ही सुन्दर तस्वीरे ।मै भी कोशिश करता हूँ की हुम्दोनो भी सफ़र पर जा सके।
ReplyDeleteThanks for posting tthis
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