बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
सप्तम दिवस 23.05.2014
हरिपाड-एर्नाकुलम-कोच्ची-पेरम्बवूर
- सफरनामा -
- दक्षिण भारत के पांरपरिक व्यंजनों का नाश्ता करने के बाद अनिल की धर्म पत्नी और दोनों बच्चियों से विदा लेकर हम दोनों और अनिल एर्नाकुलम और कोच्ची दर्शन के लिये निकल पड़े। एर्नाकुलम-कोच्ची जुड़वां शहर के रूप में माने जाते हैं। एर्नाकुलम एक बड़ा, आधुनिक शहर है जहां विशालकाय बहुर्राष्ट्रीय कंपनियों के शो रूम, बड़े बड़े मॉल्स, विदेशी कारें, हार्ले डेविडसन मोटर साइकलें, स्टार होटल्स, फैशन ट्रेन्ड्स, ट्रेड सेंटर्स के साथ और भी आधुनिक चीजें बहुतायत में हैं। वहीं कोच्ची में भी ऐसी कुछ सुविधाओं के साथ प्राचीन स्मारक, सुकून भरे समुद्र तट, शांत यहूदी बस्ती, सी-फूड व मछली कारोबार और कारोबारी और सबसे बड़ी बात वास्कोडिगामा ने यहां जब पहला कदम रखा था वहां एक स्मारक है। हालांकि वो स्मारक अब आस पास का कचरा सहेजता रहता है। ऐतिहासिक स्मारक, अवशेषों और स्थानों की बदहाली देख सीधे दिल में चोट लगती है...काफी दुख होता है। बहरहाल एर्नाकुलम और कोच्ची के बीच केरल ट्रांसपोर्ट द्वारा संचालित बोट 'जेटी' चलती है। हमारे बस स्टैंड जैसे वहां बोट स्टैंड ‘जैटी‘ होते हैं। 4-8-10-12 रु. किराया होता है। बेहद अनुशासित ढंग से टिकट खरीदना और शांतिपूर्वक यात्रा करना वहां के निवासियों का सामान्य गुण लगा। हमने भी अपनी कार एर्नाकुलम पोर्ट के पास पार्क की और बोट से समुद्र और दोनों तरफ बसे शहरों और शानदार स्टार होटल्स के नजारे देखे। कोच्ची पहुंचते प्राइवेट स्पीड बोट्स के साथ साथ तटरक्षकों/पुलिस को अपनी स्पीड बोट्स में चौकस पाया। वहां चायना फिशिंग नेट, फिश व सी-फूड मार्केट, वास्काडिगामा मॉनुमेंट,ट ्प्राचीन चर्च, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस पर लगी घड़ी सदियों तक बंद नहीं हुई- हालांकि हमें रूकी हुई मिली लेकिन अनिल का दावा था कि जब वो पिछली बार यहां आया था तब तक वो चल रही थी। इन सबके साथ यादगार पलों के साथ अद्भुत स्थापत्य कला वाला क्लीन यहूदी नगर देखा, नगर क्या कुछ एक इमारतें हैं बाकी आधुनिकता की देन चढ़ गई हैं, पर उन्हें देखकर यहूदियों की संघर्षगाथा, गौरव, व्यापार कला और उनकी संस्कृति, संपन्नता ख़याल में आ गए। यहां किराये पर साइकिल लेकर नगर भ्रमण पर्यटकों को शगल प्रतीत हुआ। समय की कमी थी, पेट कुछ खाने के लिये कह रहा था तो हम साइकिल के बजाय ऑटो रिक्शा से जैटी स्टैंड पहुंचे और कोच्ची से वापस उसी रास्ते से बोट द्वारा एर्नाकुलम पहुंचे। यहां ट्रेड सेंटर के सामने एक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट में खाया पिया, जो कतई भी उसकी प्रसिद्धि के अनुसार नहीं था। घूमते फिरते अचानक श्रीमतीजी को ख़्याल आया कि इतनी बड़ी गाड़ी में सिर्फ दो प्राणी, बाकी गाड़ी खाली तो क्यों ना कुछ खरीददारी कर ली जाए तो काली मिर्च, मसाले, ड्रायफ्रूट्स, साड़ी-सूट से लेकर नारियल के बने चिडि़या के घोंसले क्वायर के मैट्स, पैर पोंछ भी खरीद डाले गये। खाली गाड़ी़.....व्यापारियों की मौज.....लेकिन एक अजीब संयोग हुआ एर्नाकुलम की किसी गली में मसाले खरीदते वक्त बिलासपुर की ही हमारी परिचित, मेरे दोस्त नोएल जोन्स की बहन, अकस्मात टकरा गईं। अजब-गजब, सुखद संयोग। देर शाम हम अनिल के घर पेरम्बवूर रवाना हो गये। रात होते वहां पहुंचे। अंकल-आंटी के साथ फिर गप्पें शप्पें, नाना प्रकार के व्यंजनों का आनंद और शयन।
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सड़क किनारे जाल से मछलियां निकालकर बेचते मछुआरे |
मछलियाँ तो उतावली दिख रही हैं, कड़ाही में जाने के लिए। केरल की पाम्पेट एवं पॉण्डीचेरी की शंकरा प्रसिद्ध है।
ReplyDeleteLalit ji wahan par aap machhali kharida kar dene se wah bana bhi dega...hotel hain uske liye...just bagal mein hi...Achha laga Sangya ji...bahut hi baarik nigahein rahin tathyon ko khojane mein...Maithili sharan ji ki chaara dhaam ki yatra mein Himalaya ke description ki tareha...
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