Thursday, December 31, 2015

दुलारी बहिनी की आकाशवाणी से बिदाई


छत्तीसगढ़ी लोकसंस्कृति के बीच बिलासपुर रेडियो 
के आकस्मिक उद्घोषक व कम्पीयर्स
 
छत्तीसगढ़ के आकाशवाणी केन्द्रों में छत्तीसगढ़ी कार्यक्रमों की अव्वल नंबर की प्रस्तुतकर्ता दुलारी बहिनी यानि पुष्पा यादव 60 साल की हो गईं। एक ऐसी आकस्मिक कंपीयर जिन्होंने 25 साल बिलासपुर में और उससे पहले 5-6 साल रायपुर में छत्तीसगढ़ी कार्यक्रमों की प्रस्तुति में गुजारे।
बिलासपुर आकाशवाणी स्टेशन मई 1991 में शुरू हुआ था, पहली बार जब यहां अगस्त में आॅडिशन्स हुए तो रायपुर के ‘घर आंगन’ कार्यक्रम अनुभवी कंपीयर के रूप में वे यहां से जुड़ी थीं। इस केन्द्र की परंपरा रही है कि जब भी कोई नया अधिकारी यहां आता है, किसी दूसरे केन्द्र या रिटायर होकर जाने वाला होता है तो सारे आकस्म्कि कंपीयर्स व अनाउन्सर्स मिलकर उनका वेलकम करते है, फेयरवेल देते हैं। दरअसल आपस में हम सारे कैजुअल्स एक साथ मिलने का प्रबंध करते हैं, खाते-पीते है....और इतने सारे कलाकारों का जब एक साथ जमघट होता है तो स्वाभाविक है ढेर सारी गतिविधियाँ  भी होती हैं। हम साथ में नया साल मनाते हैं, पिकनिक भी जाते हैं और आकाशवाणी के बाहर भी  कार्यक्रम करते रहते हैं।
1991 से अब तक न जाने कितने आकस्मिक उद्घोषक व महिला सभा, युवा जगत, किसानवाणी के कंपीयर्स आए, कितनों की शादी हो गई, कितनों की नौकरी लग गई और वे आकाशवाणी छोड़ कर चले गए। ये पहला अवसर था कोई कैजुअल कलाकार अपनी पूरी सेवाएं आकाशवाणी को समर्पित करके रिटायर हो रहा था, तो हमें भी लगा कुछ ऐसा होना चाहिये जो पहली बार हो।


प्रथमेश-सविता का नया नया घर बना था। प्रथमेश मिश्रा पेशे से आर्किटेक्ट हैं और उनकी पत्नी सविता भी आकाशवाणी बिलासपुर में महिला सभा की कंपीयर एक लंबे समय तक रह चुकी हैं। आर्किटेक्ट प्रथमेश ने नई टेक्नाॅलाॅजी के साथ, छत्तीसगढ़ी संस्कृति का समावेश अपने घर में बड़ी ही खूबसूरती के साथ किया है। हमारे बीच की उनकी बहन  ऐश्वर्यलक्ष्‍मी ने  उस घर पर लिखी हुई अपनी कविता हमें सुनाई, और बस हमने भी मिलकर तय किया कि इसी अनोखे घर में दुलारी बहिनी की बिदाई पार्टी का आयोजन किया जायेगा। वो कवि‍ता आप भी पढ लीजि‍ये तो उस घर का स्‍वरूप समझ में आ जायेगा.....


भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
न दो मंजला बनवायो, न चौमंजला बनवायो, बनवायो एक मंजला,
दिख रौ दो मंजिला मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
न कालम खड़े किये, न बीम ढलायो,


नींव पे बनवायो मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
न सीमेंट जोड़ायो, न चूना, गारा लगवायो,
मिट्टी से जोड़वायो मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
न टाइल्स लगवायो, न सीमेंट छपायो,
मिट्टी से छपवायों मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
न पेंट करायो, न चूना पोतायो,
गोबर से लिपायो मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
न लेंटर ढलायो, न टीना लगवायो,


पटौहां लगवायो, खपरा छवायो मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।

बहिनें जो अइहैं, खपरा छवइहैं, खपरा छवाई नेग मंगिहें,
भइया देओ हमाओ ब्यवहार, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
भैया कहत हैं, ठंड में कम ठंडा हे, गर्मी में न कूलर चलें न एसी लगे,
बिना पंखों के हवादार है मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
हम कहथ हैं बारिस में टपक को मजा सा इ देहे मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
भैया हमारे प्रथमेश हैं इंजीनियर, उन्होंने बनाया नक्षा, उन्हींने बनवायो इको-फ्रेन्डली मकान,
पूरी कालोनी में अलगई दिखरौ भैया के आलीशान मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।
गांव में दाउजू की बखरी सा दिखरौ, शहर में भैया को शानदार मकान।
मम्मी, पिताजी की इच्छा पूरी कर दी भैया ने बनवाके मकान, भैया ने बनवायो ऐसो मकान।

बिना सीमेंट और छड़ों का दो मंजिला मकान, लकड़ी ईंट, चूना, गेरू का उपयोग, खुला मछलीघर, फव्वारा, दरवाजे पर डोरबेल की जगह गाय की घंटी., किचन दिखने में लकड़ी का, पर पूरा माॅड्यूलर, घर के अंदर भी गोबर की लिपाई, सीढियों पर लोक कलाकृति..... हर चीज इतनी सोच समझकर बनाई गई है यहां कि सचमुच दर्शनीय बन गया है ये घर।

हम करीब 50 कैजुअल्स मकान मालिकों की सहमति और सहयोग 18 दिसंबर को इकट्ठे हुए इस घर में जो शहर से लगे हुए तिफरा में यदुनंदर नगर के पीछे की तरफ स्थित है। कुछ ग्रामीण माहौल इस भवन ने निर्मित कर दिया और कुछ हमने तैयार कर लिया.....आखिर दुलारी बहिनी ग्राम सभा, किसानवाणी, घरआंगन जैसे कार्यक्रमों से जुड़ी कलाकार रही हैं। अनीश के नेतृत्व में  फरा, बरा       झो-झो और हरी चटनी के साथ तैयार मिला जब हम वहां पहुंचे।


पिकनिक से माहौल के बीच हम सब जब साथ मिल कर बैठे, तो यादों का सिलसिला शुरू हुआ। संस्मरणों की फेहरिस्त, दुलारी बहिनी की अद्वितीय कंपीयरिंग की चर्चा, स्टूडियो में मौजूद लोगों को अपनी कंपीयरिंग में जोड़कर गोठ बात करने की चर्चा, अकेले माइक के सामने बैठकर पूरे गांव का माहौल निर्मित करने की क्षमता, एक साथ तीन आवाजों में लाइव कार्यक्रम प्रस्तुत करने की अद्भुत शैली। उनके साथ एक दिन पहले ही नानी बनने की खुशी भी जुड़ी थी जो हम सबके लिये भी इस खास दिन को और खुशमय बनाये हुई थी।





देशभर के किसानवाणी कार्यक्रमों की रिकाॅर्डिंग एक बार दिल्ली मंगवाई गई थी, जिसमें हमारी दुलारी-अंजोरी की जोड़ी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम को अधिकारियों ने सर्वश्रेष्ठ माना था। 

एक बार मुझे एड्स जैसे गंभीर विषय पर छत्तीसगढ़ी में 30-30 मिनट के 15 कार्यक्रम मात्र 20 दिनों में बनाकर देने की चुनौती मिली थी। बिना स्क्रिप्ट देने के वादे के साथ मैंने ये जिम्मेदारी सिर्फ दुलारी बहिनी का साथ होने के कारण स्वीकार ली।
‘नवा अंजोर’ नामक ये श्रृंखला छत्तीसगढ़ के समस्त केन्द्रों से अब तक 4 बार प्रसारित हो चुकी है। ऐसी हैं हमारी दुलारी बहिनी।


आयोजन आगे बढ़ा...दोपहर का खाना...लाई बड़ी, दही मिर्ची, बिजौरी के साथ्ज्ञ जिमीकंद की सब्जी, टमाटर की चटनी, चैसेला, बोबरा.....पूरा छत्तीसगढ़ी भोज तैयार था।

भोजन के बाद एक पुण्य का काम किया सबने....युवा जगत की आकांक्षा एक एनजीओ से जुड़ी है जो गरीब बच्चों की शिक्षा के लिये 75 किलामीटर लंबा बैनर तैयार कर रहे हैं, जिसमें प्रति हाथ की छाप का प्रिंट लेकर वे 20 रु. एकत्र कर रहे हैं, इस काम की शुरूवात उसने इसी दिन से की और आकाशवाणी के कलाकारों ने गरीब बच्चों के लिये भरपूर योगदान दिया।
 

बार बार आंखें भर रही थीं दुलारी बहिनी की, वो फूट पड़ी जब हमने उनको झांपी और स्टूडियों में माइक के साथ खींची तस्वीर पर सारे उपस्थित लोगों के हस्ताक्षर के साथ उन्हें भेंट की और वो सिर्फ इतना बोल पाईं ‘‘25 साल भले ही भूल जाऊँ, आज का दिन न भुला पाऊँगी कभी’’।


छत्तीसगढ़ी कार्यक्रमों को प्रस्तुत करने आये बिलकुल नए कम्पीयर  ने दुलारी बहिनी पर एक कविता तैयार की थी...पढ़िए और जानिए कुछ और हमारी पुष्पा दी के बारे में....
मेरी कलम सबसे पहले उनको देती है बधाई,
जिनकी वजह से, जिनके सम्मान में ये शुभ घड़ी है आई।
पर मैं यहाँ क्यों खड़ा हूँ, मुझे क्या मालूम उनके बारे में, मैं तो नया हूँ।
पर हाँ काफी कुछ है कहने को मेरे पास, क्योंकि कई बार मैं आकाशवाणी तो गया हूँ,
और वहां इनकी उपस्थिति और मौजूदगी के काफी सारे सबूत थे।
हर कोना, हर फूल, पेड़-पौधे जो बताने लगे वे मेरे लिये बहुत थे।
तो वहीं से आप सबके लिये अनुभव के कुछ फूल लाया हूं,
और बातें उनकी लाया हूं जो खुद फूल की पर्यायवाची हैं
अपने कार्यक्रमों में दो-दो भूमिकाएं खूबसूरती से निभाती हैं,
जिन्होंने रायपर के ब्राम्हणपारा से अपनी शुरूवात की,
और जिनकी कर्मभूमि आज बिलासपुर है।
25 वर्षों के अनुभव का सागर जिनके पास भरपूर है,
सरलता जिनकी पहचान है, सादगी जिनकी पहचान
सबको साथ लेकर चलना, इतना नहीं आसान।
जिंदगी के सबसे कठिन वक्त में भी अपने आप को संभाला है,
इनकी दो संतान ही इनके लिये मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और शिवाला हैं
बेटी में इनकी ‘श्रद्धा’ है, ‘आकाश’ को बेटा बनाया है,
1991 से लगातार बने रहकर अपना अलग ही अस्तित्व बनाया है।
संघर्ष इनसे परिभाषित होता है, परिवार को भी सही शिक्षा, संस्कार और आयाम दिया है
तभी तो ईश्वर ने उन्हें नानी बनाया और खूब सारा व्यायाम दिया है।
घर पर आप इन्हें हरदम हिन्दी बोलते ही पाओगे,
पर माइक पर छत्तीसगढ़ी सुनकर आश्चर्य में पड़ जाओगे।
दो किरदारों को साथ लेकर चलती हैं,
मिलें किसी से अगर तो सहज भाव से मिलती हैं।
कहते हैं ‘आवाज़ कभी मरती नहीं’,
हजारों लाखों श्रोताओं के बीच आप हमेशा दुलार पाओगी।
जिंदगी में हर सुख, आनंद और उत्साह लेकर आप आनंद मंगल गीत गाओगी।
आप अपने नाम के अर्थ को हमेशा खुशियों में बिखेरते रहना,
और जरूरत पड़े मुझ जैसे गरीब की आपको तो हमसे प्लीज़ मिलते रहना।
प्रतीष शर्मा
18.12.15