- रागों की जानकारी के साथ फिल्मों के गीतों की झलक शामिल है इस पॉडकास्ट संग्रह में....
- वर्षाकालीन राग, भाग 1
- वर्षाकालीन राग, भाग 2
- हिन्दी फिल्मों में रवीन्द्र गीत संगीत.....भाग...
- हिन्दी फिल्मों में रवीन्द्र गीत संगीत.....भाग...
- रागों की प्रारंभिक जानकारी कुछ गीतों के संग
- शास्त्रीय रागों में समय प्रबंध
- थाट और राग भाग 1
- थाट और राग भाग 2
- राग जैजैवन्ती
- राग जौनपुरी
- raag adharit holi geet
- holi geeton per aadharit podcast PART1
- holi geeton per aadharit podcast PART2
Wednesday, March 18, 2015
राग और गीत
स्वच्छता व प्लास्टिक विरोधी अभियान - लिब्रा वेलफेयर सोसाइटी
संवेदना १५ मार्च
संवेदना कार्यक्रम के तहत जब हमारे समूह के लोग दो बार वृद्धाश्रम गए तो उनके कमरे की खिड़की के पास बदबू के कारण खड़ा होना दूभर हो रहा था.....जब हमने खिडकियों के बाहर देखा तो दिखा कचरे का बड़ा सा अम्बार....सचमुच सबका मन ख़राब हो गया....उनके स्वास्थ्य की सबको चिंता हुई...आपसी राय बनी 15 तारीख को सुबह हम सफाई करने के लिए झाड़ू, फावड़ा जैसे ढेर सारे सामान के साथ पहुँच गए डॉ योगी, डॉ.राजेश टंडन, अंशुल प्रशांत, रचिता, लक्ष्मी, मीनू और अभय.
हमें इस काम के लिए आया देखकर वहां के बुजुर्गों ने ये काम करने से मना किया. और बताया कि पार्षद से अनेक बार चर्चा हुई है, वो एक दो दिनों में सफाई करवाने वाले है. एक दादाजी ने तो पार्षद को फ़ोन लगवाकर उनसे हमारी बात भी करवाई. तब तक मैदान में कूद चुके थे हमारे साथी. गन्दगी कुछ ज्यादा ही थी. स्वच्छता अभियान के नगर निगम के कर्मचारी उसी समय गाड़ी और ट्रेक्टर लेकर पहुंचे..पर उनके साथ एक भी लेबर नहीं था..इसलिए बड़ी सी गाड़ी से जितना कूड़ा उठाया जा सकता था उठाकर जा रहे थे, हमने उनसे पूछा इधर गली की सफाई? जवाब मिला वहां गाड़ी नहीं जा सकती और लेबर हमारे साथ रहते नहीं....हमारी समझ में आ गया की स्वच्छ भारत अभियान में सफाई वही हो सकती है जहाँ बड़ी गाड़ी पहुँच सके...हमने पार्षद को फिर से फ़ोन लगाया, उनको ये समस्या भी बताई...उन्होंने दूसरे दिन पूरी सफाई करवाने का पक्का आश्वासन दिया....हमने भी उस समय आने का वादा किया और बढ़ चले पास के सब्जी बाज़ार की ओर....


दूसरे दिन सुबह पार्षद साहिब ने अपना वादा निभाया....बुजुर्गों के चेहरों की ख़ुशी ने हमको कितना सुकून दिया ये हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते....एक बुज़ुर्ग ने हमारे एक सदस्य का हाथ पकड़ लिया और रोने लगे....सिर्फ इतना कह पाए कि हम कितने दिनों से कोशिश कर रहे थे...आपने एक दिन में करवा दिया.....हमको लगा हमारा संवेदना शीर्षक प्रोजेक्ट सार्थक होना शुरू हो चुका है....
Wednesday, March 11, 2015
सम्वेदना २ - बुजुर्गों के साथ फाग की मस्ती
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हरोभूमि ३ मार्च २०१५ |
1 मार्च २०१५
बुज़ुर्गों के साथ मनाया हमने फाल्गुन...कोशिश की उनको थोड़ी सी खुशियाँ देने की और बदले में पाया ढेर सारा आशीर्वाद..
1 फरवरी को वृद्धाश्रम में जाकर बुजुर्गो के साथ बिताया दो घंटे का समय 1 मार्च तक के लिये हम सबको ऊर्जा प्रदान करता रहा। हर दिन उन लम्हों की याद में और अगली बार उनसे मिलने के इंतजार में एक-एक दिन गुजरता चला गया। आखिर 28 दिनों बाद वो पल आ ही गया। हम पहुँचे एक बार फिर उन सबके बीच 1 मार्च की शाम 4 बजे।
बुजुर्गों के साथ फाग की मस्ती-
5 दिनों बाद होली है, इसलिए आज का कार्यक्रम उनके साथ स्वाभाविक है होली की थीम पर ही आधारित होना था। हमारे आज के कार्यक्रम के एजेंडा में शामिल था....नगाड़ो की थाप, फाग गीतों का जोष, गुजिया की मिठास, हर्बल गुलाल और चंदन का टीका और फूलों की बारिश। ऐसा नहीं है कि महीने के पहले रविवार का इंतजार सिर्फ हमें था, वे भी कर रहे थे हमारा बेसब्री से इंतजार। लेकिन उनमें से कुछ ने ये भी माना कि उन्हें शक था कि हम आयेंगे कि नहीं। औरों की तरह एक बार उनके बीच पहुॅंचकर, अगली बार आने का वादा करके तोड़ेंगे तो नहीं। दरी-चटाई बिछाकर 4 बजे से पहले ही बैठ गये थे हमारे बुजुर्ग साथी, हमारे इंतजार में।
अंतरा गुजियों से भरे डिब्बे लेकर पहुंची, मंजुला हर्बल रंगों के साथ पहुँच गई और फूलों को सुखाकर उनकी पंखुडि़याँ लेकर अंशुल, अनुज, योगेश भी आ गए। डाॅ योगी तो एक वर्कशॉप में पिछले 3 दिनों से सिंगरौली गए हुए थे। सुबह 5 बजे से लगातार ड्राइविंग करते हुए सीधे आश्रम आ गए अपने दो साथियों के साथ। सुनील, नम्रता, ऐश्वर्या, स्वप्निल, प्प्रशांत, अविनाष अपनी बहन के साथ, कोहिनूर, आभा, अभिलाष, श्रद्धा...... सब धीरे-धीरे 4.15 बजे तक जमा हो गए। अजय भी आ गया अपने दो फाग गाने वाले साथियों के संग....बस फिर नगाड़े की थाप के साथ फाग राग शुरू हो गया।

कुछ खास प्रतिक्रियाएँ-
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दैनिक भास्कर २ march 2015 |
# एक बुजुर्ग महिला ने हमसे कहा आप लोग महीने में 2 बार आना शुरू करो, महीना बहुत लंबा हो जाता है।
# अविनाष अपनी बहन को लाया था, बड़े बेमन से आई थी वो, ये सोचकर कि वृद्धाश्रम है तो क्या होगा, ग्रुप के लोग कुछ खाना-फल दान करेंगे, होली का टीका लगाएंगे और फोटो खिंचवायेंगे। लेकिन यहाँ का माहौल देखकर वो हैरान हो गई और हर बार आने का वादा करके हमसे विदा हुईं।
# हमारी छोटी सदस्या मीशा को उसके नाना 2 दिन पहले दिल्ली ले गए थे, तो सिर्फ यहाँ आने के नाम पर वहाँ नहीं जाना चाहती थी। रात को सारी बातें फोन पर सुनकर बहुत दुखी हुई कि वो यहाँ क्यों नहीं थी।
Monday, March 9, 2015
mahila divas podcast
नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।
पॉडकास्ट में शामिल गीत
जूही की कली मेरी लाडली - दिल एक मंदिर
ओ माँ - दादी माँ
नारी हूँ कमज़ोर नहीं - आखिर क्यू
नारी जीवन मेहंदी का बूटा - मेहंदी
मैं नारी हूँ- नारी
ओ वुमनिया-गैंग्स ऑफ़ वासेपुर
सुभद्रा कुमारी चौहान
मैंने हँसाना सीखा है मैं नहीं जानती रोना।
बरसा करता पल-पल पर, मेरे जीवन में सोना।
मैं अब तक जान न पाई, कैसी होती है पीड़ा।
हँस-हँस जीवन में मेरे, कैसे करती है क्रीडा।
जग है असार, सुनती हूँ, मुझको सुख-सार दिखाता।
मेरी आँखों के आगे, सुख का सागर लहराता।
उत्साह-उमंग निरंतर, रहते मेरे जीवन में।
उल्लास विजय का हँसता, मेरे मतवाले मन में।
आशा आलोकित करती, मेरे जीवन को प्रतिक्षण।
हैं स्वर्ण-सूत्र से वलयित, मेरी असफलता के घन।
सुख भरे सुनहले बादल, रहते हैं मुझको घेरे।
विश्वास प्रेम साहस हैं, जीवन के साथी मेरे।
धीरेन्द्र सिंह
आसमान सा है जिसका विस्तार, चॉद-सितारों का जो सजाए संसार
धरती जैसी है सहनशीलता जिसमें, है नारी हर जीवन का आधार
कभी फूल सा रंग-सुगंध लगे, कभी चींटी सा बोझ उठाए अपार
कभी स्नेह का लगे दरिया निर्झर, कभी बने किसी का परम आधार
चूल्हा-चैका रिश्तों-नातों की वेणी, हर घर की यह गरिमामय शृंगार
आज कहाँ से कहाँ पहुँच गई है, हर नैया की बन सशक्त पतवार
घर से दफ्तर चूल्हे से चंदा तक, पुरुष संग अब दौड़े यह नार
महिला दिवस है शक्ति दिवस भी, पुरुष नजरिया में हो और सुधार
Saturday, March 7, 2015
छत्तीसगढ़ राज्य की चमक....सूरजकुंड के मेले में हमने भी देखी...
अपनी एक पारिवारिक यात्रा के दौरान हम 12 फरवरी 2015 को फरीदाबाद पहुंचे। वहां पता चला कि सूरजकुंड का प्रसिद्ध क्राफ्ट मेला प्रतिवर्ष यहीं होता है। 1 फरवरी से 15 फरवरी तक चलने वाले इस मेले के रंग हमने वहां के अखबारों में देखे और साथ ही देखी ये महत्वपूर्ण खबर कि इस बार के मेले का थीम राज्य है छत्तीसगढ़..... तब तो हमारे लिये और भी जरूरी हो गया इस मेले में जाना।
सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला, भारत की एवं शिल्पियों की हस्तकला का १५ दिन चलने वाला मेला, लोगों को ग्रामीण माहौल और ग्रामीण संस्कृति का परिचय देता है।
यह मेला हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर के दिल्ली के निकटवर्ती सीमा से लगे सूरजकुंड क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगता है। यह मेला लगभग ढाई दशक से आयोजित होता आ रहा है। वर्तमान में इस मेले में हस्तशिल्पी और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों की वस्त्र परंपरा, लोक कला, लोक व्यंजनों के अतिरिक्त लोक संगीत और लोक नृत्यों का भी संगम होता है। मेले के वृहद होने का अंदाज़ आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसको दिखाने के लिये हेलिकाफप्टर का इंतज़ाम था वहां पर।
मेले में प्रवेश करते ही एक मधुर महिला स्वर ने माइक पर हमारा स्वागत किया। ये स्वर हमें मेला घूमने के दौरान लगातार जानकारियां भी दे रहा था, सूचनाएं भी, भूलभुलैया से रास्तों से निकलने के बारे में भी बता रहा था और मेले के महत्व के बारे में हमारे मन की जिज्ञासाएं भी इस आवाज़ के कारण धीरे धीरे शांत होती जा रही थीं। इस मेले में हर वर्ष किसी एक राज्य को थीम बना कर उसकी कला, संस्कृति, सामाजिक परिवेश और परंपराओं को प्रदर्शित किया जाता है। छत्तीसगढ़ इस वर्ष का थीम राज्य है। सन् 2005 में भी हमारे इस राज्य का बार यह गौरव प्राप्त हुआ था। मेले में लगे स्टॉल हर क्षेत्र की कला से परिचित कराते हैं। सार्क देशों एवं थाईलैंड, तजाकिस्तान और मिस्र के कलाशिल्पी भी यहां आते हैं।
यह मेला हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर के दिल्ली के निकटवर्ती सीमा से लगे सूरजकुंड क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगता है। यह मेला लगभग ढाई दशक से आयोजित होता आ रहा है। वर्तमान में इस मेले में हस्तशिल्पी और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों की वस्त्र परंपरा, लोक कला, लोक व्यंजनों के अतिरिक्त लोक संगीत और लोक नृत्यों का भी संगम होता है। मेले के वृहद होने का अंदाज़ आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसको दिखाने के लिये हेलिकाफप्टर का इंतज़ाम था वहां पर।
मेले में प्रवेश करते ही एक मधुर महिला स्वर ने माइक पर हमारा स्वागत किया। ये स्वर हमें मेला घूमने के दौरान लगातार जानकारियां भी दे रहा था, सूचनाएं भी, भूलभुलैया से रास्तों से निकलने के बारे में भी बता रहा था और मेले के महत्व के बारे में हमारे मन की जिज्ञासाएं भी इस आवाज़ के कारण धीरे धीरे शांत होती जा रही थीं। इस मेले में हर वर्ष किसी एक राज्य को थीम बना कर उसकी कला, संस्कृति, सामाजिक परिवेश और परंपराओं को प्रदर्शित किया जाता है। छत्तीसगढ़ इस वर्ष का थीम राज्य है। सन् 2005 में भी हमारे इस राज्य का बार यह गौरव प्राप्त हुआ था। मेले में लगे स्टॉल हर क्षेत्र की कला से परिचित कराते हैं। सार्क देशों एवं थाईलैंड, तजाकिस्तान और मिस्र के कलाशिल्पी भी यहां आते हैं।
पश्चिम बंगाल और असम के बांस और बेंत की वस्तुएं, पूर्वोत्तर राज्यों के वस्त्र, छत्तीसगढ़ और
आंध्र प्रदेश से लोहे व अन्य धातु की वस्तुएं, उड़ीसा एवं तमिलनाडु के अनोखे हस्तशिल्प, मध्य प्रदेश,गुजरात, पंजाब और कश्मीर के आकर्षक परिधान और शिल्प, सिक्किम की थंका चित्रकला, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन और शो पीस, दक्षिण भारत के रोजवुड और चंदन की लकड़ी के हस्तशिल्प के साथ साथ हर क्षेत्र के हस्तकला से जुड़े उत्पादों को देखकर, वहां का रंग-बिरंगा माहौल देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया। हालांकि इतने बड़े क्षेत्र में एक गांव की तरह बसे इस मेले का बहुत कम हिस्सा ही हम घूम पाये लेकिन छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को बेहतरीन तरीके से प्रदशिर्त देखकर गर्व की अनुभूति हुई।
ताला के रुद्रशिव की प्रतिमा, सिरपुर, भोरमदेव जैसे मंदिरों के माॅडल, गोदना आर्ट, बस्तर की कला के साथ साथ पुतलों की सहायता से गेड़ी नृत्य, सुवा, पंथी नुत्यों जैसी कलाओं से भी दर्शकों को परिचित करवाया गया। इन कलाओं और संस्कृति की झलक के साथ इनका ब्यौरा भी साथ में लिख होता था। देश के अन्य हिस्सों के पर्यटक इनको बड़ी रुचि के साथ देखते और समझने की कोशिश करते हुए दीख रहे थे।
यहां अनेक राज्यों के खास व्यंजनों के साथ ही विदेशी खानपान का स्वाद भी मिलता है। हर राज्य के स्टाॅल, अपनी वेषभूषा के साथ व्यंजनों को परोसते, मुस्कुराते वेटर, स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबू से सराबोर माहौल...मेले के इस भाग में जाकर भी आनंद आ गया। छत्तीसगढ़ के व्यंजनों का भी स्टाॅल लगा था। लेकिन वहां बिल्कुल भी आनंद नहीं आया...न छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का ओरिजनल स्वाद था और न ही क्वालिटी। लग रहा था किसी बड़े होटल वाले को ठेका दे दिया गया है, जो सिर्फ लाभ कमाने के उद्देश्य से वहां उपस्थित है। व्यंजनों के नामों को देखकर उनके बारे में जानकारी लेने वाले दर्षकों को बताने वाला भी कोई नहीं था।
मेला परिसर में चौपाल और नाट्यशाला नामक खुले मंच पर सारे दिन विभिन्न राज्यों के लोक कलाकार अपनी अनूठी प्रस्तुतियों से समा बांधते हैं। शाम के समय विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। दर्शक भगोरिया डांस, बीन डांस, बिहू, भांगड़ा, चरकुला डांस, कालबेलिया नृत्य, पंथी नृत्य, संबलपुरी नृत्य और सिद्घी गोमा नृत्य आदि का आनंद लेते हैं। विदेशों की सांस्कृतिक मंडलियां भी प्रस्तुति देती हैं।



हरियाणा की पर्यटन विभाग ने १९८१ में शुरू किया था। तब से हर साल इन्ही दिनों ये मेला लगता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण है कि भारत के सभी राज्यों में से सबसे अच्छा शिल्प उत्पादों को एक ही स्थान पर जहाँ आप न देख सकते बल्कि उन्हें महसूस कर सकते हैं और उन्हें खरीद भी सकते है। इस शिल्प मेले में आप सबसे अच्छे हथकरघा और देश के सभी हस्तशिल्प पा सकते हैं। साथ ही मेला मैदान के ग्रामीण परिवेश की अद्भुत रेंज आगंतुकों को आकर्षित करती है। सूरजकुंड मेले में इस गांव के माहौल को न केवल शहर की सुविधा-निवासी गांव जीवन की एक स्वाद पाने के लिए, लेकिन यह भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खरीददारों के लिए पहुँच प्राप्त करने के शिल्पकारों में मदद करता है।



हरियाणा की पर्यटन विभाग ने १९८१ में शुरू किया था। तब से हर साल इन्ही दिनों ये मेला लगता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण है कि भारत के सभी राज्यों में से सबसे अच्छा शिल्प उत्पादों को एक ही स्थान पर जहाँ आप न देख सकते बल्कि उन्हें महसूस कर सकते हैं और उन्हें खरीद भी सकते है। इस शिल्प मेले में आप सबसे अच्छे हथकरघा और देश के सभी हस्तशिल्प पा सकते हैं। साथ ही मेला मैदान के ग्रामीण परिवेश की अद्भुत रेंज आगंतुकों को आकर्षित करती है। सूरजकुंड मेले में इस गांव के माहौल को न केवल शहर की सुविधा-निवासी गांव जीवन की एक स्वाद पाने के लिए, लेकिन यह भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खरीददारों के लिए पहुँच प्राप्त करने के शिल्पकारों में मदद करता है।
वर्ष व थीम स्टेट
1989 राजस्थान 1990 पश्चिम बंगाल 1991 केरल
1992 मध्य प्रदेश 1993 उड़ीसा 1994 कर्नाटक
1995 पंजाब 1996 हिमाचल प्रदेश 1997 गुजरात
1998 नॉर्थ ईस्टर्न स्टेट 1999 आंध्र प्रदेश 2000 जम्मू-कश्मीर
2001 गोवा 2002 सिक्किम 2003 उत्तरांचल
2004 तमिलनाडु 2005 छत्तीसगढ़ 2006 महाराष्ट्र
2007 आंध्र प्रदेश 2008 पश्चिम बंगाल 2009 मध्य प्रदेश
2010 राजस्थान 2011 आंध्रप्रदेश 2012 आसाम
2013 कर्नाटक 2014 गोवा 2015 छत्तीसगढ़
१ से १६ फ़रवरी के अखबारों में सूरजकुंड मेला...




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