Saturday, August 20, 2011

बोलते वि‍चार 10 - असंभव और संभव

Bolte Vichar 10

आलेख व स्‍वर - डॉ.रमेश चन्‍द्र महरोत्रा
कहते हैं संसार आशा पर टिका है। यह सही तो है; पर आशा किसी ऐसी बात की ही की जानी चाहिए जो असंभव न हो। यदि मनुष्य में इस से संबंधित समझ का अभाव रहता है, तो उसका बहुत सा समय और श्रम पूर्णतः असंभव वालों को भी पूरा करने की कोशिश में बेकार चला जाता है। नेपोलियन के लिए इस शब्द का अर्थ अत्यंत सीमित था। सच्चाई यह है कि जो लोग यह कहा करते हैं कि ‘असंभव’ कुछ नहीं होता, वे ज़रुरत से ज़्यादा आशावादी होते हैं और कई ग़लतफ़हमियों में जीते हैं। उत्साह बढ़ाने और हिम्मत न हारने के लिए उक्तियों का सहारा लेना उचित है, पर ऐसी उक्तियों का नहीं, जिन का खोखलापन आगे चल कर आदमी को इतना निराश कर दे कि वह कर्म पर से ही आस्था खो बैठै। हमें संभव और असंभव का भेद जान कर ही जि़दगी जीनी होगी। कीचड़ को धो-धो कर सफ़ेद कदापि नहीं बनाया जा सकता। कुत्ता कभी आदमी नहीं बन सकता, केवल रेत से पक्की दीवार कोई खड़ा नहीं कर सकता। मूर्ख व्यक्ति का हृदय कभी चेत नहीं सकता, भले ही उसे ब्रम्हा के समान गुरु मिल जाऐं। इसी प्रकार, आसमान से तारे तोड़ कर लाने का भी सही मतलब सभी समझते हैं। हमें गीता का उपदेश मान कर ‘कर्म’ अवश्य करना चाहिए, लेकिन दिशाहीन नहीं। हमें सफलता के लिए ‘प्रयत्न’ अवश्य करना चाहिए, लेकिन दिशाहीन और विवेकशून्य होकर नहीं। हमें कदम बढ़ाने के लिए ‘आशा’ अवश्य करनी चाहिए, लेकिन असंभाव्य बातों के लिए नहीं।

कोई उपकरण ख़राब हो जाने पर शुरु में बार-बार सुधारा जाता है, लेकिन एक समय ऐसा आ जाता है, जब उसके सुधरने की आशा नहीं रह जाती, और तब हम मोह त्याग कर उसे फेंक देते हैं। कोई भी खाद्य पदार्थ एक सीमा तक ही उपयोग में लाने के लायक रहता है, उस के बाद उसे खाना श्रेयस्कर नहीं रहता, इसलिए उस से स्वयं को बचाना आवश्यक हो जाता है। किसी पति-पत्नि के पारस्परिक संबंधों में इतनी अधिक विपरीतता आ जाती है कि कितने ही सत्प्रयास करने पर भी उन में समझौता संभव नहीं रह जाता; इसी कारण तलाक़ की व्यवस्था की गई है। यही बात किसी व्यक्ति के राक्षसी स्वभाव के बारे में है। राक्षस हर युग में रहे हैं और हर युग में रहेंगे। कहा जा सकता है कि उनके न सुधारे जा सकने में भी ‘असंभव’ शब्द की सार्थकता निहित है। इस से यह निष्कर्ष निकलता है कि जहां तक किसी के सुधार की सीमाएँ और हमारी क्षमताऐं हैं, वहाँ तक हम व्यक्ति में सुधार अवश्य करें, लेकिन उस के बाद यह मानते हुए कि संसार में यदि पुण्यात्माओं का अस्तित्व है, तो पापात्माऐं भी अवश्यंभावी हैं। गांधी जी के तीन बंदरों के समान सारी बुराइयों के प्रति अपनी आँखें, अपने कान, और अपना मुँह बंद कर के हम केवल अपना सुधार करें। सकारात्मकता की स्थापना के लिए हमें नकारत्मकता से आच्छादित इस सत्य को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि अच्छाईयों के साथ बुराईयों की भी सत्ता स्थाई है और कुछ बीमारियों का इलाज असंभव है। इसी प्रकार हमें भविष्य के लिए अपने पैर मज़बूत बनाए रखने के लिए इस तथ्य को भी स्वीकार करना पड़ेगा कि यद्यपि आशा पर संसार टिका रहता है, तथापि आशा टूट जाने पर वह ढह नहीं जाता। इस विवेक से हम में संभावित निराशाओं की कड़वाहट को झेल पाने की शक्ति बढ़ेगी और हम अपने को बिना धोखे में रख यह दुहरा सकेंगे कि यदि आदमी के लिए आशान्वित होना ज़रुरी है, तो उस की जि़दगी में निराशाओं का आना भी ज़रूरी है और उन का सामना करने के लिए उसमें शक्ति का रहना भी ज़रूरी है।

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4 comments:

  1. सुंदर विश्लेषण .....आपने बहुत सुन्दरता से आपने हर बात को स्पष्ट किया है ....आपका आभार

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  2. आज कुशल कूटनीतिज्ञ योगेश्वर श्री किसन जी का जन्मदिवस जन्माष्टमी है, किसन जी ने धर्म का साथ देकर कौरवों के कुशासन का अंत किया था। इतिहास गवाह है कि जब-जब कुशासन के प्रजा त्राहि त्राहि करती है तब कोई एक नेतृत्व उभरता है और अत्याचार से मुक्ति दिलाता है। आज इतिहास अपने को फ़िर दोहरा रहा है। एक और किसन (बाबु राव हजारे) भ्रष्ट्राचार के खात्मे के लिए कौरवों के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है। आम आदमी लोकपाल को नहीं जानता पर, भ्रष्ट्राचार शब्द से अच्छी तरह परिचित है, उसे भ्रष्ट्राचार से मुक्ति चाहिए।

    आपको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाई।

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  3. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

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