Saturday, March 7, 2015

छत्तीसगढ़ राज्य की चमक....सूरजकुंड के मेले में हमने भी देखी...



अपनी एक पारिवारिक यात्रा के दौरान हम 12 फरवरी 2015 को फरीदाबाद पहुंचे। वहां पता चला कि सूरजकुंड का प्रसिद्ध क्राफ्ट मेला प्रतिवर्ष यहीं होता है। 1 फरवरी से 15 फरवरी तक चलने वाले इस मेले के रंग हमने वहां के अखबारों में देखे और साथ ही देखी ये महत्वपूर्ण खबर कि इस बार के मेले का थीम राज्य है छत्तीसगढ़..... तब तो हमारे लिये और भी जरूरी हो गया इस मेले में जाना।
सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला, भारत की एवं शिल्पियों की हस्तकला का १५ दिन चलने वाला मेला, लोगों को ग्रामीण माहौल और ग्रामीण संस्कृति का परिचय देता है।


यह मेला हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर के दिल्ली के निकटवर्ती सीमा से लगे सूरजकुंड क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगता है। यह मेला लगभग ढाई दशक से आयोजित होता आ रहा है। वर्तमान में इस मेले में हस्तशिल्पी और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों की वस्त्र परंपरा, लोक कला, लोक व्यंजनों के अतिरिक्त लोक संगीत और लोक नृत्यों का भी संगम होता है। मेले के वृहद होने का अंदाज़ आप इस बात से लगा सकते हैं कि इसको दिखाने के लिये हेलिकाफप्टर का इंतज़ाम था वहां पर।
मेले में प्रवेश करते ही एक मधुर महिला स्वर ने माइक पर हमारा स्वागत किया। ये स्वर हमें मेला घूमने के दौरान लगातार जानकारियां भी दे रहा था, सूचनाएं भी, भूलभुलैया से रास्तों से निकलने के बारे में भी बता रहा था और मेले के महत्व के बारे में हमारे मन की जिज्ञासाएं भी इस आवाज़ के कारण धीरे धीरे शांत होती जा रही थीं। इस मेले में हर वर्ष किसी एक राज्य को थीम बना कर उसकी कला, संस्कृति, सामाजिक परिवेश और परंपराओं को प्रदर्शित किया जाता है। छत्तीसगढ़ इस वर्ष का थीम राज्य है। सन् 2005 में भी हमारे इस राज्य का बार यह गौरव प्राप्त हुआ था। मेले में लगे स्टॉल हर क्षेत्र की कला से परिचित कराते हैं। सार्क देशों एवं थाईलैंड, तजाकिस्तान और मिस्र के कलाशिल्पी भी यहां आते हैं।


 पश्चिम बंगाल और असम के बांस और बेंत की वस्तुएं, पूर्वोत्तर राज्यों के वस्त्र, छत्तीसगढ़ और
आंध्र प्रदेश से लोहे व अन्य धातु की वस्तुएं, उड़ीसा एवं तमिलनाडु के अनोखे हस्तशिल्प, मध्य प्रदेश,गुजरात, पंजाब और कश्मीर के आकर्षक परिधान और शिल्प, सिक्किम की थंका चित्रकला, मुरादाबाद के पीतल के बर्तन और शो पीस, दक्षिण भारत के रोजवुड और चंदन की लकड़ी के हस्तशिल्प के साथ साथ हर क्षेत्र के हस्तकला से जुड़े उत्पादों को देखकर, वहां का रंग-बिरंगा माहौल देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया। हालांकि इतने बड़े क्षेत्र में एक गांव की तरह बसे इस मेले का बहुत कम हिस्सा ही हम घूम पाये लेकिन छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को बेहतरीन तरीके से प्रदशिर्‍त देखकर गर्व की अनुभूति हुई।




ताला के रुद्रशि‍व की प्रतिमा, सिरपुर, भोरमदेव जैसे मंदिरों के माॅडल, गोदना आर्ट, बस्तर की कला के साथ साथ पुतलों की सहायता से गेड़ी नृत्य, सुवा, पंथी नुत्यों जैसी कलाओं से भी दर्शकों को परिचित करवाया गया। इन कलाओं और संस्कृति की झलक के साथ इनका ब्यौरा भी साथ में लिख होता था। देश के अन्य हिस्सों के पर्यटक इनको बड़ी रुचि के साथ देखते और समझने की कोशिश करते हुए दीख रहे थे।


यहां अनेक राज्यों के खास व्यंजनों के साथ ही विदेशी खानपान का स्वाद भी मिलता है। हर राज्य के स्टाॅल, अपनी वेषभूषा के साथ व्यंजनों को परोसते, मुस्कुराते वेटर, स्वादिष्ट व्यंजनों की खुशबू से सराबोर माहौल...मेले के इस भाग में जाकर भी आनंद आ गया। छत्तीसगढ़ के व्यंजनों का भी स्टाॅल लगा था। लेकिन वहां बिल्कुल भी आनंद नहीं आया...न छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का ओरिजनल स्वाद था और न ही क्वालिटी। लग रहा था किसी बड़े होटल वाले को ठेका दे दिया गया है, जो सिर्फ लाभ कमाने के उद्देश्य से वहां उपस्थित है। व्यंजनों के नामों को देखकर उनके बारे में जानकारी लेने वाले दर्षकों को बताने वाला भी कोई नहीं था।
मेला परिसर में चौपाल और नाट्यशाला नामक खुले मंच पर सारे दिन विभिन्न राज्यों के लोक कलाकार अपनी अनूठी प्रस्तुतियों से समा बांधते हैं। शाम के समय विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। दर्शक भगोरिया डांस, बीन डांस, बिहू, भांगड़ा, चरकुला डांस, कालबेलिया नृत्य, पंथी नृत्य, संबलपुरी नृत्य और सिद्घी गोमा नृत्य आदि का आनंद लेते हैं। विदेशों की सांस्कृतिक मंडलियां भी प्रस्तुति देती हैं।

 

 
हरियाणा की पर्यटन विभाग ने १९८१ में शुरू किया था। तब से हर साल इन्ही दिनों ये मेला लगता है। इस मेले का मुख्य आकर्षण है कि भारत के सभी राज्यों में से सबसे अच्छा शिल्प उत्पादों को एक ही स्थान पर जहाँ आप न देख सकते बल्कि उन्हें महसूस कर सकते हैं और उन्हें खरीद भी सकते है। इस शिल्प मेले में आप सबसे अच्छे हथकरघा और देश के सभी हस्तशिल्प पा सकते हैं। साथ ही मेला मैदान के ग्रामीण परिवेश की अद्भुत रेंज आगंतुकों को आकर्षित करती है। सूरजकुंड मेले में इस गांव के माहौल को न केवल शहर की सुविधा-निवासी गांव जीवन की एक स्वाद पाने के लिए, लेकिन यह भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खरीददारों के लिए पहुँच प्राप्त करने के शिल्पकारों में मदद करता है।

वर्ष व  थीम स्टेट
1989 राजस्थान                       1990 पश्चिम बंगाल 1991 केरल
1992 मध्य प्रदेश                     1993  उड़ीसा 1994 कर्नाटक
1995 पंजाब                            1996  हिमाचल प्रदेश 1997 गुजरात
1998 नॉर्थ ईस्टर्न स्टेट              1999  आंध्र प्रदेश                         2000 जम्मू-कश्मीर
2001 गोवा                              2002  सिक्किम                          2003 उत्तरांचल
2004 तमिलनाडु                       2005 छत्तीसगढ़                        2006 महाराष्ट्र
2007 आंध्र प्रदेश                       2008  पश्चिम बंगाल 2009 मध्य प्रदेश
2010  राजस्थान                       2011   आंध्रप्रदेश                        2012  आसाम
2013  कर्नाटक                         2014  गोवा                               2015 छत्तीसगढ़

१ से १६ फ़रवरी के अखबारों में सूरजकुंड मेला...









1 comment:

  1. बढिया जानकारी दी आपने, साथ में अखबार भी समेट दिए। 14-15 फ़रवरी को मैं भी हरियाणा में था। परन्तु पहुंच नहीं पाया इस मेले में।

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