Tuesday, April 21, 2015
Monday, April 20, 2015
कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट (इंटैक) का बिलासपुर अध्याय
Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH)
का बिलासपुर अध्याय
हमारी धरोहर
बिलासपुर स्टेशन पर पुराना इंजन |
बीता हुआ कल यूं तो वापस नहीं आता लेकिन अतीत के पन्नों को हमारी विरासत के तौर पर कहीं पुस्तकों तो कहीं इमारतों के रुप में संजो कर रखा गया है. हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए निशानी के तौर पर तमाम तरह के मकबरे, मस्जिद, मंदिर और अन्य चीजों का सहारा लिया जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें. लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान हुआ. किताबों, इमारतों और अन्य किसी रुप में सहेज कर रखी गई यादों को पहले हमने भी नजरअंदाज कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गई.लेकिन वक्त रहते हमने अपनी भूल को पहचान लिया और अपनी विरासत को संभालने की दिशा में कार्य करना शुरु कर दिया. पुरानी हो चुकी जर्जर इमारतों की मरम्मत की जाने लगी, उजाड़ भवनों और महलों को पर्यटन स्थल बना उनकी चमक को बिखेरा गया, किताबों और स्मृति चिह्नों को संग्रहालय में जगह दी गई. पर विरासत को संभालकर रखना इतना आसान नहीं है. हम एक तरफ तो इन पुराने इमारतों को बचाने की बात करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ हम उन्हीं इमारतों के ऊपर अपने नाम लिखकर उन्हें गंदा भी करते हैं. अपने पूर्वजों की दी हुई अनमोल वस्तु को संजो कर रखने की बजाय उसे खराब कर देते हैं.
चर्च |
विश्व विरासत स्थल ऐसे खास स्थानों (जैसे वन क्षेत्र, पर्वत, झील, मरुस्थल, स्मारक, भवन, या शहर इत्यादि) को कहा जाता है, जो विश्व विरासत स्थल समिति द्वारा चयनित होते हैं और यही समिति इन स्थलों की देखरेख युनेस्को के तत्वावधान में करती है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य विश्व के ऐसे स्थलों को चयनित एवं संरक्षित करना होता है जो विश्व संस्कृति की दृष्टि से मानवता के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ खास परिस्थितियों में ऐसे स्थलों को इस समिति द्वारा आर्थिक सहायता भी दी जाती है। 2006 तक पूरी दुनिया में लगभग 830 स्थलों को विश्व विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है जिसमें 644 सांस्कृतिक, 24 मिले- जुले और 138 अन्य स्थल हैं। प्रत्येक विरासत स्थल उस देश विशेष की संपत्ति होती है, जिस देश में वह स्थल स्थित हो परंतु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का हित भी इसी में होता है कि वे आनेवाली पीढियों के लिए और मानवता के हित के लिए इनका संरक्षण करें. बल्कि पूरे विश्व समुदाय को इसके संरक्षण की जिम्मेवारी होती है।
१०० साल पुराना पुल |
हमारे पूर्वजों और पुराने समय की यादों को संजोकर रखने वाले इन अनमोल वस्तुओं की कीमत को ध्यान में रखकर ही संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनेस्को ने वर्ष 1983 से हर साल 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाने की शुरुआत की थी. इससे पहले हर साल 18 अप्रैल को विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस के रुप में मनाया जाता था. हमारे पूर्वजों की दी हुई विरासत को अनमोल मानते हुए इस दिवस को विश्व विरासत दिवस में बदल दिया.
कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट (इंटैक)
बिलासपुर रेलवे स्टेशन |
1984 में, कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए इंडियन नेशनल ट्रस्ट (इंटैक) एक समाज के रूप में पंजीकृत किया गया था और प्रोत्साहित करना और भारत में विरासत के प्रति जागरूकता और संरक्षण की अगुवाई करने के लिए एक सदस्यता संगठन बनाने के लिए दृष्टि के साथ स्थापित किया गया। आज इंटैक देश भर में 180 से अधिक अध्यायों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी विरासत संगठनों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है। भारतीय सांस्कृतिक निधि (इन्टैक) एक गैर सरकारी व लाभ न कमाने वाली संस्था है। भारत की प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और उन्नयन के लिये समयानुकूल और नीतिगत हस्तक्षेप करना जिसका उद्देश्य है। Intach क्षेत्रीय, सांस्कृतिक एवं नैसर्गिक वैभव के लिये हानिकारक कृत्यों को रोकता है तथा स्थानीय विरासत को सुरक्षित और विकसित करने के लिये सकारात्मक भूमिका निभाता है
इंटैक का बिलासपुर अध्याय
छत्तीसगढ़ भारत के हृदय स्थल का दक्षिण पूर्वी भू-भाग है। इसके अंतर्गत 27 जिले स्थित हैं। मेकल, सिंहावा और रामगिरि की पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। INTACH के बिलासपुर अध्याय का उद्घाटन 17 जून 2006 को INTACH नई दिल्ली के निदेशक मेजर जनरल एल.के.गुप्ता के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ था। ये अध्याय बिलासपुर संभाग की नामांकन प्रक्रिया पूर्ण कर चुका है,यहां के रेल्वे परिक्षेत्र की 100 वर्षीय पुरानी इमारतों की नामांकन प्रक्रिया भी पूर्ण हो चुकी है। कवर्धा व सरगुजा जिलों की लिस्टिंग का कार्य भी बिलासपुर अध्याय द्वारा किया जा रहा है। बिलासपुर नगर की 100 साल या उससे पुरानी धरोहरों और इमारतों को चिन्हित कर एक ब्रोशर का निर्माण करवाया गया था जिसका आॅडियो संस्करण इस धरोहर दिवस पर 18 अ्रप्रेल 2015 को प्रस्तुत किया गया।
Wednesday, April 15, 2015
नेत्रदान-महादान HANDS बिलासपुर
नेत्रदान-महादान
HANDS (Health And Nature Development Welfare Society) आयोजन
22 मार्च 2015
मेरे माता-पिता 2014 की जनवरी और दिसंबर में एक-एक करके मेरा साथ छोड़ गए, लेकिन आज 4 लोग ऐसे हैं जो उनकी आंखों से देख पा रहे हैं ये जहां और शायद उनकी दुआएँ मुझे लगातार मिल रही हैं, मुझे ऊर्जा प्रदान कर रही हैं, मेरे परिजनों के जाने के दुख को जरा सा कम कर पा रही हैं। ऐसा अहसास हर व्यक्ति महसूस कर सके, रौशनी हर अंधेरे में जी रहे व्यक्ति को मिल सके, लोगों में ये अहसास जगाने का काम कर रही है, बिलासपुर की HANDS (Health And Nature Development Welfare Society) संस्था।
अग्रज नाटय दल के कलाकारों ने 3-4 मिनट की छोटी-छोटी प्रस्तुतियां मंच पर पेश की, कुछ ऐसी घटनाएंँ कथाएँ जो नेत्रदान से जुड़ी हुई थीं और लोगों को अंदर तक झकझोर र्गइं। वहाँ उपस्थित लोगों ने नेत्रदान के फार्म भरे और उस अहसास को महसूस किया कि उनके इस दान से कोई और देख पाएगा इस रंगीन दुनियाँ के नजारे।
HANDS (Health And Nature Development Welfare Society) आयोजन
22 मार्च 2015
- नेत्रदान एक राष्ट्रीय आवश्यकता -
- भारत में दृष्टिहीनों की संख्या: 1.25 करोड़
- नेत्ररोपण से दृष्टि पा सकते हैं: 30 लाख
- प्रति वर्ष 80 लाख मृतकों में से सिर्फ 15 हजार नेत्रदान
- नेत्रदान के लिये उम्र एवं धर्म का कोई संबंध नहीं, चश्मेवाले या माेतियाबिंद आॅपरेशन करवा चुके लोग भी सकते हैं नेत्रदान
- नेत्रदान मृत्यु के 3 से 4 घंटे के अंदर होना चाहिये, असाधारण परिस्थितियों में 6 घंटे तक संभव है
- नेत्रदान करने की इच्छा व्यक्त करने का बेहतर तरीका है, अपने घर के करीब के नेत्र बैंक में शपथपत्र भरें
- शपथपत्र भरने पर एक कार्ड आपको दिया जायेगा जिसमें आपका रजिस्ट्रेशन नंबर होगा, इस कार्ड को हमेशा अपने साथ रखें।
'दो चुटकी राख या दो लोगों को आँख', एक अहसास
कि हमारे अपने तो हमारा साथ छोड़कर चले गए,
लेकिन उनके एक दान से या हमारी जागरूकता से
दो जीवित लोग इस दुनिया के रंग देख सकते हैं।
डॉ.रमेश चंद्र महरोत्रा |
श्रीमती उमा महरोत्रा |
मेरे माता-पिता 2014 की जनवरी और दिसंबर में एक-एक करके मेरा साथ छोड़ गए, लेकिन आज 4 लोग ऐसे हैं जो उनकी आंखों से देख पा रहे हैं ये जहां और शायद उनकी दुआएँ मुझे लगातार मिल रही हैं, मुझे ऊर्जा प्रदान कर रही हैं, मेरे परिजनों के जाने के दुख को जरा सा कम कर पा रही हैं। ऐसा अहसास हर व्यक्ति महसूस कर सके, रौशनी हर अंधेरे में जी रहे व्यक्ति को मिल सके, लोगों में ये अहसास जगाने का काम कर रही है, बिलासपुर की HANDS (Health And Nature Development Welfare Society) संस्था।
15-20 युवा एक साल में बिलासपुर में न के बराबर नेत्रदान करने वाले आंकडे़ को इस स्थिति तक ले आए है कि 29 मार्च को उन्होंने 25 ऐसे परिवारों को सम्मानित किया, जिन्होंने पिछले वर्ष नेत्रदान किया है। छ.ग. के स्वास्थ्य मंत्री माननीय अमर अग्रवाल, कमिश्नर श्री सोनमणि बोरा व महापौर किशोर साहू ने इन नेत्रदान परिवारों को सम्मानित किया। इस अवसर पर नेत्रदान पर आधारित एक लघुफिल्म दिखाई गई व पावर पाइंट प्रेजेन्टेशन से दुर्लभ जानकारियाँ प्रदान भी की गईं।
अग्रज के कलाकारों की प्रस्तुति |
HANDS Group, Bilaspur |
HANDS (Health And Nature Development Welfare Society) BILASPUR (C.G.) Abhishek Vidhani 9827900099 Avinash Ahuja 0803194222
Thursday, April 9, 2015
विश्व रंगमंच दिवस 27.03.2015
विश्व रंगमंच दिवस पर हमारी बातचीत
अग्रज नाट्य दल द्वारा विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में इंदिरा विहार, प्रियदर्शनी भवन में एक रंग परिचर्चा का आयोजन किया गया ‘‘विश्व रंगमंच दिवस पर हमारी बातचीत‘‘ शीर्षक से नगर के रंगमंच से जुड़े लोगों ने अलग अलग विषयों पर अपने विचार रखे।
इप्टा, बिलासपुर से जुड़े श्री सचिन शर्मा जो अभिनेता, निर्देशक व रंग शिक्षक के रूप में लगभग 25 वर्षों से बिलासपुर में सक्रिय हैं, इन्होंने नुक्कड़ नाटक परंपरा और इप्टा विषय पर अपने विचार रखे। नुक्कड़ नाटक की शुरूवात कबसे और कैसे हुई। स्वतंत्रता के पहले इस विधा का उपयोग किस रूप में किया गया, किसान, डाॅक्टर, इंजीनियर और हर प्रकार के बड़े बड़े लोग इप्टा से जुड़कर किस तरह कार्य किया करते थे और अलग अलग राज्यों में इप्टा विभिन्न नामों से आज भी किस तरह कार्य कर रही है, ये सारी जानकारियां सचिन शर्मा ने बहुत ही बढि़या तरीके से सबके समक्ष प्रेषित कीं।
लगभग 40-45 सालों से बिलासपुर के हर स्कूल-काॅलज या सांस्कृतिक गतिविधियों में रूपसज्जक (मेकअप मैन) के रूप में हर छोटे बड़े कलाकार को सजाने का काम किया है वरिष्ठ रूपसज्जक, रंगकर्मी व क्राफ्ट आर्टिस्ट श्री उमाकांत खरे ने। श्री उमाकांत खरे ने रूपसज्जक की नजर से रंग बिलासपुर विषय पर जानकारी अपने रोचक स्मरणों के साथ बांटी। उनके वक्तव्य में हास्य के साथ एक दर्द झलक रहा था। उनका कहना था रंगमंच का मंच तो आपने ले लिया और रंग मेरे लिये छोड़ दिया और मैं इतने सालों से रंगरेजी किये जा रहा हूं। मेरी मेहनत से की गई तैयारी और चेहरे पर कलाकारी को कलाकार कई बार 3 मिनट के दृश्य के बाद ओर बेदर्दी से धो देता है। किसी भी कार्यक्रम के शुरू होने के पहले से पहुँचना और सारा हाॅल व कई बार आयोजकों के जाने के बाद रात को निकल पाना, कई बार सवारी भी न मिलना जैसे कष्ट शामिल होते हैं।
संज्ञा टंडन पिछले 33 वर्षों से रंगमंच से जुड़ी हैं। हबीब तनवीर, मिर्जा मसूद, मिन्हाज असद, सुनील चिपड़े आदि के साथ मंच पर व अग्रज के साथ मंच परे भी लगातार जुड़ी रही हैं। रंगकर्म में, छत्तीसगढ़ में और बिलासपुर में महिला कलाकारों की भागेदारी विषय पर उन्होंने अपने विचार रखे। इस संदर्भ में ढेर सारी जानकारियां भी उपलब्ध करवाईं।
कवि, लेखक व समालोचक श्री रामकुमार तिवारी ने नाटकों से काव्य के अंर्तसंबंध के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि नाटक सिर्फ एक विधा नहीं, अनेक विधाओं का सम्मिश्रण है। उसमें काव्य भी है, संगीत भी, नृत्य भी और अभिनय भी।
डाॅ.सुप्रिया भारतीयन आकाशवाणी बिलासपुर में कार्यक्रम अधिशासी के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने वाॅयस कल्चर पर खैरागढ़ से शोध किया है, संगीत साधिका हैं और गायन व संगीत संयोजन भी करती रहती हैं। संवाद प्रक्षेपण में कंठ संस्कार विषय पर बहुत ही खूबसूरती से श्रोताओं, दर्शकों को जानकारियां प्रेषित कीं। आवाज़ कंठ से कैसे निकलती है, इसके लिये कौन कौन् से अंग उत्तरदायी होते हैं। शब्द कैसे बनते हैं, वाक्यों में उतार चढ़ाव कैसे संभव है, नाटक के लिये संवादों की अदायगी को कैसे सुधारा जा सकता है इन सारी बातों को वैज्ञानिक तरीके से भी उन्होंने समझाया और रिहर्सल व रियाज़ के महत्व को भी बताया।
श्री नथमल शर्मा वरिष्ठ पत्रकार, लेखक समालोचक व राजनैतिक समीक्षक के रूप में एक जाना पहचाना नाम है। उन्होंने राजनैतिक बिम्बों के साथ नाटक विषय पर अपने वक्तव्य में नाटकों में राजनैतिक बातों, किस्सों को जोड़ने का इतिहास भी बताया और ज़रूरत भी। राजनैतिक विषयों को विषयवस्तु बनाकर खेले गये नाटकों पर हुए हमलों का जि़क्र करते हुए कहा कि रंगमंच एक प्रभावी मीडिया है लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का।
बिलासपुर नगर के वरिष्ठ कला साधक, गायन, संगीत संयोजन के क्षेत्र से 50 से ज्यादा वर्षांे से जुडे़ श्री मनीष दत्त जो काव्य भारती संस्था के संस्थापक भी है-उन्होंने इस रंग चर्चा की अध्यक्षता की। सारे वक्ताओं की बातों को समेटा और आज के संदर्भों में रंगमंच भी जरूरत के बारे में भी कहा।
बिलासपुर में पिछला 10 वर्षों से बन रहे आॅडिटोरयाम के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव भी दिए। उपस्थित दर्शकों में अग्रज के युवा कलाकार के अलावा सत्यभामा अवस्थी, शिवाजी कुशवाहा, कपूर वासनिक, महेश श्रीवास, रफीक, नवल शर्मा आदि लोग भी रंगकर्म से जुडे़ उपस्थित थे।
अग्रज के कलाकारों द्वारा व इप्टा के रफीक द्वारा रंग परिचर्चा में बीच-बीच में कुछ नाट्यगीत व कुछ जनगीत भी गाए गए।
जिनमें गैलिलियो, जमादारिन, आधी आबादी जैसे नाटकों के गीत शामिल थे। इस परिचर्चा का संचालन सुनील चिपडे ने किया।
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