बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
दि्व्तीय दिवस 18.05.2014 कामारेड्डी-बैंगलोर
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सफरनामा - प्रारंभ से पढ़ें
सुबह जल्दी निकलने की सोची थी, पर निकलते करीब 8 बज गये। हम लोग ऐसे सफर में इलेक्ट्रिक कैटल रखते हैं, जब चाहो अपने हिसाब से गर्मा-गर्म चाय का आनंद ले लो, अंडे उबाल लो, सूप और मैगी बना लो। तो चाय के साथ घर का पैक किया हुआ कुछ हल्का नाश्ता लिया, और निकल पड़े हैदराबाद। हैदराबाद में एक नज़दीकी रिश्तेदार हैं उनके यहां पहुंचने, मिलने और चाय नाश्ता करने में ही साढ़े बारह बज गये। फिर आइसबॉक्स में बर्फ भरकर हम चल पड़े अपने अगले पड़ाव बैंगलोर। साफ-सुथरी चौड़ी, बेहतरीन सड़क। वैसे नागपुर-हैदराबाद रोड भी (बीच का 40-50 किमी का पैच छोड़ दें तो) बेहतरीन थी। बिना प्रयास कार कब 150 की स्पीड पर पहुँच जाती थी पता ही नहीं चलता था। स्पीडोमीटर को देखकर स्पीड घटानी पड़ती थी। एक खास बात हमने नोट की - नागपुर से बैंगलोर तक सभी गाड़ियां तूफानी रफ्तार से दौड़ती मिलीं, पर कहीं भी कोई भी एक्सीडेंटल केस नहीं दिखा। व्यवस्थित ट्रेफिक और लोगों का ट्रेफिक सेंस देखकर मज़ा आ गया। हालांकि बैंगलोर से पहले एक गाड़ी में 4-5 अराजक उपद्रवी लोगों ने आगे पीछे चल रहे लोगों से उद्दण्डता की कोशिश की, लेकिन उन्हें संस्कृत में समझा दिया गया। कुछ लोग उद्दण्ड ही पैदा होते हैं या सोहबत में उद्दण्ड हो जाते हैं....आगे चल रही डस्टर में बैठे युवा जोड़े को बस अटैक नहीं आया। ऐसे अवसरों में सब्र, समझ के साथ साहस भी जरूरी होता है। टोल और पेट्रोल ने भी परेशान किया। एक तो 35-40 किमी पर टोल, और भाग्य ऐसा कि टोल के लिये जिस लाइन में हम होते थे वही सबसे धीरे आगे सरकती थी। जिन गाड़ियों को पीछे पछाड़ते आते थे, वे सभी हमें मुंह चिढ़ाते टोल से फिर आगे हो जाते थे....खेल चलता रहा....बहरहाल बैंगलोर हम उम्मीद से पहले पहुंच गए, एकबारगी मन हुआ कि सीधे ऊटी बढ़ चलें पर होसूर रोड पर सिल्क बोर्ड के पास होटल ‘कीज़’ में हमारा सुइट बुक था। बैंगलोर यद्यपि हम 4.30-5.00 बजे तक पहुंच गये थे पर होटल पहुंचते और नेविगेटर का मिजाज़ बिगड़ जाने के कारण, जो अभी तक अच्छा साथ दे रहा था, होटल पहुंचने में 8 बज गये। शानदार होटल, शानदार कमरा, बेहतरीन खाना, सब कुछ अच्छा....सिवाय किराये के। रात को थोड़ा बहुत आस-पास घूमे, अपने भांजे बागीश को उसके हॉस्टल तक छोड़ा और फिर वापस होटल और शयन। वैसे भी हैदराबाद, बैंगलोर, मैसूर हमारा पहले से पूरा घूमा हुआ था और ऊटी भी, जहां अब हमें बैंगलोर से जाना था। पर ऊटी केरल के रास्ते में पड़ रहा था सो दोबारा घूमने में जरा भी बुराई नहीं समझी गई।
तस्वीर-ए-बयां
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सड़क की एक झलक |
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पवन ऊर्जा का इस्तेमाल |
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विघ्नकर्ता |
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होटल कीज़, बैंगलोर |
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रिसर्च असिस्टेंट हमारा भांजा बागीश, डिनर पर साथ में |
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होटल का कमरा |
कल पढि़ये यात्रा ब्यौरा क्रमांक 3...सफरनामा... बैंगलोर- ऊटी
.......ऊटी के लिये हमें मैसूर रोड पकड़नी थी। टोल के बाद जाने कैसे कन्फ्यूज़न हो गया और हम दनदनाते गलत सड़क पर खुशी खुशी गाने सुनते करीब 20-25 किमी आगे बढ़ गये।........
यात्रा के मार्ग में टोल बड़ी समस्या है, मुझे तो बहुत कोफ़्त होने लगती है जब हर 25-30 किलोमीटर पर गाड़ी रोक कर "सड़क पंडो" को दक्षिणा देनी पड़ती है।
ReplyDeleteटोटल टोल कितना लगा?
ReplyDeleteकमल जी अभी तो दो ही दिन हुए हैं....बाद में बताया जाएगा.....
Deleteउद्दण्ड लोगों को किस तरह से संस्कृत में समझाया, इसे विस्तार से बताना था। ताकि फिर हमारे जैसे लोग इनके पल्ले पड़ें,तो हम भी उन्हें संस्कृत में समझा सकें। वेसे मजा आ रहा है, धारावाहिक उपन्यास की तरह। बधाई
ReplyDeleteha ha ha...dhanywad..
Deleteham bhi ham safar ho rahe hai .... safar ke saath darshanik jagahe bhi ghumaiye na .... plz.
ReplyDeleteअभी दूसरे दिन तक हम किसी दर्शनीय स्थल तक पहुंचे ही कहां हैं सुनील जी....कल उटी और परसों कुन्नूर घुमाने का वादा...
Deletekya baat hai....its like we r at the same trip with u...
ReplyDeleteHOTEL KA KIRAYA 6-8 THOUSAND THA KYA? BEST BUT EXPENSIVE...
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