Saturday, January 21, 2012

बोलते वि‍चार 49- असफलता को अधिक महत्‍व न दें



बोलते वि‍चार 49
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा

एक साहब को समाचार पत्रों में छपने वाली शब्द-वर्ग पहेली भरने का बहुत शौक है। हर दिन भरते हैं और ज्यादातर पूरे सही हल तक पहुँच जाते हैं। जिस दिन कहीं कुछ छूट जाता है उस दिन उनकी बेचैनी देखते ही बनती हैं। शब्द विशेष की खोज में बेहद परेशान रहते हैं; बहुत देर-देर तक-बल्‍ि‍क बार-बार दिन भर।

यों किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आदमी में उत्कट लगन का होना काफी अच्छी बात हैं; लेकिन लक्ष्य कितना महत्‍वपूर्ण हैं, इसका भी चयन कम महत्‍वपूर्ण नहीं है। किसी मामूली सी बात के लिए घंटों बरबाद कर डालना और कसमें खा लेना केवल अडि़यलपन है। किसी बड़े पेड़ के सारे पेड़ों को गिनने का प्रण करना कोई बुद्धिमानी नहीं है।

कई बार आदमी की किसी दिशा में कठिन-से-कठिन परिश्रम करने पर भी सफलता नहीं मिला करती। चिंता में घुलने की कोई बात नहीं है। सूक्ति है कि ‘जीवन का यह विधान है कि जब हमारे लिए एक रास्ता बंद हो जाता है तो दूसरा खुल जाता है।’ किसी जगह पर खड़े हुए आप जरा-जरा सा घूमकर चारों तरफ कदम बढ़ा सकते हैं।

जो लोग, उदाहरण के लिए, कई प्रयासों के बाद भी आई.ए.एस नहीं बन पाते, वे जान नहीं दे देते। वे दूसरा या तीसरा रास्ता चुन लेते हैं। स्थिति के अनुसार लोग अपनी नौकरी बदल लेते हैं और धंधा भी बदल लेते हैं। हमें यह मानने में झेंप नहीं लगनी चाहिए कि हम बहुत से कामों को करने में सक्षम नहीं होते हैं; लिए अनेक काम असंभव रहते हैं। सबके लिए रहते हैं। हम यह सदा याद रखें कि हम समुद्र नहीं लाँध सकते। साथ ही यह भी मानकर चलें कि कुछ कामों का पूरा होना और न होना योग और संयोग पर भी निर्भर करता है।

उपर्युक्त के परिप्रेक्ष्य में हम अपने विवेक से यह निर्णय लेने में पर्याप्त निश्‍ि‍चंत और सही हो सकते हैं कि हमें किस काम में किस हद तक सफलता मिल सकती है और किसमें नहीं।


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