बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
चतुर्थ दिवस 20.05.2014 ऊटी-कुन्नूर-पेरम्बवूर
सफरनामा -
आज केरल पहुँचना था। मन प्रफुल्लित था। सुबह साढ़े आठ पर तैयार होकर केरल के लिये रवाना हो गये। कुन्नूर पहुँचते ही रेल्वे स्टेशन के पास एक गाइड मिल गया। हालांकि हम कुन्नूर घूमने के मूड में नहीं थे, केरल पहुँचने की जल्दी थी, पर गाइड ने डेढ़ घंटे में 5-6 अच्छे स्पॉट्स घुमाने का लालच दिया और हम घूम गए। हमें कुछ चाय नाश्ता भी करना था। गाइड हमें सारे छोटे-बड़े रेस्टोरेन्ट्स के सामने से गुज़रवाता रहा, पर रुकने नहीं दिया। वेलिंग्टन केंट एरिया के इलाके में एक छोटी सी मिलिट्री कैंटीन पर गाड़ी रुकवाई, थोड़ा बुरा ज़रूर लगा कि अच्छे-बड़े रेस्त्रां छोड़कर यहाँ पिद्दी सी इस कैंटीन में.....लेकिन यह सत्य है कि जितना अच्छा सांभर बड़ा हमने वहाँ खाया, वैसा कभी नहीं खाया था। गाइड पर विश्वास बढ़ गया और सचमुच गाइड बहुत अच्छा था। डेढ़ के बजाय 3 घंटे ज़रूर लग गए लेकिन योजनाबद्ध तरीके से उसने काफी अच्छी जगहें घुमवा दीं खासकर चाय की फैक्ट्री। कुन्नूर से अब हमें कोयम्बटूर होते हुए पक्काड के रास्ते पेरम्बवूर पहुँचना था। कुन्नूर के घाट से उतरते वक्त लंबा जाम मिल गया। केरल के अपने मित्र से वैकल्पिक मार्ग पूछ रहा था कि अचानक ज़ोर की आवाज़ आई और देखा मेरी कार सामने खड़ी टेम्पो ट्रेवलर से टकरा गई थी। फोन बंद कर हैरान-परेशान, कुछ क्रोधित अवस्था में कार से उतरा तो देखा बोनट में छोटा सा डेंट लग गया था, लगा कि मेरी नाक में घूंसा लगा है। उस गाड़ी के ड्रायवर को कुछ एक नसीहतें देने बढ़ा ही था कि लोगों ने बताया कि आपकी कार ही लुढ़ककर टेम्पो ट्रेवलर से टकराई है। शायद फोन पर केरल के दोस्त से बात करते वक्त क्लच दब गया था। शर्मीला व्यक्तित्व है, बड़ी शर्म आई, फिर चुपचाप सिर झुका गाड़ी में बैठ गया। ढाई घंटे बाद जाम खुला और हम निकल पड़े कोयंबटूर रोड पर। रास्ते में एक जगह पड़ी कल्लार...बेहद खूबसूरत...हर तरफ नारियल के पेड़ों का प्लांटेशन, बहुत ही मनभावक स्थल...वहाँ रुककर नारियल पानी का मज़ा लिया। मजा तो स्थानीय एफ.एम. रेडियो स्टेशन सुनने में भी आता था ये काम हम लगातार करते चल रहे थे। दक्षिण की भाषाएं यद्यपि समझ में नहीं आती थीं लेकिन गीतों का संगीत कभी भी अपरिचित नहीं लगा, कुल मिलाकर लोकल एफ.एम. से उस क्षेत्र विशेष की संस्कृति और संगीत से जुड़ाव बना रहा। बीच बीच में अंग्रेजी के कुछ शब्द और कभी कभी हिन्दी में बजने वाले गीत और विविध भारती प्रसारण हमें आनंदित करता रहा। इस बीच कोयंबटूर से केरल के मित्र अनिल धर्मन से हम लगातार संपर्क में रहे। नेविगेटर के अलावा उसका मार्गदर्शन काफी सहायक रहा। कोयंबटूर से लगा हुआ केरल बॉर्डर शाम 5.10 मिनट पर पार करते वक्त एक अजीब सी सिहरन भरी अनुभूति का अनुभव हुआ....बरसों पुराना ख़्वाब जो पूरा हो रहा था....जैसा सुना था केरल को वैसा ही पाया, उपर वाले ने जैसे कैनवास पर बड़ी मेहनत से प्राकृतिक चित्र उकेरे थे या फिर प्रकृति को मन मुताबिक सजने संवरने का वरदान दे दिया था। केरल के लोग अपने प्रदेश को 'गॉड्स ओन लैंड' ठीक ही कहते हैं। पलक्काड में अनिल हमारा इंतज़ार कर रहा था। शाम 5.35 पर पलक्काड में अनिल से मुलाकात हुई। लगभग 7 वर्षां के बाद मित्र-मिलाप हुआ और उसके कार में बैठते ही तेज़ बारिश शुरू हो गई। पुरानी यादें ताज़ा करते करते, हालचाल पूछते-बताते, नज़ारे देखते कब रात 9.00 बजे पेरम्बवूर में अनिल के घर पहुँच गए पता ही नहीं चला। घर में अंकल आंटी से 23 सालों बाद मिले तो आँसू छलक गये। उम्र के साथ दोनों कुछ कमज़ोर से लगे, लेकिन अंकल का अपनापन, आंटी का स्नेह...मनुहार कर दसों प्रकार के व्यंजन खिलाना, जीवन भर याद रहेगा...रात को देर तक गप्पें चलीं....पुरानी यादों की जुगाली हुई....सोने की इच्छा ही न थी, पर शयन भी तो ज़रूरी है, सो मंद-मंद मुस्कुराते सो गये।
तस्वीर-ए-बयां-
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कुन्नूर घाटी का सौंदर्य |
Aapke Blog par aakar accha laga.Magar feedbarnar suvidha aapke blog par nahi hai.Mail par lekh kaise prapt kare?mera mail id - manoj.shiva72@gmail.com
ReplyDeleteखूबसूरत चित्र हैं, आपके साथ चाय बगान एवं फ़ैक्टरी की भी सैर कर ली।
ReplyDeleteखूबसूरत दृश्य चित्र और वृतांत...
ReplyDeletelucky to be in kerala during the monsoon.....its the right time...
ReplyDeleteवाह...... पढ़ते पढ़ते ऐसा लग रहा था जैसे आप रेडियो पर आँखों देखा हाल सुना रहीं हैं.....
ReplyDeleteअगली किश्त का बेसब्री से इंतजार है.....
HOUSE BOAT KA MAJA LIYA KI NAHIN?...KITANA PETROL MEIN KHARCHA HUA AUR TOLGATE MEIN?...
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