आलेख व स्वर - डॉ.आर.सी.महरोत्रा
मुरगों ने अपने पंखों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया, वे उड़ान भरने के लायक नहीं रह गए। यदि हम अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दें तो उसका भी यही हाल होगा। दिमाग को चलाते रहिए-एक अच्छी मशीन की तरह। मशीन चलने पर ही उत्पादन करती है। दिमाग को खाली मत रखिए,वरना उसमें शैतान रहने लगेगा। खाली पड़े मकानों में अंधविश्वासियों के लिए भूत और दूसरों के लिए भाँय-भाँय और गंदगी इकट्ठी होती रहती है। खाली शरीर निर्जीव होता है।आदमी का मन हो या शरीर,उसका व्यस्त रहना अति आवश्यक है। व्यस्तता शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य के लिये हितकर है। शरीरांगों का या किसी गाड़ी का या किसी दुकान का गतिशील रहना ही उसमें जीवन का द्योतक है। यदि शरीरांग नहीं चलते हैं तो गठिया नामक रोग हो जाता है। यदि गाड़ी नहीं चलती है तो उसका नाम ही ‘गाड़ी’ नहीं रह जाता, क्योंकि ‘चलती का नाम गाड़ी’ होता है। यदि दुकान नहीं चलती है तो वह ठप्प हो जाती है।
लोग कसरत क्यों करते हैं? क्योंकि उससे शरीर पुष्ट होता है। दिमागी कसरत से दिमाग पुष्ट होता है। रिहर्सल से ड्रामा सफल होता है और रियाज से गाने का स्तर ऊँचा होता है। जिन व्यक्तियों का पढ़ने-लिखने का अभ्यास शून्य होता है वे कोई उपाधि प्राप्त नहीं कर सकते।
आदमी जितना अधिक सोचने का अभ्यास करेगा,जितना अधिक विचारों में डूबेगा वह उतनी ही गहराई में पहुँचेगा। मस्तिष्क को उर्वर बनाने के लिए,उसका उत्थान करने के लिये उसकी घिसाई जरूरी है। चाकू की धार घिसाई के बाद ही तेज होती है। प्रतियोगिताओं को जीतकर उन्नति के शिखर पर पहुंचने वाले लोग दिमाग की घिसाई करके ही वहाँ पहुँचते हैं;वे खाली बैठने वाले नहीं हुआ करते। निठल्ले लोगों को किसी भी समाज में इज्जत नहीं मिला करती। ‘ठलुआ’ इसीलिए एक गाली है।
बेकार पड़े हुए लोहे में जंग लग जाती है; बेकार पड़ी हुई लकड़ी में दीमक लग जाती है; खाली यानी खोखली और हलकी चीजों को पानी अपने तल के ऊपर की ओर फेंक देता है; भरी हुई चीजें ही भारी होने के कारण तह में पहुँचकर बैठती है।
रिटायरमेंट के बाद कुछ लोग सिर्फ इसलिये जल्दी मर जाते हैं कि उनका समय काटे नहीं कटता। उनके सामने समस्या आर्थिक कम, दिन-रात खाली रहने की अधिक होती है। जो लोग सदा काम में लगे रहते हैं, उनकी उम्र अधिक होती है। उनके पास मरने की भी फुरसत नहीं होती।
आदमी संसार में ‘दिमाग’ लेकर आया है। वह ‘हाथ-पैर’ लेकर आया है, खाली बैठने के लिये नहीं आया है। यदि वह अपने को गतिमान उपक्रमों के साथ संपृक्त रख पाता है,तभी उसका संसार में आना सार्थक है,वरना सिर्फ समय काटने का काम क्षुद्र-से-क्षुद्र भी कर लेते हैं। यदि आदमी को खुद को सही ढंग से व्यस्त रखना नहीं आता है तो समझिए कि वह व्यक्तिगत तौर पर खुराफाती है और सामाजिक तौर पर नाकारा है। ऐसा आदमी विकास के किसी भी पहलू में योगदान न करने के कारण राष्ट्र पर एक बोझ रहता है।
उपर्युक्त तथ्यों से निष्कर्ष रूप में यह सीख मिलती है कि हम अपने को खालीपन का शिकार न होने दें और खाली दिमागवालों से बचकर रहें।
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न खाली बैठे .. न सामने वालों को खाली बैठने दें ..
ReplyDeleteसपरिवार आपको दीपावली की शुभकामनाएं !!