Sunday, May 13, 2018

"मैं ही क्यों?" मुझे राज रोग हुआ है, कैंसर नही......आराधना त्रिपाठी

 नकारात्मकता के माहौल से सकारात्मक ऊर्जा निकाल कर अपने साथ औरों की ज़िंदगी को भी खुशहाल बनाती....... 
आराधना त्रिपाठी 



आकाशवाणी के पूर्व कार्यक्रम अधिशासी स्व.सुरेश त्रिपाठी जी की धर्मपत्नी की कहानी उन्हीं की जुबानी....

"मुझे राज रोग हुआ है,
कैंसर नही"
आपने सही सुना, "राज रोग"
आप हैरान हो गए?
आइये,आपको अपनी पूरी कहानी सुनाऊ, तो फिर आपको ये बातें समझ आ जाएंगी।
1970 में रायगढ़ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में मेरा जन्म हुआ। इकलौती संतान होने की वजह से माँ बाप ने मेरे लालन पालन में कोई कमी ना रखी।
शिक्षा पूरी होने के बाद एक सपनो के राजकुमार से मेरी शादी हो गई। पति महोदय आकाशवाणी में नौकरी करते थे,। पति ने कभी मायके की याद नही आने दी।
समय का पहिया घूमता रहा और घर में 2 नए मेहमान भी आ गए।
समय मानो पंख लगा के उड़ रहा था। बच्चों के साथ खेलते खेलते समय कैसे बीत जाता, पता न चलता।
मानव मन कभी शांत नही होता, हमेशा आशंकाओं से घिरा रहता है।
दुनिया की सारी खुशियाँ मेरी झोली में थी, तब लगता क़ि इतनी ख़ुशी क्यूँ?
क्या मैं सारी ख़ुशी की हकदार हूँ?
ना जाने ऐसे अजीब ख्याल क्यों आ जाते थे मन में?
पर जल्द ही मुझे इन शंकाओं का उत्तर मिल गया।
एक दिन वक्ष स्थल पर मुझे एक गांठ के जैसा महसूस हुआ। कुछ दिनों तक तो हम अपने मन को मना लेते हैं । डॉक्टर के पास जाने से ना जाने क्यों डर लगता है। कई दिन बाद भी ये गाँठ बनी हुई थी। अब तो डॉक्टर के पास जाना ही था।यह 2012 की बात थी।
डॉक्टर ने सारी जरूरी जांच की।मेरी जाँच रिपोर्ट आने वाली थी, ना जाने क्यों दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी।
रिपोर्ट आई - मुझे *ब्रैस्ट कैंसर* था।
रिपोर्ट सुनकर मैं कुछ बोल ही नही पाई। लगा कि अब सब कुछ खत्म हो गया। मानो मैं एक टाइम बम पर बैठी थी, जो कभी भी फटने वाला था। पूरा दिन रोते हुए बीतता।
भगवान से पूछा करती, "मैं ही क्यों?
मैं ही क्यों?
पति महोदय से मेरी तकलीफ देखी नहीं जा रही थी,
उन्होंने मुझसे पूछा,
" जब एक सम्पन्न परिवार ने तुम्हारा जन्म हुआ, माँ बाप का भरपूर प्यार मिला, तब तुमने पूछा, मैं ही क्यों?
बहुत ध्यान रखने वाला पति मिला, तब तुमने पूछा मैं ही क्यों?
2 प्यारे प्यारे बच्चे मिले, तब तुमने पूछा , मैं ही क्यों?
भगवान ने सारी खुशियाँ दी, तब तुमने पूछा , मैं ही क्यों?
ऊपर वाला कोई भी खेल बिना वजह नही करता।
अपनी बीमारी के पीछे की वजह तुम्हे खुद ही ढूंढना होगा।"
पति की बातें कई दिनों तक मन में गूंजती रही।
लगा जैसे कैंसर मेरे तन को नही मन को हो गया है।
मैंने निश्चय किया क़ि ये मन का कैंसर भगाना है, तन का कैंसर तो डॉक्टर के ऊपर छोड़ दिया।
मैंने पाया क़ि कैंसर ने जैसे मेरा रुतबा या ओहदा बढ़ा दिया था।
हर कोई मुझसे प्यार से सम्मान से बात करता। क्योकि अब मुझे दुनिया बड़ी हसीन लगती । मुझे लगता क़ि लोग पता नही क्यों सहेली की नई साड़ी, पड़ोसन की नई सैंडल जैसे मामलो में उलझे रहते हैं। कैंसर ने मुझे जिंदगी की कीमत समझा दी थी।
मेरा इलाज भी चल रहा था।
पहले कैंसर की गांठे निकाली गई, 15 गांठे निकली।जबकि बाहर से छूने पर सिर्फ एक ही गाँठ पता चलती थी।
फिर chemotherapy हुई। जब chemo चलता है,तो शरीर के सारे बाल झड़ जाते हैं। जब सारे बाल चले गए तो मुझे ख़ुशी हुई, क्योंकि यह संकेत था कि chemo का असर सही दिशा में हो रहा है।
पर बालों के बिना सभी का सामना करना बड़ा कठिन होता है। मैं सर पर हर समय एक कपड़ा बाँध कर रखती।
एक दिन वह कपड़ा खुल गया, बच्चों ने मुझे देखकर कहा,"आप तो बहुत प्यारे लगते हो।दिन भर कपड़े से क्यों ढंक कर रखते हो?"
एक दिन आईने के सामने खड़ी होकर अपने आप को निहार रही थी। पति पिछे थे, उन्होंने शायद मेरे मन की बात ताड़ ली।
कहने लगे ,"सुन्दरता हमारे अंदर होती है। दुसरो की नजर में सुंदरता ढूंढना जरूरी नही।"
उसी दिन से सर पर कपड़ा बांधना बन्द कर दिया।
इसी तरह मैं हर मौके पर नकारात्मकता में सकारात्मकता ढूँढती।
Chemo के बाद radiation चालु हुआ। लगभग 2 माह radiation चला।
मेरा ब्रैस्ट भी remove किया गया।
एक दिन हम सब बैठ कर खाना खा रहे थे।
पति को BP और शुगर की प्रॉब्लम थी, जिसकी वजह से उन्हें खाने में कई परहेज लेने होते।
जबकि मुझे कोई परहेज नहीं बताया गया था खाने में।
पति ने कहा, "यार,तुम्हारी बिमारी ही ठीक है।आदमी कम से कम स्वादिष्ट भोजन तो करता है। हमको तो जमाना हो गया तला हुआ खाए। क्या दरिद्र बिमारी है?
कैंसर तो राज रोग है।"
मन का कैंसर कैसे भगाते हैं, ये पति ने ही सिखाया।
एक गीत बड़ा प्रचलित है,
"सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है,"
मैं भी गाती, "देखना है जोर कितना बाजू -ए-कैंसर में है"
और तन के कैंसर का क्या हुआ? चलिये डॉक्टर से पूछते हैं।
जनवरी 2013 में final रिपोर्ट आने वाली थी।
गुलाबी ठंड थी, हाॅस्पिटल के बाहर गुनगुनी धूप में हम लोग रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे थे। पति साथ थे, थोड़े चिंतित लग रहे थे। पर मैं निश्चिन्त थी, सब कुछ पति पर जो छोड़ दिया था।
मेरा नाम पुकारा गया, हम दोनों डॉक्टर के केबिन की तरफ बढ़े।
अंदर घुसते ही डॉक्टर मुस्कुराए और रिपोर्ट दी, जिसमे लिखा था -
*NO CANCER*
मैंने पति की और देखा, आज पहली बार उनकी आँख गीली थी, जिसे बहुत धीरे से छुपा रहे थे।
मुझे ख़ुशी हुई पर ज्यादा नहीं।
कहते हैं ना
*Success is counted sweetest by those who don't succeed*
मुझे पहले से ही पता था क़ि ये जंग मैं जीतने वाली हूँ।
2014 में पति हम सबसे बहुत दूर चले गए, शायद मेरे ठीक होने का इंतज़ार कर रहे थे।
पर जाते जाते मुझे कैंसर होने की वजह बता गए।
मैं follow up ट्रीटमेंट और चेक अप के लिए नियमित अस्पताल जाती। वहाँ दूसरे कैंसर पीड़ित महिलाओं से बात करती।
वे कहती ," दीदी, आपकी बातें मन पर बड़ा असर करती हैं। कैंसर से लड़ने की ताकत मिलती है।"
मैं उन्हें कैसे समझाती क़ि ये सभी बातें मुझे मेरे पति ने सिखाई।
मरीजो पर असर होता देख डॉक्टर मुझे हाॅस्पिटल बुलाने लगे counselling के लिए।
फिर मैं मरीजों को counselling के लिए घर बुलाने लगी।
महिलाओं में जोश भरकर दिल को बड़ा सुकून मिलता।
कैंसर के बाद दूसरी समस्या आती है ब्रा की। जो क़ि बड़ी मंहगी आती है 2000-2500/- की।
मैंने इस पर कुछ करने की सोची।
कुछ सिलाई वाली महिलाओं से बात की और इस तरह हम लोग खुद ही ब्रा बनाने लगे।
यह ब्रा 400/- की पड़ती है।
5 महिलाओ को रोजगार भी मिला।
अभी तक लगभग 50 कैंसर पीड़ित महिलाओं को counsel कर चुकी हूँ।
अब मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल चुका है, *मैं ही क्यूँ*?
जब कैंसर पीड़ित महिलाएं मुझे धन्यवाद कहती हैं तब तब ऊपर आसमान की तरफ देखकर पति को धन्यवाद कहती हूँ, वे भी मुस्कुराते होंगें।
अगर आपको या आपके किसी परिचित को कैंसर हो,तो मुझे बताएं।
कैंसर के साथ जंग में अगर कुछ साथ दे सकूँ तो मुझे ख़ुशी होगी।
आराधना त्रिपाठी
बिलासपुर छत्तीसगढ़
9981051880