बिलासपुर-केरल-बिलासपुर यात्रा संस्मरण
दिनांक 17.05.2014 से 28.05.2014
सफरनामा- महाबलेश्वर की जिस कॉटेज में हम रुके थे, उसका व्यवस्थापक पैसे तो बात-बात पर लेता था, लेकिन व्यवहार कुशल था और सर्विस अच्छी देता था। हमने उससे एक गाइड का इंतज़ाम करने को कहा था जो हमें दो-ढाई घंटे में जहां-जहां संभव हो घुमवा दे। सुबह 8 बजे निकलते वक्त महोदय ने एक बुजुर्ग सफेद टोपी वाले सज्जन को हमसे मिलवाया और बताया ये यहां के सीनियर गाइड हैं जो आपका समय बचाते हुए महाबलेश्वर दर्शन कराएंगे। सबसे पहले वो गाइड हमें मंदिर दर्शन करवाने ले गए। वहां पहुंचते तक वे चुप रहे या हां..ना..में जवाब देते रहे। कुछ अजीब लगा। मंदिर पहुचकर पता चला कि बुजर्गवार को हिन्दी नहीं आती और हम मराठी में बेहद कमज़ोर। कुल मिलाकर हमारे गाइड हमारा मनोरंजन ही करते रहे। कुछ बोलकर जोरों से हंसते थे, उन्हें हंसता देख हम भी हंसते थे और हमें हंसता देख वो एक ही शब्द कहते थे ‘बरोबर‘। अब हंसते-खीजते जो घूमा, सो घूमा....फिर पंचगनी वाले तिराहे पर उनसे विदा लेकर हम पंचगनी पहुंचे। पंचगनी के पहले चॉकलेट फैक्ट्री के पास एक पिकनिक स्पॉट डेव्हलप किया गया है...सुंदर है, पर थोड़ा ज़्यादा पैसेवालों के लिये है। कोको बीज को चॉकलेट तक परिवर्तित होते देखना एक अच्छा अनुभव था। वहां घूम-फिर कर हम पंचगनी पहुंचे, नाश्ता किया और उस दौरान कार धुलवाई। कुछ किलो स्ट्राबेरी ली, जो बिलासपुर पहुंचते करीब-करीब गल गईं। फिर कुछ दर्शनीय जगहें देखीं और औरंगाबाद के लिये चल पड़े। पूना पहुंचते तक दो बज गये थे। घनघोर घटाएं, फिर तेज़ बारिश....उपर से पूना से औरंगाबाद की तरफ जाने का पूरा रास्ता वन वे......ज़रा सी चूक....कई किमी की सज़ा दे सकती थी। नेवीगेटर को धन्यवाद जिसने थोड़ा ज़्यादा घुमाते-फिराते ही सही पर सही रास्ते तक पहुंचा दिया। अहमदनगर न घुसकर बाईपास से औरंगाबाद की तरफ बढ़े और 50-55 किमी दूर शनि सिंघनापुर रुक कर शनि महाराज के दर्शन किये। आजकल वहां मंदिर से काफी पहले युवकों की टोलियां जबरदस्ती गाड़ी रोककर फ्री पार्किंग के बहाने गाड़ी रुकवाते हैं और वहीं की दुकानों से तेल-प्रसाद खरीदने को बाध्य करते हैं। कुछ वर्दीधारी भी इसमें शामिल नज़र आते हैं। बहरहाल दर्शन-पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर निकलते साढ़े सात बज गए। औरंगाबाद से 7-8 कि.मी. पहले एक अच्छा सा होटल दिखाई दिया, सोचा बात करके देखते हैं। सब कुछ ठीक लगा तो यहीं रुक जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे पहले दिन कामारेड्डी में हुआ था, यहां भी इस बार आखिरी दिन हमें 1300 रूपये में 2300 से उपर का बेहतरीन रूम मिल गया। फिर अब तक खींची गई तस्वीरों का लैपटॉप में अवलोकन-भोजन-शयन।
इन पॉइन्ट्स पर हमें सिर्फ बादल मिले |
चॉकलेट फैक्ट्री |
पंचगनी टेबल टॉप पर फुरसत के दो पल |
शनि सिंघनापुर की कुछ तस्वीरें |
कल के यात्रा के अंतिम अंक में - ...पर जब गाइड राजेष ने लेक और मंदिर के बारे में बताया तो सहसा विष्वास नहीं हुआ। उसने बताया यह झील करीब 50 हजार साल पूर्व 10 लाख टन मीटोररॉइड के धरती से टकराने पर बनी थी... हमें बताया गया कि यह प्रतिमा अभी 5 माह पूर्व तक 25 टन सिंदूर-गेरू लेप में छिपी हुई थी। अमेरिका से आए वैज्ञानिकों ने इसे पहचाना और लेप हटवाया तो यह मूर्ति नज़र आई....