Thursday, December 1, 2011

बोलते वि‍चार 36 - कर्मरत जीवन जीना

बोलते वि‍चार 36
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा

आज का काम कल पर छोड़ने के नुकसान के बारे में काफी कुछ कहा गया है। ‘काल करै सो आज कर, आज करै सो अब’ के अनुसार अपने काम को बिलकुल पेंडिंग मत छोडि़ए, क्योंकि पल भर में प्रलय हो सकती है। बहुत सीधी सी बात है कि यदि हम अपना कोई काम अभी पूरा कर लेते हैं तो हमें आगे के कामों को करने के लिये अधिक समय मिल जाता है।

जो लोग अपने कामों को लटकाने के बजाय जल्दी-से-जल्दी निबटाने में विश्वास करते हैं, वे जीवन की दौड़ में निश्चित रूप से जल्दी-जल्दी इनाम पाते जाते हैं। वे जानते हैं कि हर दिन और हर क्षण की कीमत होती है। वे ‘भावना’ से नहीं, ‘बुद्धि’ से काम लेते हुए इस चरम सत्य को बिना घबराए सम्मान देते हैं कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है, इसलिए हर क्षण का सदुपयोग करो। यद्यपि हम दुआ करते हैं कि आदमी सौ साल जिए; लेकिन मरने वालों में से कितने ही ऐसे होते हैं, जो सौ साल की आधी या चौथाई अवधि ही पार कर पाते हैं। इस कड़वे सच को आत्मसात् करते हुए हमें अंग्रेजी की उस कहावत पर अमल करना चाहिये कि ‘आशा उत्कृष्ठ की करो, लेकिन तैयार निकृष्ट के लिए रहो।’

चूँकि हम सबकी उम्र हम सबकी उम्र की एक सीमा है, इसलिए जब जब हम जिन्दा हैं, अपने समय का पूरा-पूरा सदुपयोग कर लें। हमारी करनी ही हमें मरने के बाद भी जिन्दा रखेगी। यदि हमने आज का काम कल पर टाला तो हमारी करनी का आज के दिन का खाता बिलकुल खाली रह जायेगा।

काम अपना हो या दूसरों का, उसे समय से निबटाने का संतोष स्वयं में एक उपलब्धि है; क्योंकि तब आपको उसे पूरा करने की चिंता से मुक्ति मिल जाती है और अन्यों के बीच आपकी छवि अच्छी बनती है। इसके विपरीत, यदि आप दूसरों को जबान दे-देकर उनका काम पेंडिंग रखने की लत से पीडि़त हैं, तब यह कभी मत सोचिए की आप आपको ‘सज्जन’ मानते हैं।

कहते हैं कि आने के लिए मौत को बहाना चाहिये। कितनी ही बार दुर्घटनाओं में और कितनी ही बार अन्यथा स्वर्ग की स्थायी यात्रा करने के लिए निकल जाने वाले हमारे परिचित-अपरिचित लोग हमें प्रायः झकझोर देते हैं। ऐसे अनुभवों के आधार पर हमारे द्वारा यह सोचा जाना बुद्धिमानी की बात है कि हमारे जीवन की डोर भी डोर ही है, कोई फौलादी जंजीर नहीं। यदि आदमी में यह समझ नहीं होती तो वह जीवन बीमा जैसी बातों को अपनी जबान पर कभी न लाता।

एक वरिष्ठ समाजशास्त्री ने कहा है कि ‘हम संयोग से जी रहे हैं’ बात बहुत अच्छी है, लेकिन तभी, जब हम उससे यह प्रेरणा लें कि जब तक हम जी रहे हैं तब तक जीवन के प्रति सकारात्मक रूख रखते हुए निरंतर कर्मरत रहेंगे, और शीघ्रता के साथ अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाते रहेंगे। इसके विपरीत, यदि हम यह सोचकर कि पता नहीं हमारा कब अंत हो जाए, अपना मुँह लटकाकर बैठ जाएँ, तब हम जितना करने की क्षमता रखते हैं उससे बहुत कम कर पायेंगे। लोग बड़े-बड़े काम तभी शुरू और पूरे कर पाते हैं जब वे जीवन के प्रति आशावान रहते हैं। चूँकि हमें ‘एक दिन मरना’ है या ‘किसी भी दिन मर जाना’ है, इसलिए रोज श्मशानघाट का रास्ता नापना शुरू कर दें, तब तो हम पहले से ही अधमरे हो जायेंगे। जब हम संसार में आए हैं तो अधमरा बनने के लिए नहीं, या तो ‘हर दिन’ जीने के लिए आए हैं या ‘सिर्फ एक बार’ मरने के लिए आए हैं। इसलिये जब तक जीना है मर-मरकर न जिएँ, जी-जीकर जिएँ।

2 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! चर्चा में शामिल होकर चर्चा मंच को समृध्‍द बनाएं....

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  2. बहुत बढ़िया ...स्वर और शब्द (आलेख) दोनों प्रभावी...

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