बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
नवम दिवस 25.05.2014 पेन्यूर-गोवा
सफरनामा -
सुबह 8 बजे अपनी इलेक्ट्रिक केटल की चाय पीकर हम गोवा के लिये निकल पड़े। सड़क कहीं कहीं कुछ ज़्यादा ही खराब थी। सड़क निर्माण कार्य भी चल रहा था 57 किमी कासरगोड-केरल बॉर्डर तक सफर तय करने में दो घंटे से ज्यादा लग गये।करीब 1700 किमी केरल भ्रमण के बाद केरल के नारियल और केले की विशिष्ट किस्मों के पेड़, घने वन, रबर,काजू,चाय के बगान,प्रसिद्ध और अनछुए समुद्र तट, सरल और पर्यावरण मित्र केरलवासी और प्रकृति से वरदान प्राप्त छोटे से राज्य केरल से बाहर निकलना एक अजीब अहसास था। एक बात बताना यहां लाज़िमी है कि जहां दक्षिण और मध्य केरल हिन्दू और क्रिश्चियन बाहुल्य था, वहीं उत्तरी केरल मुस्लिम बाहुल्य लगा, लेकिन कला-संस्कृति और खूबसूरती में पूरा केरल एक जैसा ही था। कासरगोड के बाद सड़क अच्छी थी गोवा तक का सवा चार सौ कि.मी. तय करना था। तेज़ चले और आधे घंटे में मैंगलौर पहुंच गये। साफ सुथरा, हरितमय, अनुशासित और आधनिक शहर लगा मैंगलौर। वहां चाय-नाश्ता किया....शायद ट्रिप का आखिरी दोसा वहीं खाया। हम कोस्टल रोड पर थे...थोड़ी थोड़ी दूरी पर बाईं तरफ समुद्री नज़ारा नज़र आता था और दाहिनी तरफ नारियल, सुपारी के पेड़ों से आच्छादित वन, छोटी छोटी पहाडि़यां या सुंदर सुंदर घरों और मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघरों से सुसज्जित बस्तियां दीखती थीं। ‘मालते’ के पास एक जगह बाईं ओर समुद्र और दाहिनी ओर नदी भी साथ साथ दिखती रहीं....अद्भुत दृश्यावली। आगे ‘धारवाड़‘ और ‘सदाशिवगढ़’ में भी खूबसूरत सामुद्रिक नज़ारों का आनंद मिला। यहीं से कुछ देर बाद दक्षिणी छोर से हमने गोवा में प्रवेश किया। उंचे उंचे पहाड़, घाट और उंचाई से कहीं कहीं दिखता समुद्र.....एसी बंद कर खिड़कियां खोल लीं.....ठंडी और ताजा हवा.....फेफड़ों ने धन्यवाद दिया, हमने स्वीकार किया। गोवा का असली दक्षिणी इलाका भी बेहद खूबसूरत इलाका है.....लेकिन पर्यटक विहीन। गोवा में अमूमन पणजी और मडगांव के बीच 25-30 कि.मी. की परिधि में ही पर्यटकों को विशेष तौर पर सैर सपाटा करवाया जाता है। चूंकि हम पहले भी गोवा घूम चुके थे और पिछले दौरे पर हमें कोलवा बीच और वहां बना एक रिसोर्ट बहुत पसंद आया था, तो हम सीधे मडगांव होते हुए कोलवा बीच के उसी रिसोर्ट में पहुंच गए। सौभाग्य से वहां जगह भी उपलब्ध हो गई। थोड़ा विश्राम के बाद सीधे बीच पर गए। समुद्र की लहरों के बीच खेलना, जूझना अब बचपना सा लगता है सो तट पर बने ओपन बार-रेस्टोरेंन्ट्स में बैठकर नाश्ता करते दिल, दिमाग, नज़र सब नज़ारों को अर्पित कर दिया। रेस्टोरेंट का एक कर्मचारी कभी हमारे छत्तीसगढ़ के रायपुर में भी कार्यरत रहा था। बातचीत हुई, परिचय बढ़ा तो उसने डिनर में ख़ास ड्राइ चिकन की कोई डिश खिलाने की पेशकश की। कुछ देर बाद कोलवा मार्केट गए, घूमे फिरे, पर बीच ने हमें दोबारा वापस खींच लिया। रात हो चली थी पर कोलवा बीच गुलजार था। हमने भी वहां मिलने वाले चिकन रोटी का एक विशेष रोल पैक कराया और लहरों के पास रेत पर जा बैठे। तेज़ हवाओं, उन्मादी लहरों और उत्साही पर्यटकों के बीच, बीच पर कब रात के 11 बज गए पता ही नहीं चला। डिनर के लिये उसी रेस्टोरेंट के कर्मचारी ने लहरों के पास रेत पर टेबल कुर्सी लगा दी, समुद्र के गर्जन का संगीत सुनते, कंदील की रोशनी में लाजवाब डिनर। रात करीब 12 बजे रिसोर्ट में वापस, आइसक्रीम का सेवन और शयन।
तस्वीर-ए-बयां-
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मछुआरों की बस्ती |
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नदी, सड़क और समु्न्दर |
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लोकल लाइट हाउस |
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गोवा की तरफ बढ़ते वक्त का एक नज़ारा |
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एक और नज़ारा |
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एक और.. |
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गोवा बॉर्डर के ठीक पहले |
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गोवा में प्रवेश |
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साउथ गोवा के कुछ द़श्य |
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रिसॉर्ट |
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कोलवा बीच की तस्वीरें |
कल के अंक में - लेट होने का मूल कारण कार का पार्किंग स्थल भूलना और फिर रास्ता भटकना था। कुल मिलाकर एडवेंचर जारी था।
bahut hi manohar drushya hain...thnx...
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