3 जनवरी 2016
नये साल का स्वागत
पिछली बार बिदाई के समय हमसे हमारे बाबा दादियों ने एक वादा लिया था वो ये कि नये साल पर और हमारे इन बुजुर्गों से मिलने के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में हम कुछ न करें....बस जनवरी के पहले रविवार की दोपहर का भोजन उनके साथ बैठकर करें। भोजन वे लोग बनायेंगे और हमें खिलायेंगे। हमने भी खुशी ख़ुशी ये निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
3 जनवरी यानि नये साल का पहला रविवार, हम पहुंच गये नये साल का जश्न मनाने, उनके साथ लंच करने। जब हम वहां सुबह 11 बजे पहुंचे, तो हमारा इंतजार हो रहा था। खाना बन चुका था, पंगत बिछ चुकी थी और पकवान परसने को वे तैयार बैठे थे। हमारे उनके बीच नये साल की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हुआ। उन्होंने हमें मुबारकबाद दी और हमने भी कामना की कि उनका ये साल हंसते-हंसते और खुशी से गुज़रे।
थाली पूरी भरी हुई थी...परोसा गया था पूड़ी, आलू की सब्जी, दाल, टमाटर की चटनी, दही बड़ा, पुलाव, सलाद, पापड़ और हलवा। पेट भरने के बाद भी हम खाते गये ....खाना इतना स्वादिष्ट जो था। खाने के बाद हमने मनाया जश्न...खेली अंत्याक्षरी...एक तरफ थे हम और दूसरी तरफ थे हमारे बाबा दादी। एक के बाद एक गानों की कतार... पर आखिरी में हम जीत गये।
इस बीच डाॅ.योगी ने पिछली बार अधिक शुगर और ब्लडप्रशर वाले 12 लोगों को फिर से जांचा परखा....उनकी पर्ची बनायी, दवायें दीं।
चलते चलते बुजुर्गों की तरफ से एक फरमाइश आई कि हमें पिक्चर ले चलो....हम भी मान गये और झट से 7 तारीख का प्रोग्राम बना डाला... सिर्फ 3 दिन बाद ही आ गई 7 तारीख, तब तक पीवीआर में व्यवस्था...उनको पीवीआर तक ले जाने की व्यवस्था और उनके उनके खाने की व्यवस्था कर ली गई और नया साल व हमारी मुलाकात का वार्षिक सम्मेलन संपन्न हुआ 64 लोगों द्वारा फिल्म ‘दिलवाले’ देखकर।
आलेख - रचिता
नये साल का स्वागत
पिछली बार बिदाई के समय हमसे हमारे बाबा दादियों ने एक वादा लिया था वो ये कि नये साल पर और हमारे इन बुजुर्गों से मिलने के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में हम कुछ न करें....बस जनवरी के पहले रविवार की दोपहर का भोजन उनके साथ बैठकर करें। भोजन वे लोग बनायेंगे और हमें खिलायेंगे। हमने भी खुशी ख़ुशी ये निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
3 जनवरी यानि नये साल का पहला रविवार, हम पहुंच गये नये साल का जश्न मनाने, उनके साथ लंच करने। जब हम वहां सुबह 11 बजे पहुंचे, तो हमारा इंतजार हो रहा था। खाना बन चुका था, पंगत बिछ चुकी थी और पकवान परसने को वे तैयार बैठे थे। हमारे उनके बीच नये साल की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान हुआ। उन्होंने हमें मुबारकबाद दी और हमने भी कामना की कि उनका ये साल हंसते-हंसते और खुशी से गुज़रे।
थाली पूरी भरी हुई थी...परोसा गया था पूड़ी, आलू की सब्जी, दाल, टमाटर की चटनी, दही बड़ा, पुलाव, सलाद, पापड़ और हलवा। पेट भरने के बाद भी हम खाते गये ....खाना इतना स्वादिष्ट जो था। खाने के बाद हमने मनाया जश्न...खेली अंत्याक्षरी...एक तरफ थे हम और दूसरी तरफ थे हमारे बाबा दादी। एक के बाद एक गानों की कतार... पर आखिरी में हम जीत गये।
इस बीच डाॅ.योगी ने पिछली बार अधिक शुगर और ब्लडप्रशर वाले 12 लोगों को फिर से जांचा परखा....उनकी पर्ची बनायी, दवायें दीं।
चलते चलते बुजुर्गों की तरफ से एक फरमाइश आई कि हमें पिक्चर ले चलो....हम भी मान गये और झट से 7 तारीख का प्रोग्राम बना डाला... सिर्फ 3 दिन बाद ही आ गई 7 तारीख, तब तक पीवीआर में व्यवस्था...उनको पीवीआर तक ले जाने की व्यवस्था और उनके उनके खाने की व्यवस्था कर ली गई और नया साल व हमारी मुलाकात का वार्षिक सम्मेलन संपन्न हुआ 64 लोगों द्वारा फिल्म ‘दिलवाले’ देखकर।
आलेख - रचिता