श्रृंगार का स्त्री से अटूट संबंध है। आदिकाल से ही स्त्री अपने आप को सुंदर बनाने के लिये तरह तरह के श्रंगार करती आ रही है। रंभा, उर्वशी और मेनका के श्रृंगार आज भी आधुनिक स्त्री के लिये मार्गदर्शक बने हुए हैं। अपनी सुंदरता में चार चांद लगाने के लिये हर स्त्री तरह तरह के सौंदर्य प्रसाधन उपयोग में लाती है और मेंहदी उनमें से एक है। बात हो शादी ब्याह की या तीज त्योहार की या सुंदरता निखारने की मेंहदी आज हर घर की पसंद हो गई है। वैवाहिक या किसी मांगलिक अवसर पर मेंहदी की रस्म सहज रूप से हमारे संस्कारों में शामिल हो जाती है। कलात्मक रूप से मेंहदी रचे हाथ हर किसी के आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं। ऐसे अवसरों पर देने को तो कई नज़राने होते हैं ....कोई आभूषण लाता है, कोई ज़रीदार कपड़े और भी न जाने क्य क्या....पर आपके लिये आज हमने चुना है मेंहदी को। और अगर आपके घर में ऐसा ही कोई खुशी का अवसर है, ढोल ताशे बज रहे है तो फिर क्या कहने....ये तोहफा कबूल कीजिये।
प्रचलित लोकगीतों में वर्णन आता है कि मेहदी की झाड़ी सुमेर पर्वत पर उगी। वासुदेव ने इस झाड़ी को दूध से सींचा, बलराम ने इसकी देखभाल की। एक वर्णन ये भी है कि मेहदी स्वर्ग से आई इसीलिये इसमें इतनी महक और सुगंध है जो भी हो आजकल मेंहदी बहुतायत में पायी जाती है और घर घर में इसे लगाया जाता है। राजस्थान को मेंहदी का घर कहते हैं। गुजरात, म.प्र., उ.प्र., छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब में भी ये पाई्र जाती है पर हर जगह इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है। संस्कृत में तो मेंहदी के अनेक नाम हैं जैसे मेदिका, मदयन्ती, नखपत्रिका, नखरंजन। दक्षिण में इसे महिलांची कहते हैं। बंगाल में नागदाना, पश्चिम उत्तर भारत में मेंहदी को कटीला और पारसी में एकटा के नाम से और उर्दू में इसे हिना के नाम से जाना जाता है। मेंहदी ज़्यादातर रात में लगाई जाती है इसलिये इसे रजनी भी कहते हैं। भारतीय संस्कृति में मेंहदी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शुभ कार्यों के समय मेंहदी रचाना भारतीय नारियों में पुरानी परंपरा है। मेंहदी भाईचारे का प्रतीक मानी जाती है। इसलिये ये रिसती है, रचती है, निखरती है, खिलती है और अपनी रंग और महक सब जगह बिखेरती है तभी तो इसे खुशरंग हिना कहा जाता है।
अजब रसा ए किस्मत ऐ हिना तेरी,
चमन से छूट के दस्त-ए-नाज़नीं में रही।
भीगे से तेरा रंग-ए-हिना और भी चमका,
पानी में निगार-ओ-कफ ऐ पा और भी चमका।।
बंद मुट्ठी में दिल को छुपाए बैठे हैं।
है बहाना कि मेंहदी लगाए बैठे हैं।।
मेंहदी का वैज्ञानिक नाम है लासोनिया इनर्मिस। मध्यम आकार का ये पौधा होता है और शुष्क स्थानों में लगाया जाता है। हेज के लिये भी इसका उपयोग किया जाता है। इसकी छाल को यूनानी औषधियों के रूप में प्रयोग में लाते हैं। मेंहदी का रंग हमारे जीवन के रंगों के साथ पूरी तरह घुला मिला है इसीलिये कोई भी त्योहार, उत्सव, संस्कार ऐसा नहीं है जिस पर मेंहदी न लगाई जाती हो। जन्म हो या विवाह इसका अपना एक अलग स्थान है। मेंहदी उत्तर भारत में करवाचैथ और तीज में लगाई जाती है और बहुत ही श्ुाभ मानी जाती है। भारतीय सुहागन नारी की कल्पना मात्र से मस्तिष्क में जो तस्वीर उभर कर आती है वो होती मांग में सिंदूर, माथे पर बिंदिया, हाथें में मेंहदी और लाल चूड़ियाँ। सौभाग्यवती स्त्री की यही निशानी मानी जाती है। शादी-ब्याह के अवसर पर दुल्हन के साथ साथ दुल्हन को भी मेंहदी लगाई जाती है। इसे शुभ और मंगलमय माना जाता है। हाथ की मेंहदी देखकर मीिलाएँ वर-वधू के प्रेम का अंदाज़ा लगाती हैं। कहते हैं कि जितना मेंहदी का रंग गाढ़ा होता है उतना ही पति पत्नी का प्रेम भी गाढ़ा होता है। शादी में लड़कों को बहन, भाभी और बहनें मिलकर मेंहदी लगाती हैं जहाँ तक दुल्हन को मेंहदी लगाने की बात है तो जिन जातियों में, संस्कारों में जैसे बंगालियों मे ये रिवाज़ नहीं होते हुए भी आजकल श्रृंगार में चार चाँद लगाने के लिये या यूँ कहिये कि श्रृंगार को पूरा करने के लिये मेंहदी लगाई जाने लगी है। इसलिये चाहे किसी भी प्रांत के रहने वाले हों, कोई भी भाषा-भाषी लोग हों, मेंहदी अपनी रंग और सुगंध बिखेरने लगी है।
अक्ल आती है बशर को ठोकरें खाने के बाद।
रंग लाती है हिना पत्थर पर पिस जाने के बाद।।
मेंहदी केवल श्रृंगार का साधन ही नहीं यानि ये सिर्फ हाथों की सुंदरता ही नहीं बढ़ाती बल्कि इस वनस्पति में बहुत सारे चिकित्सकीय गुण भी हैं। इसके प्रयोग से चिड़चिड़ापन, आँखों की जलन और सिर दर्द जैसे विकार दूर हो जाते हैं। जले हुउ अंगों पर शहद के साथ मेंहदी लगाने से ठंडक मिलती है। खाँसी, कफ और ज़ुकाम के लिये मेंहदी के पत्तों के रस को शहद या मिश्री के साथ लेने से काफी हद तक राहत मिलती है। मेंहदी के काढ़े से गरारे करने से मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं और चर्म रागों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। बालों में मेंहदी लगाने का तो आजकल खूब चलन है। इससे सिर्फ सफेद बालों को ही रंग नहीं मिलता बल्कि मेंहदी एक अच्छी कंडीशनर का काम भी करती है। ये सिर को ठंडक पहुँचाती है साथ ही साथ बालों में चमक लाती है। कहते हैं कम उम्र में जिनके बाल पकने लगते हैं उन्हें रंगने से या मेंहदी लगाते रहने से बालों का पकना रुक जाता है। मेंहदी में सबसे अच्छी बात ये है कि इसका कोई भी विपरीत प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता। यूं तो बाजार में मेंहदी आसानी से मिल जाती है लेकिन यदि आप स्वयं मेंहदी के पौधे को लगाएँ तो ये ज्यादा अच्छी बात है। इससे आपको बिना मिलावट की मेंहदी घर पर ही मिल जाएगी और आपके बगीचे में हरियाली भी बनी रहेगी। ताजा पत्तियों से रंग भी अच्छा चढ़ता है। हम तो यही कहेंगे कि ये पूरी तरह सुरक्षित है बाजार में मिलने वाली हर्बल हिना के पैक से भी ज्यादा। अब ये बात अलग है कि आप अपनी बगिया में या घर-आंगन में कितना संवार कर रखते हैं इस बहुउपयोगी पौधे को।
कटी कुचली गई, पिस कर छनी भीगी गुंथी मेंहदी।
जब इतने दुख सहे तब उनके कदमों में बगी मेंहदी।।
मेंहदी लगाना एक कला है। आजकल ब्यूटी पार्लर या मेंहदी लगाने की क्लासेस में ये सिखाया जाता है कि मेंहदी किस तरह से लगाई जाती है किस तरह से घोली जाती है। वाकई ये एक आर्ट हैं लेकिन अब तो ऐसा है कि बने बनाए कोन बाजार में उपलब्ध होते हैं खरीद कर लाओ और हाथों में रचाओ क्योंकि ये भी सच है कि कला भी व्यापार के अधीन हो गई है लेकिन क्या हुआ इससे संस्कृति पीछे तो नहीं छूट जाएगी। आज समय की कमी भले ही हो, हर रूपसी तक मेंहदी के पत्ते न पहुंच पाते हों लेकिन बाजार में मिलने वाले ये रेडीमेड कोन घर घर तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। इन्हीं माध्यमों से ही सही दुल्हन की हथेली में सजी मेंहदी दूल्हे को आज भी लुभाती ही है इसमें कोई शक नहीं।
कुछ भी को ऊपर से हरी और अंदर से लाल रंग समेटे इस वनस्पति का मानव जीवन से बहुत गहरा संबंध है, पर हमारी मेंहदी रचने के संबंध में कुछ अप्रिय धारणाएं हैं कि जितन रंग गाढ़ा चढ़ेगा....ये मात्र एक अंधविश्वास है। प्रेम के बारे में तो कहा जाता है कि आप जितना प्रेम लुटाएंगे उससे कहीं अधिक आप पाएंगे। इसलिये तो मेंहदी को प्रेम रस राचणी कहा जाता है।
पाडकास्ट में प्रयुक्त गीत
1. मेंहदी, मेहदी...टूट के डाल से हाथों में बिखर जाती है
2. मैं हूँ खुशरंग हिना
3. मेंहदी है रचने वाली
4. मेंहदी से लिख दे मेरे तू मेरे बलमा का नाम
5. महबूब की मेंहदी हाथों में