बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
अष्ठम दिवस 24.05.2014 पेरम्बवूर-पेन्यूर
सफरनामा -
हमने पूर्व दिशा के बॉर्डर से केरल में प्रवेश किया था। कन्याकुमारी जाते वक्त दक्षिण दिशा में केरल बॉर्डर पार किया था। अब उत्तर दिशा में बॉर्डर क्रॉस करते तो लंबाई में पूरा केरल घूम लिया जाता। हमने पेरम्बवूर से कोस्टल रूट से गोवा का प्लान बनाया जिससे समुद्र तट के किनारे की सड़क के साथ साथ उत्तर केरल भी पूरा देखा जा सकता। अनिल को भी रास्ते में थ्रिसूर में ड्रॉप करना था ताकि वह पालक्काड में अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर सके। आंटी ने सुबह हैवी नाश्ता कराया और काफी सारा नाश्ता रास्ते के लिये पैक कर दिया। भारी मन के साथ सुबह 9 बजे अंकल आंटी से विदा लेकर हम सफर पर चल पड़े। पेरम्बवूर से लगा हुआ ही आदि शंकराचार्य के जन्म स्थल में एक मीनारनुमा स्मारक है। देखने का मौका छोड़ना स्वयं का अपमान था सो वहां गए और पवित्र स्थल को नमन करके थ्रिसूर की तरफ बढ़े जहां मित्र से विदाई का वक्त आ गया था। अनिल से थ्रिसूर बस स्टैंड में विदा ली। थ्रिसूर वही प्रसिद्ध जगह है जहां का पुरम उत्सव, शाही ढंग से सजे-संवरे हाथियों की छाता प्रतियोगिता, अक्सर हम टीवी पर देखा करते हैं। यहां से हम कालीकट यानि काजीकोडे की तरफ बढ़े। कालीकट केरल पर्यटन का एक प्रमुख स्थान है। यहां के सारे समुद्री तट भीड़ भरे लेकिन स्वच्छ और व्यवस्थित हैं। यहां थोड़ा बहुत घूमने और आइसक्रीम वाले से मनुहार कर/जुगाड़ कर आइसबॉक्स को बर्फ से भरा और चल पड़े 22 किमी दूर कापड़ बीच, जहां भारत पहुचने पर वास्कोडिगामा ने 1498 में अपना पहला कदम रखा था। पचीसों लोगों से पूछने और पचासों कि.मी. भटकने के बाद अंततः हमने वो ऐतिहासिक स्थल खोज ही लिया। देश के अन्य महत्वपूर्ण स्मारकों की तरह उस स्मारक की दुर्दशा में भी कहीं कोई कमी नहीं थी। पास के समुद्री तट कापड़ बीच की सजावट और व्यवस्था चुस्त दुरुस्त थी - पर वह स्मारक अलग थलग दूर एक कोने में पर्यटकों को अपनी ज़बरदस्त अनदेखी करते हुए देख मन मसोस निर्विकार भाव से शांत खड़ा था। हालांकि समुद्र तट पर नारियल के पेड़ तेज़ हवाओं में वैसे ही हिलोरे मार रहे थे जैसे वास्कोडिगामा ने उन्हें दूर से हिलोरे मारते समझा था कि वहां के निवासी उनके स्वागत में हाथ हिला रहे हैं। उस ऐतिहासिक स्थल पर 500 साल पूर्व की आहट और हलचल को महसूस करने की कोशिश शाम होने तक की। अब रात्रि विश्राम के लिये हमने केरल बॉर्डर पर कासरगोड तक पहुंचने की सोची और चल पड़े। कालीकट से घंटे भर की दूरी पर 60 कि.मी.दूर माहे पड़ता है जो पांडिचेरी का एक हिस्सा है। दरअसल तमिलनाडु स्थित केन्द्रशासित प्रदेश पांडिचेरी के तीन भाग और भी हैं। तमिलनाडु में ही ‘कारैकल‘, आंध्रप्रदेश में ‘यानम‘ और केरल में ‘माहे’। माहे छोटी सी, प्यारी सी, सुंदर सी जगह है। सी-माउथ, समुद्र तट, चर्च और फ्रांसीसी स्थापत्य कला के कुछ नमूने मनभावन हैं। गाड़ी में पेट्रोल भी ख़तम हो रहा था, वहां फुल करवाया तो पता चला कि दाम 74-76 के बजाय 69 रु.प्रति लिटर ही है-अच्छा लगा। यहां से आगे समुद्र तट के किनारे एक सुंदर से रेस्टोरेंट में सूर्यास्त की लालिमा में जूस-नाश्ता लिया, तस्वीरें लीं और कासरगोड की ओर बढ़ चले लेकिन कनूर के आगे सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था - जाम की स्थिति लगातार बन रही थी - रात भी हो चली थी। वहीं कहीं एटीएम से पैसे निकालते वक्त किसी सज्जन की सलाह पर हमने पेन्यूर में रुकने का फैसला किया। नौ-साढ़े नौ बजे वहां के सबसे बड़े और अच्छे बॉम्बे होटल में रूम भी मिल गया और बेहतरीन रूम सर्विस भी....फिर....फिर आगे की प्लानिंग....फिर क्या....नहाना, खाना और सोना।
तस्वीर-ए-बयां
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विदाई के पल |
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आदि शंकराचार्य जी का स्मारक |
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काज़ीकोडे/कालीकट |
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कालीकट समुद्र तट |
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कापड़ बीच के पास पुराने बंदरगाह के अवशेष |
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माहे, पांडिचेरी |
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सी-माउथ |
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रेस्टोरेंट और वहां से ली गई तस्वीरें |
कल के अंक में - हम कोस्टल रोड पर थे...‘मालते’ के पास एक जगह बाईं ओर समुद्र और दाहिनी ओर नदी भी साथ साथ दिखती रहीं.....अद्भुत दृश्यावली....
बढिया यात्रा चल रही है।
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