Tuesday, July 22, 2014

Journey to 'God's Own Land' Kerala...सड़क यात्रा ब्‍यौरा 6...

बि‍लासपुर-केरल-बि‍लासपुर यात्रा संस्‍मरण 
दि‍नांक 17.05.2014 से 28.05.2014 

षष्‍ठ दि‍वस 22.05.2014  हरि‍पाड-कन्‍याकुमारी-हरि‍पाड


सुबह जल्दी उठे और तैयार होकर हम दोनों और अनिल का परिवार 8 बजे के पहले कन्याकुमारी के लिये निकल पड़े। पिकनिकनुमा माहौल में आनंद-मंगल करते, केरल की खूबसूरती निहारते दोपहर शुरू होते हम केरल की राजधानी तिरुअनंतपुर(पुराना त्रिवेन्द्रम) पहुँचे। काफी बड़ा शहर, आधुनिकता के साथ अपनी संस्कृति को अच्छी तरह सहेजे तिरुअनंतपुर। गोल्फ कोर्स, चिडि़याघर, कलादीर्घा और मछलीघर के अलावा महल, म्यूजि़यम और मंदिरों के लिये जाना जाता है। पद्मनाभ मंदिर तो अब अपने खज़ाने के लिये विश्‍वविख्यात हो चुका है। हालांकि‍ यहां हम कुछ सांस्‍कृति‍क और धामि‍र्क जटि‍लताओं एवं  समय की गति‍ ज्‍़यादा तेज़ होने के कारण दर्शन लाभ से वंचि‍त रह गये। यहीं से कुछ किमी दूर वि‍श्‍वप्रसिद्ध नारियल के पेड़ों से सजे साफ-सुथरे सी-बीच हैं। कोवालम सुंदर है पर ईव बीच भी काफी सुंदर है। ज़्यादा वक्‍त वहाँ देना मुमकिन और मुनासि‍ब  नहीं था क्योंकि हमें कन्याकुमारी पहुंचना और घूमना था। कोवालम में एक बड़े पंजाबी रेस्‍टोरेंट में हमने लंच कि‍या....अजीब बात थी, अनि‍ल उसकी पत्‍नी और बच्‍चों ने छोले भटूरे, पराठे आदि‍ नार्थइंडि‍यन खाने को प्राथमि‍कता दी और हमने दोसा, इडली आदि‍ साउथइंडि‍यन खाने को.... पर्यटन के खेल नि‍राले....लंच के बाद कन्याकुमारी के लिये निकले। केरल बॉर्डर दक्षि‍ण दि‍शा से पार करने के बाद भी दृष्यों की खूबसूरती वैसी ही थी। दोपहर बाद हम कन्याकुमारी में थे। अद्भुत जगह...देश के दक्षिणी छोर के अंत में वाचटावर पर तेज़ हवाओं के बीच मौजूद होना किसी सपने के पूरे होने जैसा था। अपने शहर बिलासपुर से करीब सवा दो हजार किमी दूर इस विचार से अभीभूत था कि लेह (खारदुंगला-विश्‍व कीं सबसे ऊँची सड़क) से कन्याकुमारी....अपने देश के सुदूर उत्तर एवं दक्षिणी छोरों को किश्‍तों में ही सही पर सड़क मार्ग से यकीनन ही नाप लिया था। कन्‍याकुमारी बस एक छोटा सा, पर अप्रति‍म आनंददायक अहसास है। कंस के अंत की आकाश वाणी करने वाली कन्‍याकुमारी देवी की वि‍शाल प्रति‍मा, विवेकानंद की शि‍ला, तीनों महासागरों के संगम और वहां के प्रसि‍द्ध सूर्यास्‍त को सादर प्रणाम कर देर शाम हम हरिपाड के लिये निकल पाए। फासला महज 200 किमी से कुछ ही ज़्यादा था पर मार्ग के अतिव्यस्त होने और तिरुअनंतपुर में भोजन के लिये रुकने के कारण रात करीब 12 बजे घर पहुँचे। थकान सभी पर हावी थी सो घर पहुंचते ही सब अपने अपने बिस्तरों की ओर दौड़ पड़े।

तस्‍वीर-ए-बयां-
केरल की राजधानी की कुछ इमारतें 




पदमनाभ मंदि‍र के पीछे , केरल की एक वि‍रासत
पद्मनाभ मंदि‍र
ईव बीच
कोवालम बीच

मोपेड का कुछ नया सा प्रयोग
कन्‍याकुमारी वाच टावर
वॉच टावर के अंदर अनि‍ल परि‍वार
कन्‍याकुमारी तट के कुछ मनमोहक दृश्‍य



कन्‍याकुमारी तट पर वि‍वेकानेद शि‍ला, कन्‍याकुमारी देवी की मूर्ति
स्‍वामी विवेकानंद जी की एक अन्‍य प्रति‍मा के साथ










कल के अंक मेंहरि‍पाड से एर्नाकुलम-कोच्‍ची होते हुए पेरम्‍बवूर तक का सफर......एर्नाकुलम और कोच्ची के बीच केरल ट्रांसपोर्ट द्वारा संचालित बोट जेटी चलती है। हमारे बस स्टैंड जैसे वहां बोट स्टैंड ‘जैटी‘ होते हैं।    4-8-10-12 रु. किराया होता है। बेहद अनुशासित ढंग से टिकट खरीदना और शांतिपूर्वक यात्रा करना वहां के निवासियों का सामान्य गुण लगा....

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