Thursday, November 25, 2010

छत्‍तीसगढी की 100 साल पुरानी रिकॉर्डिग

दुर्भाग्य की बात है कि विषय के रूप में भाषाविज्ञान या लिग्‍िवस्‍टिक्‍स प्रदेश के चुनिंदामहावदि़यालयों व वि.वि. में ही उपलब्‍ध है। भाषाविज्ञान जैसे भावाभिव्यक्ति के विकास के लिये अति महत्वपूर्ण विषय को इस क्षेत्र में वह मुकाम, वह सम्मान हासिल नहीं हुआ जैसा दीगर प्रांतों और विदेशों में हासिल हुआ है।


बानगी देखिये बिलासपुर भास्कर सोमवार 22 नवंबर के अंक में छपी श्री संजीव पाण्डेय की रिपोर्ट में और उसके बाद सुनिये श्री आलोक पुतुल  द्वारा सीजी स्वर को उपलब्ध करवाए गए उसी कार्य की रिकॉर्डिंग। ये याद रखें जनाब कि अच्छी खासी रिकॉर्डिंग 100 साल पहले भी होती थी।





श्री आलोक पुतुल व श्री संजीव पांडेय को कोटिशः बधाइयां और सीजी स्वर की तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद।

रे‍डि‍यो धारावाहिक रचना-5

पंचम एपिसोड
प्रसव
सूत्रधार 1- पिछले अंको में केयर इंडिया छत्तीसगढ़ से प्रसारित इस प्रयोजित धारावाहिक रचना में आपने सुना, रचना अपनी किशोरावस्था में थी मात्र 15 वर्ष की आयु में उसकी माँ ने उसकी शादी कराने की कोशिश की लेकिन घर में दादी और रचना के पिता ने ऐसा होने नहीं दिया। साढ़े 18 साल की होने के बाद रचना की शादी दीनू से हुई जो काफी समझदार है। स्वास्थ्य केन्द्र जाकर उसने सारी जानकारियां ली थीं। रचना को भी आंगनबाड़ी दीदी ने समझायाकि बच्चों की जल्दी नहीं करना। शादी के दो-ढाई साल के बाद उन दोनों ने पैसों की कुछ  बचत भी कर ली, और शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार हो गये। गौरी काकी को खबर  हुई कि वो दादी बनने वाली है, हाँ रचना के घर में भी आंगनबाड़ी दीदी, सुलेखा दीदी, नर्स दीदी, कुन्ती दाई, और निसा मितानिन ने इन नौ महिने में रचना को बहुत सहयोग दिया। गर्भावस्था के दौरान क्या खाना है, कैसे रहना है, सारी बातों में उसे और गौरी काकी को  विस्तृत रूप में समझाया, रचना के गर्भावस्था को नौ महीने पूरे हो चुके हैं और अब कभी  भी खबर आ सकती है कि रचना माँ बन गई है। चलिये हम भी चलें रचना के घर पर।

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रचना -     सुनिये
दीनू -    हाँ कहो।
रचना -    अब आप काम पे बिलासपुर जाना बंद करिये।
दीनू -    क्यों क्या हुआ?
रचना -    वो पिछले बुधवार दाई कह रही थी कि बस एक-आध हफ्ते की बात हैं और आज....आज बुधवार है।
दीनू -    लेकिन अभी तुम्हें दर्द वर्द तो हो नहीं रहा है। और फिर आज मैं काम पे थोड़े ही जा रहा  हूँ वो पेमेन्ट लेना है। बस पैसे लिये और वापस।
रचना -    लेकिन जल्दी आना...मुझे डर लग रहा है।
दीनू -    डरना कैसा रचना - माँ हैं घर में - कमला दीदी तो आजकल रोज ही आ रही हैं। दाई  भी आज आने वाली है और अपना रामेश्वर तो गाड़ी तैयार करके बैठा है। तुम बिल्कुल चिंता मत करो।
रचना -    वो सब ठीक है लेकिन जब आप पास रहते है तो मुझे अच्छा लगता है, बिल्कुल चिंता नहीं             रहती। पर...
दीनू -    रचना बस मैं यूं गया और यूं आया। थोड़े पैसे और इकट्ठे हो जायेंगे तो काम ही आयेंगे।  सब ठीक होगा रचना तू बिल्कुल चिंता मत करना। ठीक।
रचना -    जी..पर आप जल्दी आना, निसा मितानिन को बोलते हुये जाइयेगा।
दीनू -    हाँ।
--        --        --        --
(सिलाई मशीन की आवाज)
रामू -    ऐ रामू।
रामू    -    क्या?
सास -    वो कपड़ा उठा दे।
रामू  -    लेकिन आप ये सब क्या सिल रही हैं।
सास -    तेरे भतीजे के लिये कपड़े।
रामू -    लेकिन वो तो अभी पैदा भी नहीं हुआ।
सास -    तो क्या हुआ...तैयारी तो करनी पड़ती है ना।
रामू -    अच्छा...? पर उसे पुराने कपड़े क्यों पहनायेंगे? नये नये कपड़े बाजार से भी तो खरीद सकते  हैं।
सास -    नहीं रामू -एक तो उतने छोटे नये कपड़े बाजार में मिलते नहीं। फिर वो थोड़े कड़े होते  
दीनू    -    कहाँ है माँ रचना।
सास -    जा जल्दी से मिल ले फिर बाहर आ जा।
कमला -    ज्यादा देर नहीं लगाना दीनू और वहाँ कुछ छूना मत।
कुंती -    चलो मेरे हाथों में पानी डालो, हाथ धोने है।..लाओ साबुन दो...हाँ बस बस (पानी की आवाज)
हाँ अब ठीक है।
सास -    ये लो तौलिया
कुंती -    मैंने आपसे तौलिया मांगा क्या?
सास -    नहीं..पर...
कुंती -     मैं चलूं समय हो गया है।
कमला -    गौरी काकी....प्रसव कराते समय हाथ धोने के बाद तौलिये से हाथ नहीं पोंछते, हवा में ही  सुखाते हैं
सास -    क्यों
कमला -    संक्रमण का डर रहता है।
सास -    हे भगवान सब ठीक-ठाक हो जाये, सवा किलो लड्डू चढ़ाऊँगी।
निशा -    अब आप यहाँ आराम से बैठ जाओ, सब ठीक हो जायेगा।
रामू -    दीनू भैया तो बहुत घबराये हुये थे। बार बार पूछ रहे थे रचना कैसी है? रचना कैसी है? और इतनी तेज साइकिल चलाये कि मोटरसाइकिल भी उतनी तेज नहीं चल सकती।
सास -    बहुत चाहता है रचना को मेरा दीनू, लो वो आ गया, रचना कैसी है बेटा।
दीनू -    बहुत दर्द है उसे माँ बहुत तकलीफ है।
निशा -    अरे बेटा ये तकलीफ तो हर माँ को होती है। बस थोड़ी देर और फिर ये दर्द..खुशी में बदल  जायेगा ...बस कुछ देर और....
रामू -    याने मैं चाचा बनने वाला हूँ ऽ ऽ
रचना की आवाज - आ..आ..आ
निशा -    बधाई हो, बधाई हो
सास -    हो गया.....क्या हुआ।
निशा -    पहले मिठाई तो खिलाओ।
सास -    ए परेशान मत कर जल्दी बता क्या हुआ।
निशा -     पहले मिठाई
सास -    तो बता कौन सी मिठाई खिलाऊँ।
निशा -    लड्डू।
सास -    माने..माने पोता हुआ है।
निशा -    हाँ गौरी काकी पोता हुआ है। आप दादी बन गईं। (थाली बजाने की आवाज) 
और दीनू तुम बाप बन गये हो।
रामू     -    और मैं चाचा.... चलो अंदर चलो।
निशा -    अभी रुको...थोड़ा काम बचा है, पूरा होने दो फिर देखना बच्चे को।
सास -    हाँ अभी बच्चे को नहला धुला कर साफ...
कमला -    अरे नहीं गौरी काकी, बच्चे को तो तीन दिनों तक नहीं नहलाना है।
सास -    क्यों ऐसे ही गंदा रहेगा क्या?
कमला -    अरे नहीं...उसे पोंछ कर साफ कर देंगे, तीन दिनों बाद नहलायेंगे...अभी नहला दोगे तो डाभा हो जायेगा।
दीनू -    डाभा क्या?
निशा -    निमोनिया...तीन दिन के पहले बच्चे को नहलाने से बच्चे को डाभा मतलब निमोनिया होने             का खतरा होता है।
कुंती -    आ जाओ अब सब भीतर आ जाओ।
        (हाय कितना अच्छा है, बिल्कुल बाप पर गया है, अरे नहीं रे रचना पर गया है)
        बस दूर से ही देखो।
सास -    आहा बहुत सुंदर है मेरा पोता...लाओ शहद लाओ...मैं इसे शहद चटा दूं।
कुंती -    आपको इसे पानी भी नहीं देना है, शहद की बात करती हैं।
सास -    हर बात में मत टोका कीजिये आप।
कमला -    नहीं मांजी कुंती दाई ठीक कह रही है। अभी इसे कुछ नहीं देना है।
सास -    तो इसे देंगे क्या, इसका गला नहीं सूख रहा होगा।
निशा -    इसे अभी सिर्फ माँ का दूध देना है और कुछ नहीं।
कुंती -    माँ का पहला दूध बच्चे के लिये अमृत के समान होता है। चलो रचना थोड़ा इधर घूम जाओ             और आप लोग थोड़ी देर के लिये बाहर जाइये। रचना मातृत्व का पहला पाठ सीखेगी।
सास -    ये कुंती का बोलना मुझे ठीक नहीं लगता।
कमला -    अरे उसके बोलने का ढंग भर ऐसा है, बाकी वो बहुत अच्छी और अनुभवी है। ये सब वो             इसलिये कर रही है जिससे आपका पोता और बहू स्वस्थ रहें।
सास -    मुझे तो खैर .....अब छोड़ो... ऐ..दीनू मैंने रचना के लिये कासा पानी और बिस्कुट रखे हैं..थोड़ी देर बाद दे देना।
कमला -    कासा पानी और बिस्कुट...ये क्यों।
सास -    अरे प्रसव के बाद ऐसे ही हल्का फुल्का देना चाहिये।
कमला -    नहीं गौरी काकी.....उसे तो बल्कि आप पूरा खाना दीजिये, वो भी पौष्टिक खाना।
सास - - क्यो वो भारी नहीं होगा।
कमला -    नहीं गौरी काकी, वो तो बहुत जरूरी है।
सास -    क्यों?
कमला -    उसे अब अपने बच्चे को दूध भी पिलाना है और प्रसव के बाद शरीर कमजोर भी तो होजाता है। उसे 2-3 रोटी, दलिया, दाल वगैरह पौष्टिक चीजें दो और मैं तो कहती हूँ आप ज्यादा ध्यान इसी बात पर दीजियेगा। देखती रहियेगा कि रचना ये सब खा रही हे कि नहीं। अगर न खाये तो...
सास -    एक डाँट लगाऊँगी तो उसका पति भी खायेगा। वो मैं सब देख लूंगी। तू तो बस मेरी गोदी में मेरा पोता दिलवा दे-थोड़ी देर के लिये ही सही।
कुंती -    लीजिये अपना पोता, बस थोड़ी देर के लिये ही दे रही हूँ...और आपको बहुत बहुत बधाई  दादी बनने की।
सास -    आप मुझे बधाई दे रही हैं...
कुंती -    क्यों मैं क्या आपको बधाई नहीं दे सकती।
सास -    नहीं नहीं वो बात नहीं है। मुझे दरअसल आप थोड़ी....
कुंती -    कठोर, क्रूर, बददिमाग लगी थी...हैना...
सास -    हाँ बिल्कुल...वैसे सही बताऊँ मैं तो तुम्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं कर रही थी।
कुंती -    अब
सास -    आओ गले मिलो ....और....बहुत बहुत धन्यवाद

Monday, November 22, 2010

छत्‍तीसगढी लोकधुन 1948 की किशोर साहू की फिल्‍म में

पिछले कुछ दिनों से सीजी गीत संगी ब्लॉग में छत्तीसगढ़ की पुरानी फिल्म ‘घर द्वार’ के गीत व फिल्म संबंधी जानकारी दी जा रही है! साथ ही राहुल सिंह जी ने अपने ब्लॉग सिंहावलोकन के एक अंक में छत्तीसगढ़ी फिल्मों की जानकारी उपलब्ध कराई है जिसमें उन्होंने ये भी कहा '' फिल्मिस्‍तान की 'नदिया के पार' के आरंभिक दृश्‍यों में मल्‍लाहों के, किशोर साहू लिखित संवाद में छत्‍तीसगढ़ी पुट है।'' आज के मेरे इस ब्लॉग में सुनिये इस फिल्‍म का वो नगमा जिसमें छत्तीसगढ़ी धुन की झलक सुनाई देती है। साथ ही जानकारी किशोर साहू के संदर्भ में।

'नदिया के पार' फिल्म बनाने वाले किशोर साहू को हम हिन्दी फिल्मों में पहुँचे पहले छत्तीसगढ़ से जुड़े व्यक्तित्व के रूप में भी जानते हैं। अभिनेता, लेखक, निर्देशक एवं प्रोड्यूसर किषोर साहू का जन्म दुर्ग में 22 नवंबर 1915 को हुआ था। ये रायगढ़ के चीफ मिनिस्टर के सुपुत्र थे ऐसी जानकारियां भी उपलब्ध हैं। कुछ स्‍थानों पर इनके जन्‍म का स्‍थान रायगढ लिखा हुआ प्राप्‍त हो रहा है। इन्होंने 1937 में नागपुर वि.वि. से अंग्रेजी साहित्य में डिग्री प्राप्त की थी। अनेक लघु कहानियां रचने के बाद इन्होंने अभिनेता के रूप में बॉम्बे टॉकीज़ की फिल्म ‘जीवन प्रभात’ में देविका रानी के साथ 1937 से अपनी पारी शुरू की थी। हिन्दी फिल्म उद्योग के शुरूवाती दौर के लेखक, सामान्य बजट की सामाजिक फिल्मों के निर्देशक जिनमें प्रायः उनकी स्वयं की स्क्रिप्ट भी होती थी। 1954 में उन्होंने क्लासिक यूरोपियन स्रोत से जुड़ी फिल्म हैमलेट फिल्म का निर्माण किया था। फिल्मों में प्रोडक्शन का कार्य उन्होंने 1940 से आरंभ किया था। 40 के दशक के अंत में वे फिल्मिस्तान से जुड़े। 1944 में फिल्म ‘इंसान’ और 1977 में ‘अनुपमा’ फिल्में उनकी ही कलम की देन रही हैं।1967 में फिल्म ‘औरत’और 1968 में फिल्म ‘तीन बहूरानियां’ के संवाद किशोर साहू ने लिखे थे। खलनायक चरित्र के रूप में देवानंद की अनेक फिल्मों में दिखाई भी दिये है जिनमें 1958 में आई फिल्म ‘कालापानी’, 1965 की फिल्म ‘गाइड’, 1971 की फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ आदि शामिल हैं। 22 अगस्त 1980 को 64 वर्ष की आयु में इनका देहांत बैंकाक, थाईलैंड में हुआ। 1937 से 1980 के बीच किशोर साहू हिन्दी फिल्मों लगातार सक्रिय रहे। इस दौरान 22 फिल्मों में वे नज़र आए। 

अभिनेता के रूप में किशोर साहू की फिल्में -
वकील बाबू -1982,  हरे राम हरे कृष्णा -1971,
जुआरी -1971, पुष्‍पांजलि -1970,  गाइड -1965,  पूनम की रात -1965,
काला बाज़ार -1960, लव इन शिमला-1960,  कालापानी -1958,
हैमलेट -1954 मयूरपंख -1954, हमारी दुनिया -1952,
सपना -1952, जलाजला -1952,  बुझदिल-1951, काली घटा -1951
नमूना -1949, सावन आया रे -1949, सिंदूर -1947,  इंसान -1944,
राजा -1943,  जीवन प्रभात -1937

निर्देशक के रूप में किशोर साहू-
धुंए की लकीरें -1974, पुष्‍पांजलि -1970, हरे काँच की चूडियां -1967,
पूनम की रात -1965,  घर बसाके देखो - 1963, ग़हस्‍थी -1963,
दिल अपना और प्रीत पराई-1960,  बड़े सरकार -1957, 
क़िस्मत का खेल -1956, हैमलेट -1954, मयूरपंख -1954,
हमारी दुनिया - 1952, काली घटा -1951, सावन आया रे - 1949,
सावनभादो -1949,  नादिया के पार - 1948,  साजन -1947, सिंदूर -1947, 
वीर कुणाल -1945, शरारत -1944,  राजा -1943,  कुंवारा बाप -1942

लेखक के रूप में किशोर साहू.
तीन बहूरानियां-1968, लेखक
औरत -1967द्, संवाद
हरे काँच की चूडियां -1967, संवाद, पटकथा, कहानी
दिल अपनाऔरप्रीत पराई -1960, लेखक
मयूरपंख -1954, पटकथा

निर्माता के रूप में किशोर साहू-
हरे काँच की चूडियां,  मयूरपंख और पुष्‍पांजलि
और अब बात करते हैं 1948 की फिल्‍म नदियो के पार की जिसमें दिलीप कुमार ओर कामिनी कौशल ने अभिनय किया था गीत श्री मोती के थे और संगीतकार थे सी;रामचंद्र। इस फिल्‍म के मल्‍हारों वाले इस गीत में छत्‍तीसगढी का कुछ पुट है ऐसा माना जाता रहा है।



Sunday, November 14, 2010

बालदिवस पर कुछ बातें और गीत

बालदिवस पर कुछ बातें कुछ गीत

बाल दिवस यानि बच्‍चों का दिन, बच्‍चों की आजादी का दिन...लेकिन अपने देश के करोडों बच्‍चों में से कितने बच्‍चे सचमुच बालदिवस उस रूप में मना पाते हैं जिसकी कल्‍पा इस दिन के जनक चाचा नेहरू ने की थी.....

बालदिवस पर आधारित एक पॉडकास्‍ट बच्‍चों के लिये भी और उनके अभिभावकों के लिये भी जिसमें शामिल हैं कुछ बातें और कुछ हिन्‍दी फिल्‍मों के गीत

पॉडकास्टं में शामिल गीत -
सुन सुन सुन मेरे नन्हें सुन
बच्चे मन के सच्चे – दो कलियां
आओ बच्चो‍ तुम्हें दिखाएं – जाग़ति
हम बच्चे‍ हिन्दुंस्तान के – शीर्षक गीत
नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी - बूट पॉलिश
हम भी अगर बच्चे होते - धूल का फूल
मैंने कहा फूलों से – मिली
आओ तुम्हें चांद – जख्मी
ओ नन्हे से फरिश्ते – आखिरी खत
नन्हा मुन्ना राही हूं - सन ऑफ इंडिया



पॉडकास्ट‍ में शामिल कुछ बातें -
पं0 नेहरू से मिलने एक व्यक्ति आये। बातचीत के दौरान उन्होंने पूछा- ''पंडित जी आप 70 साल के हो गये हैं लेकिन फिर भी हमेशा गुलाब की तरह तरोताजा दिखते हैं। जबकि मैं उम्र में आपसे छोटा होते हुए भी बूढ़ा दिखता हूँ।'' इस पर हँसते हुए नेहरू जी ने कहा- ''इसके पीछे तीन कारण हैं।'' उस व्यक्ति ने आश्चर्य-मिश्रित उत्सुकता से पूछा, वह क्या? नेहरू जी बोले- ''पहला कारण तो यह है कि मैं बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ। उनके साथ खेलने की कोशिश करता हूँ, जिससे मुझे लगता है कि मैं भी उनके जैसा हूँ। दूसरा कि मैं प्रकृति प्रेमी हूँ और पेड़-पौधों, पक्षी, पहाड़, नदी, झरना, चाँद, सितारे सभी से मेरा एक अटूट रिश्ता है। मैं इनके साथ जीता हूँ और ये मुझे तरोताजा रखते हैं।''

यह दिन हमें सिखाता है कि हम न सिर्फ बच्चों के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव दिखाए बल्कि उनके कल्याण के लिए भी हरसंभव प्रयत्न करें। यानी बच्चों के सपनों को पूरा करने में मदद करना भी हमारी ही जिम्मेदारी है।

1954 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से बच्चों के बीच समझ को बढ़ावा देने के लिए एक दिन अपनाने की सिफारिश की गई। इसी के तहत हर साल 20 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस मनाया जाता है। यह दिन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और बच्चों के बीच समझ को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन को संयुक्त राष्ट्र के बच्चों के चार्टर के उद्देश्यों और आदर्शो के उत्साहवर्धन को समर्पित गतिविधियों के रूप में भी मनाया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा किए गए सामाजिक कार्य का हिस्सा है। 20 नवंबर 1959 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा बाल अधिकारों की घोषणा को अपनाया गया। 20 नवंबर 1989 को कन्वेन्षन ऑन द राइट्स ऑफ द चाईल्ड (सीआरसी) अर्थात बाल अधिकारों के सम्मेलन में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए गए। इसी समय से 193 देशो के द्वारा इस घोषणा पत्र की पुष्टि की गई।

बाल भवन एक ऐसा संस्थान है, जिसका उदद्देश्‍य बच्चों को उनकी आयु, अभिवृत्तियों तथा क्षमताओं के अनुरूप उन्हें परस्पर मेलजोल बढ़ाने, प्रयोग करने, सृजन तथा प्रस्तुतीकरण के लिए विभिन्न गतिविधियां, अवसर व समान मंच प्रदान करना है। यह बच्चों के लिए तनाव रहित, बाधामुक्त व नवीकरण की संभावनाओं से युक्त वातावरण उपलब्ध कराता है। छत्तीसगढ में यह सुविधा बच्‍चों को उपलब्ध नहीं है।

हर वर्ष राष्ट्रपति भवन में देश भर से आए चुनिंदा बच्चों से भारत के राष्ट्रपति करते हैं। बाल दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति बच्चों का मनोबल बढ़ाते हैं और उन्हें उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए प्रेरित करते हैं। बच्चे भी इस मौके पर देश के प्रति अपने विश्वास और भविष्य में चुनौतियों का सामना करने की भावना को व्यक्त करते हैं। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील का मानना है कि देश के विकास में बच्चों की शिक्षा तथा अनुशासन का अमूल्य योगदान होता है। उन्होंने देश के शिक्षकों एवं छात्रों की प्रशंसा करते हुए कहा था कि इनकी कड़ी मेहनत तथा संस्कृति ने दुनियाभर में देश का नाम रोशन किया है। देश के 11वें राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम भी देश के विकास के लिए बच्चों का विकास आवश्यक मानते हैं। उन्होंने पद पर रहते हुए तथा बाद में भी कई मौकों पर यह संदेश दिया है कि देश का विकास बच्चों के हाथों में ही है। उन्होंने कहा था कि आज के साथ समझौता करने पर ही हम देश के बच्चों के लिए बेहतर कल दे सकेंगे।

हमने अपने बच्चों को खेलते हुए देखना लगभग भुला दिया है। हम सब कुछ देखते हैं, बच्चों का खेल नहीं। आखिर ऐसा क्या है, इसे खेलने में जो हमें देखना चाहिए? बच्चे अपनी इस दुनिया को पूरी तरह भुलाकर खेलते हैं। अपनी एक अलग ही सुंदर दुनिया की रचना कर लेते हैं। वे जब खेलते हैं, उन्हें अपनी भूख-प्यास की कतई चिंता नहीं रहती। वे अपनी आड़ी-तिरछी लाइनों को बनाएँगे तो इतना मगन होकर कि वह उनके आनंद में बदल जाती है। उनमें कोई आकांक्षा नहीं, महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि बनाने का आनंद है। क्या हम मगन रहते हुए यह आनंद हासिल कर पा रहे हैं?

आज भी चाचा नेहरू के इस देश में लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं। जो चाय की दुकानों पर नौकरों के रूप में, फैक्ट्रियों में मजदूरों के रूप में या फिर सड़कों पर भटकते भिखारी के रूप में नजर आ ही जाते हैं। इनमें से कुछेक ही बच्चे ऐसे हैं, जिनका उदाहरण देकर हमारी सरकार सीना ठोककर देश की प्रगति के दावे को सच होता बताती है। यही नहीं आज देश के लगभग 53.22 प्रतिशत बच्चे शोषण का शिकार है। इनमें से अधिकांश बच्चे अपने रिश्तेदारों या मित्रों के यौन शोषण का शिकार है। अपने अधिकारों के प्रति अनभिज्ञता व अज्ञानता के कारण ये बच्चे शोषण का शिकार होकर जाने-अनजाने कई अपराधों में लिप्त होकर अपने भविष्य को अंधकारमय कर रहे हैं।

सुविधासंपन्न बच्चे तो सब कुछ कर सकते हैं परंतु यदि सरकार देश के उन नौनिहालों के बारे में सोचे, जो गंदे नालों के किनारे कचरे के ढ़ेर में पड़े हैं या फुटपाथ की धूल में सने हैं। उन्हें न तो शिक्षा मिलती है और न ही आवास। सर्व शिक्षा के दावे पर दम भरने वाले भी इन्हें शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ नहीं पाते। पैसा कमाना इन बच्चों का शौक नहीं बल्कि मजबूरी है। अशिक्षा के अभाव में अपने अधिकारों से अनभिज्ञ ये बच्चे एक बंधुआ मजदूर की तरह अपने जीवन को काम में खपा देते हैं और इस तरह देश के नौनिहाल शिक्षा, अधिकार, जागरुकता व सुविधाओं के अभाव में अपने अशिक्षा व अनभिज्ञता के नाम पर अपने सपनों की बलि चढ़ा देता है।

यदि हमें 'बाल दिवस' मनाना है तो सबसे पहले हमें गरीबी व अशिक्षा के गर्त में फँसे बच्चों के जीवनस्तर को ऊँचा उठाना होगा तथा उनके अँधियारे जीवन में शिक्षा का प्रकाश फैलाना होगा। यदि हम सभी केवल एक गरीब व अशिक्षित बच्चे की शिक्षा का बीड़ा उठाएँगे तो निसंदेह ही भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा तथा हम सही मायने में 'बाल दिवस' मनाने का हक पाएँगे।

Tuesday, November 9, 2010

रेडियो धारावाहिक रचना - 4

रचना - चतुर्थ एपिसोड

गर्भावस्था (द्वितीय चरण)

हमारे इस धारावाहिक के पिछले एपिसोड में आपने सुना कि रचना मां बनने वाली है और शुरू के 6 महीनों में क्‍या सावधानी रखनी चाहिये ये भी हमने आपको जानकारी दी थी। अब रचना को सातवां महीना लग गया है आगे क्‍या हो रहा है आइये सुनते हैं।




रचना - आह...आह...
पति - क्या हुआ...रचना क्या हुआ.... कोई तकलीफ तो नहीं। शायद बच्चा हिल रहा था।
पति़ - हिल रहा था कि हिल रही थी।
रचना - क्या पता मुझे क्या मालूम।
पति - रचना तुम देखना लड़की होगी ।
रचना - पर माँ जी तो लड़का चाहती हैं ।
पति - लेकिन होगी लड़की ही तुम देखना और उसका नाम हम ज्योति रखेंगे।
रचना - और अगर लड़का हुआ तो?
पति - दीपक दीपक रखंेगे उसका नाम। वैसे रचना लड़का हो या लड़की हम उसे
खूब पढायेंगे लिखायेंगे ताकि वो अपना भविष्य संवार सके।
रचना - सच में मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो आपके समान सुलझा हुआ पति मिला ।
पति - ये सब बातें छोडो रचना तुम ये बताओ रामेश्वर आया था क्या ।
रचना - रामू भैया तो नहीं आए पर खबर भिजवाई थी कि शहर से आ गए हैं। क्या काम उनसे।
पति - अरे उसे ट्रेक्टर ट्राली की व्यवस्था के लिये कहा था ।
रचना - लेकिन डिलीवरी तो घर में दाई करेगी, तो गाड़ी का क्या काम।
पति - अरे मान लो कोई दिक्कत आ जाये। भगवान न करे कोई परेशानी खड़ी हो जाये तो
तुरंत स्वास्थ्य केन्द्र या अस्पताल जाने के लिये वाहन तो लगेगा ना कि बैलगाड़ी से जाओगी।
रचना - लेकिन अभी तक तो कोई परेशानी नहीं है।
पति - परेशानी या मुसीबत तुम्हें बोलकर या दरवाजा खटखटाकर तो आयेगी नहीं। रामेश्वर को
मैंने कहा था कि अपनी गाड़ी तैयार रखना। क्या पता कब जरूरत पड़ जाये। मैं अभी आता हूँ।
रचना - जल्दी आना।
पति - बस यूं गया और यूं आया।


सुलेखा - गौरी काकी ये कमरा नहीं चलेगा।
सास - क्यों इसमें क्या बुराई है। थोड़ा छोटा जरूर है पर साफ-सुथरा तो है।
सुलेखा - वो तो ठीक है काकी, पर इसमें रोशनी कम है और कमरा अच्छा हवादार होना चाहिये।
सास - ऐसा-तो...तो फिर मेरा कमरा तैयार कर लेते हैं, उसमें दो खिड़कियाँ भी हैं।
सुलेखा - आपके कमरे में दो खिड़कियाँ हैं।
सास - हाँ - वो एक खिड़की आंगन में खुलती है - देखना पड़ता है ना, बहू कितना काम
कर रही है वैसे वो काम ठीक ठाक करती है।
सुलेखा - और दूसरी खिड़की।
सास - वो बाड़ी में ताजा हवा भी मिलती है और शैतान बच्चे नींबू, करौंदा, बेल वगैरह
तोड़ नहीं पाते।
सुलेखा - तभी आप इतनी तंदरुस्त हैं ताजा हवा जो आपको मिलती रहती है। लेकिन रचना के
प्रसव के लिये आपको उसे खाली करना होगा। उस समय बढ़िया धुलवाकर अच्छी तरह साफ भी
करवा दीजियेगा।
सास - लगता है कोई आया है।
सुलेखा - कमला दीदी दाई के साथ आई होंगी तैयारी देखने, उन्होंने ही मुझे भी यहाँ भेजा था।
सास - बड़ा ख्याल रखती है कमला। गाँव भर की मदद के लिये हमेशा तैयार रहती है।
कैसे कर लेती है इतना सब।
सुलेखा - आओ कमला दीदी थोड़ी देर कर दी आने में।
दाई - नमस्ते।
कमला - अरे हम तो समय पर आ गये थे। वो रास्ते में दीनू मिल गया था। रामेश्वर घर
में नहीं मिला तो गाँव भर में साइकिल दौड़ाते उसे ढँूढ रहा था। बेवजह घबरा जाता है दीनू।
सुलेखा - घबरायेगा क्यों नहीं आखिर पहली बार बाप बन रहा है।
सास - अभी कौन कल परसों में बाप बन रहा है। अभी तो समय है। लेकिन वो रामेश्वर को
क्यों ढूँढता फिर रहा है।
कमला - गाड़ी की व्यवस्था तो रामेश्वर ही कर रहा है ना गौरी काकी।
सास - बहुत दिनों से गाड़ी-गाड़ी सुन रही हूँ, आखिर उसकी जरूरत क्या है।
सुलेखा - भगवान न करे पर अगर उसे तेज बुखार आ जाये, चक्कर आ जाये, दौरा पड़ जाये,
सिर में तेज दर्द होने लगे, प्रसव पीड़ा 10-12 घंटे से ज्यादा चले या फिर प्रसव के बाद ज्यादा
क्त बहे तो एक स्थितियों में जच्चा को तुरंत इलाज की जरूरत होती है। तुरंत अस्पताल ले जाना
पड़ता है। इसलिये सावधानी के लिये गाड़ी का इंतजाम पहले से कर लेना अच्छा रहता है।
सास - तुम लोग ज्यादा ही पंचायत करते हो। हमारे समय में ऐसा कुछ नहीं था। घर की
बुजुर्ग ही सब संभाल लेती थीं।
कमला - इसीलिये उस समय शिशु मृत्यु दर ज्यादा थी। अप्रशिक्षत हाथ बच्चे की जान को
खतरे में डाल देते थे। आज प्रशिक्षित दाइयाँ हैं, सुविधाएँ हैं, जानकारियाँ हैं तो शिशु पहले के
मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है।
सास - वैसे तुम ठीक कह रही हो। हम छः भाई बहन थे। मैं सबसे छोटी थी। पिताजी बताते
थे तीन तो जनम के समय ही साथ छोड़ गये और मेरे जन्म के 1 माह बाद माँ चल बसीं।
बड़ी मुश्किल से पाला गया था। मुझे....
सुलेखा - इसी को..इसी को....मातृ मत्यु कहते हैं। प्रसव के दिन से 45 दिनों दिनों के
भीतर माँ की मौत हो जाये तो उसे मातृ मृत्यु कहते हैं और ये सिर्फ गंदगी, या ये कह लो
लापरवाही के कारण होता है।
सास - हे भगवान यहाँ ऐसा कुछ ना हो तुम लोग जो बोलोगे वैसा ही होगा।
कमला - अरे काकी ऐसे से घबराने की जरूरत नहीं। ये अपनी दाई है ना - प्रशिक्षित भी है
और अनुभवी भी। ये सब संभाल लेगी, क्यों कुन्ती।
कुन्ती - बिल्कुल और मैं तो बिल्कुल तैयार हूँ - बस मुझे जगह याने कमरा दिखाओ,
प्रसव का सारा समान दिखाओ और बाद में फिर रचना बहू से मिलवा देना।
सुलेखा - गौरी काकी आप दाई जी को कमरा सामान माने तैयारी दिखाओ मैं और कमला
रचना के पास जा रहे है-और मिल भी लेगें
सास - ठीक है आप आइये - - तो ले ये है कमरा जहॉं आप प्रसव करायेगी
दाई - वाह कमरा तो बढ़िया है -रोशनी अच्छी है -हवादार है -
सास - मेरा कमरा है ये
दाई - बस यहॉं से ये पेटी;ये बक्सा ये सब हटवा दीजिएगा और साफ करवा दीजिएगा;
बाकी कमरा बढ़िया है ठीक है
सास - मेरा कमरा है ये - दो दो खिड़कियाँ है ।
दाई - और बाकी क्या व्यवस्था कर रखी है आपने ।
सास - हाँ-वो -वो - ये नया बढ़िया साबुन है - बहुत मंहगा है 14 रूपये का- और
नया धागा- ये सफेद ही लिया दीनू ने मैने तो - कोई रंगीन धागा....
दाई - दीनू ने अच्छा किया-और ब्लेड
सास - ये रहा- मैने तो पूरा पैकेट ही मंगवा लिया थोडा खर्चा हो जाय पर तैयारी में
कमी नहीं होनी चाहिए - थोडे़ पैसे जरूर ज्यादा -
दाई - कपड़ा दिखाईये
सास - वो तो मैनें अपनी साड़ी फाड़ दी थी - और ये देखो दीनू की टेरीकाट की शर्ट
खराब नहीं और ज्यादा पुरानी भी नहीं है - पर ऐसे में ये सब नहीं देखा जाता - मैंने तो कहा --
दाई - कपडे़ नहीं चलेंगे - इन्हें बदलिये -
सास - क्यों ये टेरीकाट का कपडा है और ये सिन्थेटिक साडी - इसमें क्या बुराई है -
अच्छे खासे तो हैं।
दाई - नहीं सूती कपड़े ही चलेंगे - सूती कपड़े - सिर्फ सूती कपड़े समझीं
सास - हाँ- समझ गई...पर
दाई - और कपड़े बिल्कुल साफ धुले हुए होने चाहिये।
सास - अच्छा - ठीक है
दाई - और अब मुझे रचना से मिलना है।
सास - हाँ-हाँ तो चलिये।
दाई - कैसी हो रचना बिटिया - सब ठीक है।
रचना - हाँ दाई जी...सब ठीक है, अभी तक तो कोई परेशानी नहीं है।
दाई - बढ़िया
सुलेखा - इसका ब्लडप्रेशर भी बिल्कुल नार्मल है -पिछले माह कुछ बढ़ा हुआ था पर अभी
तो लगातार नार्मल आ रहा है।
दाई - अच्छी बात है...रचना बीच में कभी तुम्हें बुखार वगैरह - सर दर्द या चक्कर
जैसा तो नहीं आया।
रचना - नहीं दाई जी
दाई - और वो - मैंने तुम्हे पहले भी कहा था वो वहाँ से बदबूदार पानी वगैरह की
शिकायत तो नहीं हुई।
रचना - नहीं।
दाई - बहुत बढ़िया - वैसे भी तुम काफी स्वस्थ दिख रही हो - खाने वाने मे कोई
कोताही नहीं की तुमने ठीक से पौष्टिक खाना खाया है।
रचना - जी वो
सास - क्या जी - वो तो मुझे जब कमला ने बोला था कि एक अतिरिक्त पौष्टिक खुराक
भी देनी है वो दिन है और आज का दिन है रोज इसे डाँट-डपट के खिलाती हूँ।
दाई - आपने बहुत अच्छा किया - यही एक काम अच्छा किया । अच्छा रचना तुम्हारे
प्रसव के लिए मै तो खैर तैयार थी पर तुमसे मिलकर ऐसा लगा कि तुम भी पूरी तरह
तैयार हो बहुत अच्छा लगा -
सुलेखा - दाई जी आप संतुष्ट है माने सब ठीक है ।
कमला - मतलब 2-3 माह मे गौरी काकी को दादी दादी बोलने वाला या वाली....
दाई - तीन नहीं - मेरा अनुभव कहता है कि तीन माह से पहले ही ये काकी दादी बन जायेंगी।

लेखक
- डॉ रोजश टंडन

प्रतिभागी - नम्रता बाजपेयी, संध्‍या, श्‍वेता पांडे, ऐश्‍वर्य लक्ष्‍मी बाजपेयी, पदमामणि
प्रस्‍तुति - संज्ञा टंडन

Friday, November 5, 2010

पंचपर्व महोत्सव - दीपावली

भारत देश और ज्योति उत्सव दीपावली की बातें तो सभी जानते हैं, इस पंचपर्व महोत्सव का इंतजार हर वर्ग, हर उम्र के भारतीय को वर्ष भर रहता है। किसी को पटाखों के कारण तो किसी को धनतेरस में मनपसंद खरीददारी करने के लिये, कोई रंगोली तो कोई पकवान, कोई पूजा तो कोई भाई दूज की तैयारी और लक्ष्मी जी के घर आगमन के इंतजार में ढेरों तैयारियों में जुटा रहता है। कुल मिलाकर हर भारतीय को और विदेशों में बसे हिन्दुस्तानियों को हमारी शुभकामनाएं। एक अलग अंदाज में इस ब्लॉग/पॉडकास्ट में सुनिये मीनू सिंह की आवाज में दीपावली से जुड़ी ढेर सारी जानी अनजानी बातें गीतों के साथ। प्रस्तुति संज्ञा टंडन की है।



ब्लॉग में शामिल कथ्य व तथ्य -
धनतेरत से जुड़ी बातें
नरक चतुर्दशी से संबंधित बातें व कथाएं
दीपावली- अर्थ व कथाऐ
विभिन्न प्रदेशों व धर्मों में दीवाली
दुनिया में दूसरे देशों की दीपावली
गोवर्धन पूजा
भाई दूज

पॉडकास्ट में शामिल गीत -
जब दीप जले आना - चितचोर
दीप दीवाली के झूठे - जुगनू
पल पल है भारी - स्वदेस
सवा लाख की लाटरी - चोरी चोरी
जो है अलबेला - किसना
रंगोली सजाओ - रंगोली
भय भेजना - बसंत बहार
चिराग दिल का जलाओ - चिराग
फूलों का तारों का - हरे रामा हरे कृष्णा
हैप्पी दीवाली -

आलेख व स्वर - मीनू सिंह
प्रस्तुति व एडिटिंग - संज्ञा टंडन