Thursday, April 9, 2015

विश्व रंगमंच दिवस 27.03.2015

विश्व रंगमंच दिवस पर हमारी बातचीत
अग्रज नाट्य दल द्वारा विश्व रंगमंच दिवस के उपलक्ष्य में  इंदिरा विहार, प्रियदर्शनी भवन में एक रंग परिचर्चा का आयोजन किया गया ‘‘विश्व रंगमंच दिवस पर हमारी बातचीत‘‘ शीर्षक से नगर के रंगमंच से जुड़े लोगों ने अलग अलग विषयों पर अपने विचार रखे।
इप्टा, बिलासपुर से जुड़े श्री सचिन शर्मा जो अभिनेता, निर्देशक व रंग शिक्षक के रूप में लगभग 25 वर्षों से बिलासपुर में सक्रिय हैं, इन्होंने नुक्कड़ नाटक परंपरा और इप्टा विषय पर अपने विचार रखे। नुक्कड़ नाटक की शुरूवात कबसे और कैसे हुई। स्वतंत्रता के पहले इस विधा का उपयोग किस रूप में किया गया, किसान, डाॅक्टर, इंजीनियर और हर प्रकार के बड़े बड़े लोग इप्टा से जुड़कर किस तरह कार्य किया करते थे और अलग अलग राज्यों में इप्टा विभिन्न नामों से आज भी किस तरह कार्य कर रही है, ये सारी जानकारियां सचिन शर्मा ने बहुत ही बढि़या तरीके से सबके समक्ष प्रेषित कीं।


 लगभग 40-45 सालों से बिलासपुर के हर स्कूल-काॅलज या सांस्कृतिक गतिविधियों में रूपसज्जक (मेकअप मैन) के रूप में हर छोटे बड़े कलाकार को सजाने का काम किया है वरिष्ठ रूपसज्जक, रंगकर्मी व क्राफ्ट आर्टिस्ट श्री उमाकांत खरे ने। श्री उमाकांत खरे ने रूपसज्जक की नजर से रंग बिलासपुर विषय पर जानकारी अपने रोचक स्मरणों के साथ बांटी। उनके वक्तव्य में हास्य के साथ एक दर्द झलक रहा था। उनका कहना था रंगमंच का मंच तो आपने ले लिया और रंग मेरे लिये छोड़ दिया और मैं इतने सालों से रंगरेजी किये जा रहा हूं। मेरी मेहनत से की गई तैयारी और चेहरे पर कलाकारी को कलाकार कई बार 3 मिनट के दृश्य के बाद ओर बेदर्दी से धो देता है। किसी भी कार्यक्रम के शुरू होने के पहले से पहुँचना और सारा हाॅल व कई बार आयोजकों के जाने के बाद रात को निकल पाना, कई बार सवारी भी न मिलना जैसे कष्ट शामिल होते हैं।

संज्ञा टंडन पिछले 33 वर्षों से रंगमंच से जुड़ी हैं। हबीब तनवीर, मिर्जा मसूद, मिन्हाज असद, सुनील चिपड़े आदि के साथ मंच पर व अग्रज के साथ मंच परे भी लगातार जुड़ी रही हैं। रंगकर्म में, छत्तीसगढ़ में और बिलासपुर में महिला कलाकारों की भागेदारी विषय पर उन्होंने अपने विचार रखे। इस संदर्भ में ढेर सारी जानकारियां भी उपलब्ध करवाईं।

 कवि, लेखक व समालोचक श्री रामकुमार तिवारी ने नाटकों से काव्य के अंर्तसंबंध के बारे में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि नाटक सिर्फ एक विधा नहीं, अनेक विधाओं का सम्मिश्रण है। उसमें काव्य भी है, संगीत भी, नृत्य भी और अभिनय भी।
डाॅ.सुप्रिया भारतीयन आकाशवाणी बिलासपुर में कार्यक्रम अधिशासी के रूप में कार्यरत हैं। इन्होंने वाॅयस कल्चर पर खैरागढ़ से शोध किया है, संगीत साधिका हैं और गायन व संगीत संयोजन भी करती रहती हैं। संवाद प्रक्षेपण में कंठ संस्कार विषय पर बहुत ही खूबसूरती से श्रोताओं, दर्शकों को जानकारियां प्रेषित कीं। आवाज़ कंठ से कैसे निकलती है, इसके लिये कौन कौन् से अंग उत्तरदायी होते हैं। शब्द कैसे बनते हैं, वाक्यों में उतार चढ़ाव कैसे संभव है, नाटक के लिये संवादों की अदायगी को कैसे सुधारा जा सकता है इन सारी बातों को वैज्ञानिक तरीके से भी उन्होंने समझाया और रिहर्सल व रियाज़ के महत्व को भी बताया।
श्री नथमल शर्मा वरिष्ठ पत्रकार, लेखक समालोचक व राजनैतिक समीक्षक के रूप में एक जाना पहचाना नाम है। उन्होंने राजनैतिक बिम्बों के साथ नाटक विषय पर अपने वक्तव्य में नाटकों में राजनैतिक बातों, किस्सों को जोड़ने का इतिहास भी बताया और ज़रूरत भी। राजनैतिक विषयों को विषयवस्तु बनाकर खेले गये नाटकों पर हुए हमलों का जि़क्र करते हुए कहा कि रंगमंच एक प्रभावी मीडिया है लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का।
 बिलासपुर नगर के वरिष्ठ कला साधक, गायन, संगीत संयोजन के क्षेत्र से 50 से ज्यादा वर्षांे से जुडे़ श्री मनीष दत्त जो काव्य भारती संस्था के संस्थापक भी है-उन्होंने इस रंग चर्चा की अध्यक्षता की। सारे वक्ताओं की बातों को समेटा और आज के संदर्भों में रंगमंच भी जरूरत के बारे में भी कहा।
बिलासपुर में पिछला 10 वर्षों से बन रहे आॅडिटोरयाम के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव भी दिए। उपस्थित दर्शकों में अग्रज के युवा कलाकार के अलावा  सत्यभामा अवस्थी, शिवाजी कुशवाहा, कपूर वासनिक, महेश श्रीवास, रफीक, नवल शर्मा आदि लोग भी रंगकर्म से जुडे़ उपस्थित थे।
अग्रज के कलाकारों द्वारा व इप्टा के रफीक द्वारा रंग परिचर्चा में बीच-बीच में कुछ नाट्यगीत व कुछ जनगीत भी गाए गए।
जिनमें गैलिलियो, जमादारिन, आधी आबादी जैसे नाटकों के गीत शामिल थे। इस परिचर्चा का संचालन सुनील चिपडे ने किया।


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