3 जुलाई 2015
फरवरी से जुलाई तक का सफर....
हर महीने का पहले रविवार बुजुर्गवारों का साथ इंतजार...बार-बार..
आज हम फिर हैं उनके साथ...
हमारा उनसे बढ़ता लगाव, उनका हमसे बढ़ता प्यार...लगातार.... अपरंपार.....
हम 4 बजे वहाँ पहुँचे उसके पहले दरी बिछाकर सब तैयार होकर हमारे इंतजार में बैठे हुए मिले। अब तो वे हमें छेड़ने भी लगे हैं।
‘कइसे नोनी आज बड़े उदास दिखत हस‘
‘का बात हे आज का कराबो हमन ला‘
‘अब 1 महिना के इंतजार नई होवत हे बाबू, थोड़किन जल्दी जल्दी आये करव ना‘
उनकी ऐसी बातों से हमारा जोश और बढ़ जाता है।
इतनी देर में पहले से निर्धारित किया हुआ एक चाट का ठेला आश्रम के कैंपस में लगवा दिया गया फोटो प्रदर्शन सेशन के बाद चाट गुपचुप खाने के लिए सबको आमंत्रित किया गया पहले तो वे हिचकिचाते -शर्माते रहे किसी ने कहा 'हमारे दांत नहीं है कैसे खाएं' किसी ने कहा 'मन तो बहुत है पर पेट न खराब हो जाये'. हमने बताया बिना मिर्च का अच्छे पानी का इस्तेमाल करके आप लोगों के हिसाब से सब तैयार करवाया गया है. कुछ लोगों ने शुरु किया फिर तो लाइन लग गई।
'बरसों बाद चाट का स्वाद लिया बिटिया तुम सब के कारण मजा आ गया'
'हम तो यहां जब से आये हैं पहली बार चाट खाने को मिली
सब लड्डू, पूड़ी, मिठाई दे जाते हैं यहां तुम लोग बहुत अच्छा
सोचते हो.'
क्या ऐसे वाक्य हमको खुश करने के लिये और हमारे उद्देश्य को पूरा करने के लिए काफी नहीं थे.
छोटी-छोटी सी खुशियां और उनसे बड़े-बड़े से आशीर्वाद.....
संवेदना कार्यक्रम का यही है प्रयास......
जो चलता रहेगा लगातार.....
फरवरी से जुलाई तक का सफर....
हर महीने का पहले रविवार बुजुर्गवारों का साथ इंतजार...बार-बार..
आज हम फिर हैं उनके साथ...
हमारा उनसे बढ़ता लगाव, उनका हमसे बढ़ता प्यार...लगातार.... अपरंपार.....
पिछले पाँच महिनों में हमने इन बुजुर्गों को पिकनिक ले जाकर घुमाया उनके साथ अक्षय तृतीया पर गुड्डे - गुड़िया का ब्याह रचाया, होली के अवसर पर नगाड़ों के साथ फाग उत्सव मनाया, नाटक दिखाया, उनसे गाने गवाए, खेल खिलवाए.... और आज इन सब अवसरों पर खींची गई तस्वीरों का प्रोजेक्टर पर उनके साथ प्रदर्शन किया जाने वाला है।
हम 4 बजे वहाँ पहुँचे उसके पहले दरी बिछाकर सब तैयार होकर हमारे इंतजार में बैठे हुए मिले। अब तो वे हमें छेड़ने भी लगे हैं।
‘कइसे नोनी आज बड़े उदास दिखत हस‘
‘का बात हे आज का कराबो हमन ला‘
‘अब 1 महिना के इंतजार नई होवत हे बाबू, थोड़किन जल्दी जल्दी आये करव ना‘
उनकी ऐसी बातों से हमारा जोश और बढ़ जाता है।
प्रोजेक्टर लगने की प्रक्रिया के दौरान केक काटने का कार्यक्रम किया गया एक बाबा, एक दादी जिनको अपने जन्मदिवस की तिथि नहीं मालूम है उनको बुलाकर हमने उनसे केक कटवाया उनका जन्मदिन गीत गाया और सबको केक बँटना शुरु किया हमारी बच्चियों मीशा और खुशी ने।
उनकी जिज्ञासा प्रोजेक्टर देखकर हो रही थी कि 'सिनेमा दिखाबो का' तो हमने कहा 'इंतजार करिये आज के हीरो हीरोइन आप ही लोग हैं।'
फिर सिनेमा शुरु हुआ। अपनी और साथियों की तस्विरों को देखकर वे बहुत खुश थे और उनके चेहरों कि बदलती रंगत को देखकर हम। एक - एक फोटो पर उनके कमेंट्स हमारे ग्रुप के साथ उनकी और नजदीकी बढ़ा रहे थे।
इतनी देर में पहले से निर्धारित किया हुआ एक चाट का ठेला आश्रम के कैंपस में लगवा दिया गया फोटो प्रदर्शन सेशन के बाद चाट गुपचुप खाने के लिए सबको आमंत्रित किया गया पहले तो वे हिचकिचाते -शर्माते रहे किसी ने कहा 'हमारे दांत नहीं है कैसे खाएं' किसी ने कहा 'मन तो बहुत है पर पेट न खराब हो जाये'. हमने बताया बिना मिर्च का अच्छे पानी का इस्तेमाल करके आप लोगों के हिसाब से सब तैयार करवाया गया है. कुछ लोगों ने शुरु किया फिर तो लाइन लग गई।
'बरसों बाद चाट का स्वाद लिया बिटिया तुम सब के कारण मजा आ गया'
'हम तो यहां जब से आये हैं पहली बार चाट खाने को मिली
सब लड्डू, पूड़ी, मिठाई दे जाते हैं यहां तुम लोग बहुत अच्छा
सोचते हो.'
क्या ऐसे वाक्य हमको खुश करने के लिये और हमारे उद्देश्य को पूरा करने के लिए काफी नहीं थे.
छोटी-छोटी सी खुशियां और उनसे बड़े-बड़े से आशीर्वाद.....
संवेदना कार्यक्रम का यही है प्रयास......
जो चलता रहेगा लगातार.....
छोटी छोटी खुशियाँ उत्साह बढाती हैं। शुभकामनाएं।
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