Wednesday, February 10, 2016

हमारी मुलाकातों की वर्षगांठ

3 जनवरी 2016
नये साल का स्वागत

पिछली बार बिदाई के समय हमसे हमारे बाबा दादियों ने एक वादा लिया था वो ये कि नये साल पर और हमारे इन बुजुर्गों से मिलने के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में हम कुछ न करें....बस जनवरी के पहले रविवार की दोपहर का भोजन उनके साथ बैठकर करें। भोजन वे लोग बनायेंगे और हमें खिलायेंगे। हमने भी खुशी ख़ुशी ये निमंत्रण स्वीकार कर लिया।



3 जनवरी यानि नये साल का पहला रविवार, हम पहुंच गये नये साल का जश्न मनाने, उनके साथ लंच करने। जब हम वहां सुबह 11 बजे पहुंचे, तो हमारा इंतजार हो रहा था। खाना बन चुका था, पंगत बिछ चुकी थी और पकवान परसने को वे तैयार बैठे थे। हमारे उनके बीच नये साल की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हुआ। उन्होंने हमें मुबारकबाद दी और हमने भी कामना की कि उनका ये साल हंसते-हंसते और खुशी से गुज़रे।


थाली पूरी भरी हुई थी...परोसा गया था पूड़ी, आलू की सब्जी, दाल, टमाटर की चटनी, दही बड़ा, पुलाव, सलाद, पापड़ और हलवा। पेट भरने के बाद भी हम खाते गये ....खाना इतना स्वादिष्ट जो था। खाने के बाद हमने मनाया जश्न...खेली अंत्याक्षरी...एक तरफ थे हम और दूसरी तरफ थे हमारे बाबा दादी। एक के बाद एक गानों की कतार... पर आखिरी में हम जीत गये।

   




इस बीच डाॅ.योगी ने पिछली बार अधिक शुगर और ब्लडप्रशर वाले 12 लोगों को फिर से जांचा परखा....उनकी पर्ची बनायी, दवायें दीं।
चलते चलते बुजुर्गों की तरफ से एक फरमाइश आई कि हमें पिक्चर ले चलो....हम भी मान गये और झट से 7 तारीख का प्रोग्राम बना डाला... सिर्फ 3 दिन बाद ही आ गई 7 तारीख, तब तक पीवीआर में व्यवस्था...उनको पीवीआर तक ले जाने की व्यवस्था और उनके उनके खाने की व्यवस्था कर ली गई और नया साल व हमारी मुलाकात का वार्षिक सम्मेलन संपन्न हुआ 64 लोगों द्वारा फिल्म ‘दिलवाले’ देखकर।


आलेख - रचिता








Tuesday, February 9, 2016

Naman Nida...

सीजी स्वर की तरफ से पद्मश्री निदा फ़ाज़ली साहिब को श्रद्दांजलि......



.....नमन निदा फ़ाज़ली.....
                   
               
                     Voice - Sangya Tandon, Anuj Shrivastava

फाजली द्वारा लिखी कुछ मशहूर लाइनें....

1. क्‍या हुआ शहर को कुछ भी तो दिखाई दे कहीं, यूं किया जाए कभी खुद को रुलाया जाए
घर से मस्‍जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्‍चे को हंसाया जाए
2. अपनी मर्जी से कहां अपने सफर के हम हैं,
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
3. अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हम ने अपना लिया हर रंग जमाने वाला
4. इस अंधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्‍म जलाने से रही
5. कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएं रात हो गई
6. कभी किसी को मुकम्‍मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
7. कोई हिंदू कोई मुस्‍लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है
8. कोशिश भी कर उम्‍मीद भी रख रास्‍ता भी चुन
फिर इस के बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर
9. खुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक्‍त पे कुछ अपना इख्‍तिकार भी रख
10. तुम से छूट कर भी तुम्‍हें भूलना आसान न था
तुम को ही याद किया तुम को भुलाने के लिए


निदा फ़ाज़ली के कुछ दोहे 
चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात
कटकर भी मरते नहीं, पेड़ों में दिन-रात

रास्ते को भी दोष दे, आँखें भी कर लाल
चप्पल में जो कील है, पहले उसे निकाल
ऊपर से गुड़िया हँसे, अंदर पोलमपोल
गुड़िया से है प्यार तो, टाँकों को मत खोल
मैं भी तू भी यात्री, आती-जाती रेल
अपने-अपने गाँव तक, सबका सब से मेल।
दर्पण में आँखें बनीं, दीवारों में कान
चूड़ी में बजने लगी, अधरों की मुस्कान
मैं क्या जानूँ तू बता, तू है मेरा कौन
मेरे मन की बात को, बोले तेरा मौन
चिड़ियों को चहकाकर दे, गीतों को दे बोल
सूरज बिन आकाश है, गोरी घूँघट खोल
यों ही होता है सदा, हर चूनर के संग
पंछी बनकर धूप में, उड़ जाते हैं रंग
युग-युग से हर बाग का, ये ही एक उसूल
जिसको हँसना आ गया वो ही मट्टी फूल
सुना है अपने गाँव में, रहा न अब वह नीम
जिसके आगे मांद थे, सारे वैद्य-हकीम
बूढ़ा पीपल घाट का, बतियाए दिन-रात
जो भी गुज़रे पास से, सिर पे रख दे हाथ
पंछी मानव, फूल, जल, अलग-अलग आकार
माटी का घर एक ही, सारे रिश्तेदार
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना, खोना, खोजना, सांसों का इतिहास
सीधा सादा डाकिया जादू करे महान
एक ही थैले में भरे आँसू और मुस्कान
घर को खोजें रात दिन घर से निकले पाँव
वो रस्ता ही खो गया जिस रस्ते था गाँव
छोटा कर के देखिए जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाँहों भर संसार


collection fron web