6 दिसंबर २०१५
इस बार जब हम वृद्धाश्रम पहुंचे तो बहुत सारी तैयारियों के साथ पहुँचे। हमने तैयार किये थे ढेर सारे एक मिनट वाले खेल। पहुंचते ही बाहर आंगन में हमने जमाई बैठक, लगाई बीच में एक टेबल और शुरू कर दिया खेलों का सिलसिला। हमने बनाये छोटे छोटे बाबा-दादियों केे ग्रुप और फिर खिलाये उनको खेल।
पहला खेल था बोतल में धागे से लटकी चूड़ी पहनाने का खेल, फिर चावल में से मटर अलग करना, स्ट्राॅ से थर्मोकोल बाॅल्स उठाना, फूले हुए गुब्बारों पर नुकीले पेन से नंबर लिखवाना, एक तीली से मोमबत्ती जलाना, टंगट्विस्टर बुलवाना, फोटो में बिंदी लगवाना, सुई में धागा डलवाना, पानी से भरी हुई बाल्टी में रखी हुई कटोरी में सिक्के डालना आदि।
जैसे जैसे शाम गुजर रही थी, हमारे बाबा दादियों की हंसी, ठहाके और उत्साह भी बढ़ रहा था। कुछ हमसे लड़ रहे थे कि एक मिनट अभी पुरा नहीं हुआ है, तो कुछ गिफ्ट में मिलने वाली चाॅकलेट की जिद कर रहे थे। बुढ़ापे में बचपने की सिर्फ बातें सुनी थीं, उस दिन हमने देख भी लीं।