क्यूँ वो प्रिय आता पार नहीं, शशि के दर्पण में देख-देख मैंने सुलझाए तिमिर केश।
गूँथे चुन तारक पारिजात अवगुंजन कर दिल में अशेष,
क्यूं आज रिझाया उसको मेरा अभिनव सिंगार नहीं
यूँ तो ईश्वर ने नारी को सहज आकर्षण प्रदान किया है, फिर भी श्रृंगार और व्यवहार ये ऐसे गुण हैं जो उसके व्यक्तित्व और गरिमा में चार चांद लगा देते हैं। हमारे भरतीय संस्कृति में नारी के जिन सोलह सिंगारों का वर्णन किया गया है, उन्हीं में से एक है सुहागिनों के माथे की बिंदिया।
गूँथे चुन तारक पारिजात अवगुंजन कर दिल में अशेष,
क्यूं आज रिझाया उसको मेरा अभिनव सिंगार नहीं
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महिलाओं के माथे पर चमकती इस छोटे से सुहाग चिन्ह की कहानी भी उतनी लंबी और विस्तृत है, जितना नारी का खुद अपना व्यक्तित्व। भारत का कोई भी प्रदेश देखिये विवाहित स्त्रियों ने अपने सुहाग की प्रमुख निशानी के रुप में इसे सम्मान दिया है। वहीं आधुनिक परिवेश में अविवाहित युवतियाँ भी इसे अपने सौंदर्य वर्धन के लिए लगाती हैं। सौंदर्यवादी श्रृंगार रस के कवियों के कल्पना में तो बिंदिया का स्वरुप इतना ऊँचा है कि माथे पर लगी बिंदिया के सामने चांद और सूरज भी फीके और बेमानी लगते हैं। कवि बिहारी ने तो यहाँ तक कहा है कि किसी सँख्या में एक शून्य लगाने पर उस सँख्या का मान दस गुना बढ़ जाता है, लेकिन उनकी नायिका के माथे पर वही एक शून्य जब बिंदिया के रुप में लगता है तो उसकी सुंदरता हज़ार गुना बढ़ जाती है।
कहत सबै बेंदी दिये आंख दस गुनो होत,
पिय लिलार बेंदी दिये अगणित बढ़त उदोत ।
अब तो आप समझ ही गये होंगे इस नन्हीं सी बिंदिया का कमाल। सौंदर्य बोध की पर्याय यह बिंदिया प्रियतम की नींद उड़ाने का दम भी रखती है।
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घनानन्द नें कहा है -रावरी रुप की रीति अनूप, नयो नयो लागत , ज्यों ज्यों निहारिये।
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प्राचीन जनश्रुतियों में भी हमें बिंदिया के चलन की चर्चा मिलती है। राजे-महाराजाओं के विवाह उनकी शूरवीरता के आधार पर होते थे। स्त्रियों को अपना वर स्वयं चुनने के लिए स्वयंवर समारोहों का आयोजन होता था, चुना गया वर अपनी कलाई या अंगूठे का रक्त निकाल कर वधु के माथे पर बिंदी लगाकर उसे अपनी पत्नी स्वीकार करता था। फिर इस रक्त की जगह सिंदूर ने ले ली और आज के इस फैशन परस्त युग में चेहरे के मेकअप में फिनिशिंग टच के रुप में प्रयुक्त होने लगी हैं कई वैरायटी की बिंदियाँ। इतना ही नहीं बिंदियों के विषय में वैज्ञानिक शोध भी हुए हैं जिसमें ये बताया गया है कि बिंदी या तिलक की सबसे बड़ा भूमिका मस्तिष्क के अग्र भाग को न केवल शांत और पुष्ट करना है बल्कि मस्तिष्क में अवस्थित सूक्ष्म तंतुओं के रक्त परिवहन को नियमित करते हुए मस्तिष्क में विद्यमान श्वेत पदार्थ को स्वस्थ करना भी हैं। कल तक जो बिंदिया उद्योग लघु श्रेणी में था वो आज विस्तृत कारोबार की श्रृंखला में आ खड़ा हुआ है। देश में जहाँ पर स्वतंत्रता के पहले इसके 20 कारखाने हुआ करते थे वहीं इसकी बढ़ती मांग ने इनकी सँख्या लगभग 25 से 30 हज़ार के पार कर दी है। हालांकि इनके उत्पादन के सही आँकड़े कहीं भी उपलब्ध नहीं है, पर इतना तय है कि बिंदिया उद्योग अब प्रतिष्ठित और बड़े औद्योगिक घरानों को पदार्पण के लिए आकर्षित कर रहा है। पूरे भारत में बिंदियों के उत्पादन के चैथाई हिस्से पर अकेले दिल्ली का कब्ज़ा है, एक सर्वेक्षण के मुताबिक पूरी दिल्ली में तकरीबन 3000 इकाईयाँ बिंदी बनाने के कारोबार से जुड़ी हुई हैं, जिनमें से 10 इकाईयों का सालाना टर्न ओवर 20 करोड़ से भी अधिक का है। विदेशों में भी इन भारतीय बिंदियों की भारी मांग है। अमेरिका में भारतीय महिलाओं के माथे पर दमकती बिंदिया को इन्डियन डॉट कहा जाता है, वैसे भी साधारण फेरी लगाने वाले से लेकर बड़े-बड़े शोरूम्स में उपलब्ध इस बिंदिया का नारी के जीवन से चोली दामन का साथ रहा है। भारतीय नारी के माथे पर सजी अपनी नूरानी आभा बिखेरती साधारण से साधारण सी बिंदिया में भी ऐसी असाधारण चमक है जिसमें नारी का संपूर्ण सौंदर्य चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा जैसी पंक्तियों को सही अर्थों में प्रकट करता है।
पॉडकास्ट में प्रयुक्त गीत ......
गीत- बिंदिया चमकेगी....................
गीत- मेरी बिंदिया तेरी निंदिया.......................
गीत- तेरी बिंदिया रे, रे आय हाय......................
गीत- कजरा लगा के बिंदिया सजा के.................
गीत- चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा...............