आगामी कल की भी सोचिए
कुछ लोग वर्तमान से एक पल भी आगे की नहीं सोचते। वे कुआँ तभी खोदना शुरू करते हैं जब उन्हें प्यास लगती है। उन्हें भविष्य की बिलकुल चिन्ता न करने वालो अदूरदर्शी कहा जायेगा। उनके घर के सारे पानी के बरतन प्रायः खाली पड़े रहते हैं। जब नल चला जाता है और उन्हें पानी की जरूरत पड़ती है तब वे उसके लिये अड़ोस-पड़ोस के लोगों को तंग करने में शर्म महसूस नहीं करते। वे कहते हैं कि आखिर पड़ोसी कब काम आयेंगे।
आदमी बहुत छोटी-छोटी बातों पर ध्यान रखकर अपना जीवन एक अच्छे पारिवारिक और सामाजिक के रूप में भी जी सकता है, या फिर दूसरों की सदा आलोचना का पात्र बनकर भी समय काट सकता है। वह जो भी पसंद करे। एक मामूली सा उदाहरण है कि कुछ लोग शौच से निवृत्त होने के बाद मल को फ्लश आदि से बिना बहाय शौचालय से बाहर निकल जाते हैं। उनके बाद वहाँ पहुँचने वाला व्यक्ति उन्हें मन में कम से कम एक बार तो ‘असभ्य’ कह ही देता होगा। पर उन्हें इसकी चिन्ता नहीं रहती। दरअसल उन्हें खुद को छोड़कर संसार में किसी की भी चिन्ता नहीं रहती । वे इस बात पर कभी विचार नहीं किया करते कि कुछ क्षण बाद की स्थिति दूसरों के लिए कैसी रहेगी।
कार और स्कूटर आदि को कहीं पार्क करने वाले श्रीमानजी कभी-कभी न तो अपनी ‘आंखों का’ इस्तेमाल करते हैं और न अपनी ‘अक्ल का’ कि दूसरी गाडि़याँ पार्क करने वालों और आने जाने वालों को कितनी असुविधा हो जाती है। बुद्धि को अपनी पीठ की तरफ खिसका देने वाले ऐसे सज्जन खुद के बारे में भी नहीं सोच पाते कि कुछ समय बाद उन्हें भी अपनी गाड़ी निकालने में परेशानी हो जायेगी। उस समय उन्हें यह बड़बड़ाते हुए आपने जरूर सुना होगा कि दूसरे लोगों ने उनकी गाड़ी को कहाँ फँसा डाला है।
आगे की सहूलियत को ध्यान में रखकर एक साहब बाजार से वापस आने पर घर के गैरेज में अपनी कार को बैक करके ही रखते थे कि जब भी बाद में कहीं जाना होगा, वे उस समय सीधे ही निकल जाएँगे।
एक साहब ने यहाँ दिन में एक दर्जन बार चाय बनती होगी, लेकिन चार बनाने वाला बरतन हर वक्त साफ-सुथरा लटका हुआ मिलता है। कारण यह है कि उस घर की श्रीमतीजी हर बार चाय बन जाने के बाद उसे उसी समय साफ कर डालती थी। वे उसकी आगामी तात्कालिक आवश्यकता पड़ने की बात के साथ-साथ यह भी समझती है कि उस समय बरतन को जूठे बरतनों में डाल देने से उस पर हुए जमाव आदि के सूख जाने से बाद में उसे माँजने में अधिक समय और श्रम लगेगा।
कुछ लोग अपना गुच्छा या अन्य कुछ सामान अकसर इधर-उधर ढ़ूँढ़ते हुए नजर आते हैं। इसका कारण केवल यह है कि वे अपनी चीजों को सही जगह पर यह सोचकर रखने की समझदारी नहीं दिखा पाते कि उनको उन चीजों की भविष्य में जरूरत पड़ेगी। घर हो या कार्यालय, चीजों को कूड़े के ढ़ेर के समान रखने वाला व्यक्ति ‘वर्तमान से एक पल भी आगे न सोचने की बीमारी’ का शिकार होता है। ऐसे लोग आकस्मिक रूप से बिजली चली जाने के बाद या तो उस समय सिर्फ हल्ला मचाना जानते हैं कि मोमबत्ती कहाँ है, दियासलाई कहाँ है; या उन चीजों को ढूँढ़ने के चक्कर में घर का कुछ सामान तोड़ बैठते हैं।
निष्कर्ष यह है कि इस तरह की परेशानियों के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं, बस जरा सा आगे के बारे में सोचकर हम दूसरों की ही नहीं, अपनी भी सुविधायें बढ़ा सकते हैं, समय बचा सकते हैं और बार-बार होने वाली खोज से छुटकारा पा सकते हैं। इसके लिए बड़ी दूरदर्शिता की आवश्यकता नहीं है, केवल थोड़ी सी सावधानी और धैर्य से काम चल जाता है।
यों तो जीना-मरना विधि के हाथों में है, पर यदि आपमें ‘जीवन जीने की लालसा’ है तो कम-से-कम कल के बारे में सोचना होगा। यह सोचकर कि संसार किसी भी समय खत्म हो सकता है, ‘सौ प्रतिशत वर्तमान’ को ही सब कुछ मानने वाले व्यक्ति में जीने की लालसा की तुलना में मरने का भय अधिक होता है। यहाँ एक मद्देनजर किस्सा सुनिए - एक लड़का खाना खाते समय स्वयं को सबसे अच्छी लगने वाली चीज को सबसे पहले खत्म करता था और सबसे रद्दी लगने वाली चीज को सबसे बाद में खाता था। सामान्यतया इसका उलटा होता है कि मुँह का जायका अच्छा बनाए रखने के नाम पर लोग अच्छे स्वाद वाली चीज को सबसे बाद में खाते हैं। जब उस लड़के से उसके उलटे क्रम का कारण पूछा गया तो उसने गंभीरतापूर्वक बताया कि वह डरता है कि कहीं वह खाते-खाते ही न मर जाए, इसलिये कहीं अच्छी चीज को खाने से वंचित न रह जाये।
Haha...Zabardast.....Kash......we dusaron ki taklif samajha paate...aur sahi aadat ke liye dhanyabad....AAJ JIYEIN KAL KI AAS MEIN...Great...
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