Saturday, December 24, 2011

बोलते वि‍चार 43 - अच्छा आदमी ही अच्छाई बाँट सकता है


बोलते वि‍चार 43
आलेख व स्‍वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा
जो चीज हमारे पास नहीं है, उसे हम दूसरों को कैसे दे सकते हैं। धनी आदमी ही दूसरों को धन दे सकता है। आप जिस विषय के ज्ञाता हैं उसी विषय पर दूसरों को ज्ञान दे सकते हैं। किसी बेवकूफ आदमी से समझदारी की बातों की आशा नहीं की जा सकती।


 यदि आप खूब सम्मानित व्यक्ति हैं, तब भी समाज के सब लोगों से सम्मान पाने की अपेक्षा मत कीजिए; क्योंकि काफी लोग ऐसे होते हैं, जो स्वयं सम्माननीय न होने के कारण ‘सम्मान’ का अर्थ नहीं जानते। चूंकि उनके पास सच्चे सम्मान का अभाव होता है, इसलिए वे दूसरों को सम्मान नहीं दे पाते। उन पर क्रोध मत कीजिए, उन पर तरस खाइए। धनिया बेचनेवाले से आप स्वर्णाभूषण पाने की उम्मीद नहीं लगा सकते।

जिसके दिल में प्रेम रहता है, वही प्रेम बाँट सकता है। जिसके दिल में घृणा और ईर्ष्‍या रहती है, उसके भीतर से वही बाहर निकलती है। यदि आप अपने प्रति बुरे भाव रखनेवाले व्यक्ति से बचते हुए बिलकुल शांत रहें तो आप बहुत सुखी रहेंगे। उसकी घृणा और ईर्ष्‍या को बिलकुल मत स्वीकार कीजिए। अपने मन को थोड़ा भी विचलित मत होने दीजिए। यदि आप निरंतर शांत रहें तो वह आपसे शांति के अलावा कुछ नहीं पाएगा। इसके विपरीत, यदि आप अंदर से साफ-सुथरे नहीं हैं, आपमें सहनशीलता और क्षमाशीलता की कमी है तो आप उसे गालियाँ देना शुरू कर देंगे। फिर उसमें और आप में फर्क ही क्या रहा।
    
कहते हैं कि लेने वाले से देने वाला बड़ा होता है। आप समाज-हित के नाम पर बहुत अच्छे देने वाले साबित हो सकते हैं। बस सबको इज्ज़त दीजिए। खूब इज्ज़त बाँटिए, जी बात का सबूत होगा कि आपके अंदर इज्जत विपुल भंडार है।
    
विश्व का अनुभूत सत्य है कि देनेवाला हमेशा सुखी रहता है, जबकि याचक कभी सुखी नहीं रह पाता। न माँगते वक्त, न माँगे हुए का उपभोग करते समय। प्रकृति का नियम है कि जो व्यक्ति जो कुछ देता है, वही बहुगुणित होकर विभिन्न दिशाओं से उसके पास लौटकर आता है।

1 comment: