आँखें......इंसान के लिए बेशकीमती खुदा की एक ऐसी नेमत है जिसके बिना जिंदगी के सभी रंग फीके हैं। प्रकृति की सारी सुंदरती अपने आप में समेट कर रखने वाली ये आँखें सिर्फ देखने का ही काम नहीं करती हैं,भावनाओं से भरी हृदय की सारी उमंगों को प्रतिबिंबित करती ये आँखें कभी हँसती हैं, कभी रोती हैं, कभी स्नेह बरसाती हैं, और कभी नफ़रत से भर जाती हैं। सचमुच आँखें ईश्वर का दिया हुआ बेहद अमूल्य उपहार हैं,और वरदान भी। ख़ुदा की अजब कुदरत हैं हमारी आँखें जिन पर हमेशा से ही शायर शायरी करते आए हैं और कवि कविताओं की रचना। कवि बिहारी के सतसैंयाँ के इस दोहे में आँखें की गुणवत्ता का ज्ञान सहज ही मिल जाएगा -
अमिय हलाहल मद भरे, श्वेत-श्याम रतनार।
जियत मरत झुकी-झुकी परत ज्यों ही चितवत इकबार।।
ईश्वर ने संसार में हर इंसान को, हर जानवर को, हर पशु-पक्षी, को या यूँ कहें कि इस संसार के हर जीव को निश्िचत आकृति प्रदान की है, उसी प्रकार आँखें भी एक निश्िचत आकृति की होती हैं,हमारी आँखें की रचना एक गेंद की तरह होती है जिसे नेत्रगोलक कहते हैं। हर स्वस्थ व्यक्ति में दो नेत्रगोलक होते हैं,जो कि बाह्य आवरण और आंतरिक आवरण मे विभाजित रहते हैं। बाह्य आवरण की तीन तहें होती हैं-पहली तह लचीली और मज़बूत होती है,इसका आगे का पारदर्शक हिस्सा पारदर्शक पटल कहलाता है और शेष पीछे का भाग जो कि अपारदर्शक और सफेद रंग का होता है उसे श्वेत पटल कहते हैं। तह का काम आँखों को पोषण पहुँचाना होता है। तीसरी तह जो नाड़ी तंतुओं से बनी होती है, उसे दृष्टि पटल या रेटिना कहा जाता हैं। नेत्रगोलक के भीतरी भाग में नेत्रमणि और जेली के जैसा द्रव भरा रहता है। हमारी आँखें की कार्यप्रणाली वास्तव में फोटो खींचने वाले कैमरे की कार्यप्रणाली से काफी मिलती जुलती है।जब भी हम कोई वस्तु देखते हैं तो प्रकाष की समानांतर किरणें पारदर्शक पटल और नेत्रमणि से होकर दृष्टि पटल यानि रेटिना पर केंद्रित होती हैं,इस तरह से वस्तु का प्रतिबिंब बनता है। दृष्टि तंतु के माध्यम से इसकी सूचना मस्तिष्क को दे दी जाती है और उसके बाद ही व्यक्ति को देखने का आभास होता है। ये तो हुई आँखों के देखने की बातें लेकिन क्या आपको मालूम है कि हमारी आँखें बरछियाँ भी चलाती हैं। जी हाँ, किसी शायर की लिखीं बातों से तो यही लगता है-
निगाह की बरछियाँ जो सह सके सीना उसी का है।
हमारा आपका जीना नहीं जीना उसी का है।
मैं जब सो जाऊँ, इन आँखों पर अपने होंठ रख देना,
यकीं आ जाएगा पलकों तले भी दिल धड़कता है।
आँखें और पलकें घनिष्ट रुप से संबंधित हैं,सामान्य रुप से पलक झपकना एक अनैच्छिक क्रिया है,पर इस क्रिया को हम इच्छानुसार भी कर सकते हैं। हम औसतन हर 6सेकण्ड में एक बार पलक झपकतें हैं,इसका अर्थ यह हुआ कि एक व्यक्ति अपने जीवन काल में 25करोड़ बार पलक झपकाता है। क्या आप जाते हैं पलक झपकने की क्रिया क्यों होती है? चलिए हम ही बता देते हैं-पलक झपकने की क्रिया में हमारी पलकें आँखें की मांसपेशियों द्वारा ऊपर-नीचे गिरती पड़तीं रहतीं हैं। ऊपर की पलक के नीचे छोटी-छोटी अश्रु ग्रंथियां होती है जैसे ही हम पलक बंद करते हैं, वैसे ही इन ग्रंथियों से एक नमकीन द्रव निकलता है और यही द्रव हमारी आँखों को गीला रखता है। जब यह द्रव अधिक मात्रा में निकलता है तब आँसुओं का रुप धारण कर लेता है। इस प्रकार पलक झपकने की क्रिया द्वारा हमारी आँखें गीली रहती हैं और सूखती नहीं हैं। 24 घंटों में लगभग 0.75 ग्राम से 0.1 ग्राम तक तरल पदार्थ हमारी आँखों से निकलता है। पलक झपकने से हमारी आँखों की रक्षा भी होती है। जब कोई धूल का कण या जलन पैदा करने वाला पदार्थ आँख में चला जाता है तब पलक झपकाने से निकलने वाला द्रव आँखों की सफाई का काम करता है। पलक झपकने से बहुत तेज़ प्रकाश भी आँखें में प्रवेश नहीं कर पाता क्योंकि तेज रौशनी मे हमारी पलकें स्वयं ही बंद होने लगती हैं।
प्यार की नई दस्तक दिल पे भी सुनाई दे,चांद सी कोई सूरत ख़्वाबों में भी दिखाई दी
किसने मेरी पलकों पर तितलियों के पर रखे, आज अपनी आहट भी देर तक सुनाई दी।
दर्द जब तेरा पास होता है, आँसू पलकों में क्यों मचलते हैं।
जैसे बरखा से भीगे जंगल में काफि़ले जुगनुओं के चलते हैं।
पलकों के साथ-साथ आँसुओं का भी हमारी आँखें से बहूत गहरा और घनिष्ट संबंध होता है। मनुष्य को सुख-दुःख का अनुभव आँसू ही कराते हैं। आँसू भावनाओं का उमड़ता सागर हैं, चाहे सुख हो या दुख मनुष्य को इन दोनों ही अवस्थाओं में आँसुओं का स्वाद चखना ही पड़ता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ये आँसू नमकीन लगते हैं,ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आँसुओं में सोडियम क्लोराइड या नमक पाया जाता है। वास्तव में ये आँसू निकलते हैं हमारी आँख की ऊपरी पलक में पाई जाने वाली लैक्रिमल नामक ग्रंथि से। किसी भावुकता से अथवा आँख में कुछ चले जाने से ये ग्रंथि सक्र्रय हो कर आँसुओं का स्त्राव करती है। नन्हें शिशुओं में चूंकि यह ग्रंथि विकसित नहीं होती है इसलिए उनके रोने पर प्रायः आँसू नहीं निकलते हैं। आँसू हमारे दिल की ज़ुबान होते हैं,आँखों से झलकते आँसू हमारे दर्द को भी प्रकट कर देते हैं। लाख छुपाने की कोशिश की जाए पर आँखें डबडबा ही जाती हैं।
सबने बहलाई मगर आँख डबडबा ही गई एक अनबूझ उदासी सी दिल पे छा ही गई।
कोशिशें की तो बहुत तुझको भुलाने की मगर चांदनी रात में कल तेरी याद आ ही गई।
क्या आप जानते हैं कि आँखों का रंग अलग-अलग क्यों होता है?आँखों का रंग वास्तव में आइरिस के पिछले भाग में उपस्थित रंगीन तंतुओं के कारण दिखाई देता है। अगले भाग में रंगीन तंतुओं की संख्या बहुत कम होती है। इन तंतुओं की कोशिकाओं का रंग माता-पिता से प्राप्त जीन्स के ऊपर निर्भर होता है, यदि माता और पिता दोनों की आँखें नीली हैं तो होने वाले बच्चों की आँखों में नीला रंग पैदा करने वाले जीन्स की प्रधानता होगी, और उनके सभी बच्चों की आँखें नीली होंगी। लेकिन यदि माता-पिता में से एक की आँखें नीली और दूसरे की भूरी हैं तो उनके होने वाले बच्चों की आँखों का रंग इन दोनों का मिश्रण होगा या दोनों रंगों में से जिस भी रंग के जीन्स प्रधान होंगं उस रंग का होगा। ख़ैर,आँखों का रंग जैसा भी हो आँखों में एक गहरा राज़ छिपा होता है। इन सांवली-सलोनी आँखों में कोई गिरा या डूबा तो फिर समझ लीजिए उसका संभलना मुश्िकल हो गया।
तारों की चिलमनों से कोई झाँकता भी हो, इस कायनात में कोई मंजर नया भी हो।
कुछ यूं करिश्मा दिखा दे ऐ खुदा, इन झील सी आँखों में शायद मेरा नाम भी हो।
आँखें शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग होती हैं, इस रंगीन दुनिया की रंगीनियत को आँखों से ही देखा जा सकता है,लेकिन ये तभी संभव है जब हमारी आँखें स्वस्थ हों। आँखों के स्वस्थ और सुंदर होने से ही हमारी जिंदगी में नये रंग भरते हैं। आज का युग वैज्ञानिक युग है,विज्ञान बुद्धि का प्रतीक है,बुद्धि ज्ञान से आती है और ज्ञान पढ़ने लिखने से होता है। आँखें ही हैं जो हमे पढ़ना-लिखना सिखाती हैं इसलिए आँखों की रक्षा करना और उनकी उचित देखभाल करना हमारी जि़म्मेदारी है। कम प्रकाश में कभी भी पढ़ने-लिखने का काम नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे आँखों पर दबाव पड़ता है और वे कमज़ोर हो जाती हैं। पढ़ते समय पुस्तकें आँखों से लगभग 15’’ की दूरी पर और 45 से 60 डिग्री के कोण पर रखनी चाहिए। आँखों पर सबसे ज़्यादा बुरा प्रभाव तनाव का पड़ता है इसलिए जहां तक हो सके तनाव से बचना चाहिये। कम से कम 8-9 घंटे की नींद आँखों के लिए बहुत लाभदायक होती है।
निगाहें बलंद कीजिए इस कदर हुजू़र,
कि क़तरा भी देखें आप तो दरिया हो जाए।
कल रात उसके तसव्वुर का नशा था इतना,
नींद न आई तो आँखों ने बुरा मान लिया।
आँखों से संबंधित तो बहुत सारी बातें है,लेकिन सारी बातों को शामिल करना बहुत मुष्किल है। पर ये तो हम ज़रूर कहना चाहेंगे कि जिनके पास आँखें हैं वे तो प्रकृति के विभिन्न नज़ारों का आनंद ले सकते हैं,लेकिन ज़रा सोचिए उनके बारे में जो नेत्रहीन हैं,जिनके जीवन में अंधेरा और सिर्फ अंधेरा ही है। यहाँ हमारा सबसे बड़ा और पुनीत कर्तव्य यही है कि हम मरणोपरांत अपने नेत्रों का दान करने का संकल्प लें। याद रखिए नेत्रदान किसी की अंधेरी दुनिया में खुशियों की रोशनी ला सकता है।
और अब बस व़क्त का तकाज़ा यही है कि हम आपसे विदा लें इसी आरज़ू के साथ-
कहाँ आँसुओं की सौगात होगी, नए लोग होंगे नई बात होगी।
पलकों को झपकने न दो, आँखों ही आँखों में फिर मुलाकात होगी।
पॉडकास्ट में शामिल गीत
गीत- इन आँखों की मस्ती
गीत- ज़रा नज़रों से कह दो निशाना चूक
गीत- पलकों के पीछे से क्या तुमने.....
गीत- ये आँसू मेरे दिल की
गीत- मैं डूब जाता हूं.
गीत- जीवन से भरी तेरी आँखें
गीत- तेरे नैनों के मैं दी
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